भ्रूण हत्या जैसी गंभीर समस्या से पंजाब काफ़ी लंबे समय से लड़ रहा है. बीते कुछ वर्षों में इसमें कमी आई है और वहां का लिंग अनुपात भी सुधरा है. इसमें डॉक्टर हरशिंदर कौर जैसी महिलाओं का भी अहम योगदान है. ये पिछले 25 सालों से महिला शक्तिकरण और भ्रूण हत्या जैसी समस्याओं से लड़ रही हैं. उनके काम को देश और विदेश में भी सराहा गया है और कई अवॉर्ड भी मिले हैं. लेकिन ये काम इतना आसान नही हैं, जितना लग रहा है.
यहां से हुई शुरुआत
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डॉ. हरशिंदर कौर और उनके पति एक दिन पंजाब और हरियाणा के बॉर्डर पर स्थित एक गांव में जा रहे थे. उनके पति गुरपाल सिंह भी एक डॉक्टर हैं और दोनों ने दूरदराज के गांव में जाकर लोगों की सेवा करने का संकल्प लिया था. इसलिए वो अक्सर पंजाब के रिमोट एरिया में जाकर लोगों तक फ़्री में मेडिकल सर्विस पहुंचाते थे.
इस गांव के बाहर उन्हें अजीब सी बदबू और किसी के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी. इसे सुनकर वो अपनी कार कूड़े के एक ढेर की तरफ़ ले गए, जहां से ये आवाज़ आ रही थी. यहां डॉ. हरशिंदर ने देखा कि कुछ कुत्ते एक नवजात शिशु को नोचने में लगे हुए हैं. इस घटना के बाद वो गांव पहुंचे और इसका कारण जानने की कोशिश की. यहां एक गांववाले ने बताया कि ये किसी ग़रीब घर की बेटी होगी, जिसे शायद वो दंपत्ति पालना नहीं चाहते थे.
भ्रूण हत्या के खिलाफ़ शुरू की जंग
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ये सुनकर डॉक्टर हरशिंदर को झटका लगा. उन्होंने उसी समय लोगों को भ्रूण हत्या रोकने और बालिकाओं के अधिकारों के प्रति लोगों को जागरुक करने की ठान ली. ये समस्या काफ़ी विकराल रूप धारण कर चुकी थी. बावजूद इसके कि साल 1994 में ही पंजाब सरकार Pre-Conception And Pre-Natal Diagnostic Techniques Act (PCPNDT) पारित कर चुकी थी.
इसके तहत जन्म से पहले बच्चे का लिंग पता करना क़ानून जुर्म था, लेकिन फिर ऐसे मामले थमने का नाम नहीं ले रहे थे. एक आंकड़े के अनुसार, 1996-98 तक पंजाब में भ्रूण हत्या के 60 हज़ार मामले सामने आ चुके थे.
लोग चाहते ही नहीं थे कि उनके घर लड़की पैदा हो
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डॉक्टर हरशिंदर कौर ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए कहा- ‘लोग ये चाहते ही नहीं थे कि उनके घर कोई लड़की पैदा हो. लड़की पैदा होते ही घरवाले उसे और उसकी मां को नज़रअंदाज़ करने लगते थे. बच्ची के बीमार होने पर भी कई परिवारवाले उसका इलाज तक नहीं कराते थे. यहां तक की फ़्री में लगने वाले ज़रूरी इंजेक्शन भी लगवाने नहीं आते थे.’
इससे भी डरावना तो ये था कि लोग ये नहीं जानते थे कि बच्चे का लिंग निर्धारण पति के शुक्राणुओं द्वारा होता है, न कि महिलाओं के अंडाशय. ये बात क्लीनिकली प्रूव भी हो चुकी थी लेकिन जानकारी के अभाव में लोग महिलाओं को ही प्रताड़ित करते थे.
गांव-गांव जाकर लोगों को किया जागरुक
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डॉ. हरशिंदर ने लोगों को इसके प्रति जागरुक किया और गांव-गांव जाकर इसके बारे में लोगों को समझाया. करीब 5 साल लगे उनको सफ़ल होने में. लिंग अनुपात, जो पटियाला के ग्रामीण इलाके में 845/1000 था, वो बढ़कर 1005/1000 हो गया. ख़द डॉक्टर हरशिंदर ने करीब 415 लड़कियों की जान बचाई है.
डॉ. हरशिंदर को कई लोगों का विरोध भी सहना पड़ा. ये एक ऐसी समस्या थी, जो हमारे समाज में जड़ कर चुकी थी. इसलिए महिलाओं को उनका हक़ दिलाने के लिए उन्हें काफ़ी संघर्ष भी करना पड़ा. इसके लिए उन्होंने लोगों को प्रजनन से संबधित बेसिक बातें बताई और साथ ही भ्रूण हत्या के ख़िलाफ बने क़ानूनों का भी सहारा लिया.
ग़रीब परिवार की बच्चियों को मुफ़्त में पढ़ाती हैं
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देश के साथ ही वो विदेशी स्तर पर भी भ्रूण हत्या के ख़िलाफ़ जंग लड़ रही हैं. जिनेवा में हुई ह्यूमन राइट्स कॉन्फ़्रेंस में भी भ्रूण हत्या के खिलाफ दिए गए उनके भाषण और योगदान की सराहना की गई थी. साल 2016 में उनका नाम देश की 100 Women Achievers की लिस्ट में शामिल हुआ था. इसे महिला एंव बाल विकास मंत्रालय हर साल जारी करता है.
52 साल की उम्र में भी लोगों को जागरुक करने में जुटी हैं
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भ्रूण हत्या के साथ ही वो लोगों को दहेज न लेने के प्रति भी जागरुक कर रही हैं. अब तक कनाडा, यूरोप, युएसए, मलेशिया और भारत जैसे देशों के करीब 55000 स्टूडेंट्स दहेज न लेने की शपथ ले चुके हैं. 52 साल की उम्र में भी वो लोगों को जागरुक करने में लगी हुई है.
इनका कहना है कि उन्हें पंजाब में भ्रूण हत्या की समस्या के प्रति लोगों को जागरुक करने में 25 साल लगे. पहले लोग भ्रूण हत्या करने से ज़रा भी नहीं डरते थे, लेकिन अब वो इस बारे में बात करने से भी कतराते हैं.
डॉ. हरशिंदर कौर की जितनी तारीफ़ की जाए, कम है. इनके जैसे लोगों की वजह से ही महिला शक्तिकरण की मशाल जल रही है. आप भी इस नेक काम में इनकी मदद कर सकते हैं. इसके लिए आप उन्हें नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक संपर्क कर सकते हैं.