‘विधवा’… ये शब्द सुनने में जितना छोटा है, इसके मायने उतने ही बड़े हैं. 21वीं शताब्दी में कदम रखने के बावजूद विधवाओं के लिए दुनिया की सोच नहीं बदली. दुनिया के कई देश ऐसे हैं, जहां एक विधवा को उसकी ज़िंदगी जीने का अधिकार नहीं है. हम आगे बढ़ने की कई बातें करते हैं, लेकिन आज भी अगर कोई विधवा दूसरी शादी के बारे में सोचे, तो उसे अलग निगाहों से देखा जाता है. हम आज भी इस सच को नहीं पचा पाए हैं कि एक औरत अपनी ज़िन्दगी की दोबारा शुरुआत कर सकती है.
ज़्यादा दूर नहीं जाते, एक नज़र वृन्दावन की विधवाओं की तरफ़ डालते हैं, जो कुछ समय पहले तक ज़िंदगी के रंगों से मरहूम थी. बचपन में ही विधा हो चुकी इन महिलाओं को एक अलग कोने में रहने की जगह दी गई थी, ताकि ये अपनी बची हुई ज़िन्दगी काट सके.
हैरानी की बात ये है कि विधवाओं से भेदभाव सिर्फ़ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया अन्य देशों में भी होता है. भारत सहित दुनिया के कुछ ऐसे देश, जो इंसान की ज़िन्दगी से ज़्यादा, वो किस ‘रोल’ में है, इस पर ध्यान देते हैं. शर्तिया तौर पर विधवा का रोल ऐसे समाज में अस्वीकार्य है.
इन तस्वीरों में बंद है एक विधवा के जीवन की सच्चाई.
1. वृंदावन के आश्रम में अपनी नई ज़िंदगी में कदम रखती एक ‘विधवा’.
2. Bosnia और Herzegovina में अगर किसी महिला का पति मर जाता है, तो उसे उस समाज से अलग कर दिया जाता है.
3. Uganda में पति की मौत के बाद महिला को अपना हक पाने के लिए, ये साबित करना पड़ता है कि उसके पति की मौत उसकी वजह से नहीं हुई है.
एक ख़ूबसूरत ज़िंदगी सिर्फ़ अपनी सोच के लिए बर्बाद कर देना किसी भी समाज को महान नहीं बना सकता. हम आशा नहीं करते, बल्कि अपनी इस सोच को फ़ैलाने के लिए प्रयासरत हैं कि भारत समेत दुनिया भर के देश एक विधवा को एक इंसान क तरह देखना शुरू करें. उस विधवा के सम्मान से ज़्यादा ये एक समाज की ख़ुद से नज़रें मिलाने की एक पहल होगी.