‘किससे कहें हम अपने दिल का दर्द?’

शाम ढल चुकी थी. काली-काली सड़कों ने बर्फ़ की सफ़ेद चादर ओढ़ ली थी. स्ट्रीट-लैंप ने रौशनी देने के अलावा, बर्फ़ की दुशाला ओढ़ ली थी. आयोना पोटापोव, एक स्लेज ड्राईवर, सफ़ेदपोश बन गया था. जीवित शरीर को जितना झुकाया जा सकता है, आयोना अपने स्लेज पर, उतना ही झुककर बैठा था. वो बर्फ़ से ढक चुका था. उसकी घोड़ी भी बर्फ़ से ढकी, जड़ होकर खड़ी थी. घोड़ी का यूं बिना हिले-डुले खड़े रहना उसे किसी खिलौने जैसा बना रहा था, जिसमें जान न हो. शायद वो भी किसी सोच में डूबी थी. एक ऐसा जीव, जिसे अपने घरवालों से, दोस्तों से, हरे घास के मैदानों से, साफ़-सुथरे झील के पानी से दूर कर दिया हो, वो कुछ तो सोच ही रही होगी. अबला जीव की भी स्मृति तो होती ही है.

बहुत देर से आयोना को कोई सवारी नहीं मिली थी और वो अपनी स्लेज के साथ यूं ही खड़ा था.

तभी तीन नौजवान आये और आवाज़ लगाई, ‘पुलिस ब्रिज चलोगे? हम 3 लोग हैं और 20 रुपये देंगे.’

आयोना स्लेज पर बैठ गया और चाबुक घुमाया. पुलिस ब्रिज तक जाने के लिये 20 रुपये बहुत कम थे पर आयोना के पास ये सब सोचने का वक़्त नहीं था.

नशे में धुत्त तीनों नौजवान, अपशब्द कहते हुये स्लेज पर चढ़ गये. तीनों में इस बात को लेकर झगड़ा हो रहा था कि कौन बैठेगा और कौन खड़ा होकर जायेगा. देर तक झगड़ने के बाद ये तय हुआ कि जो सबसे छोटे कद का है वो खड़ा होकर जायेगा.

आयोना की गर्दन के पास खड़े होकर छोटे कद वाले ने कहा, ‘चलो गाड़ीवान! क्या टोपी है तुम्हारी! कहां से खरीदी? इतनी घटिया टोपी तो पूरे पिटर्सबर्ग में नहीं मिलेगी.’

आयोना ने हंसते हुये कहा, ‘बस खरीद ली है. गर्व की कोई बात नहीं है.’

‘अगर ऐसा है तो चलाओ तेज़. क्या सारे रास्ते ऐसी ही चाल से चलोगे? या फिर तुम्हें लगाऊं एक ज़ोरदार!’

‘मेरे सिर में दर्द हो रहा है. मुझे वास्का के साथ 4 बोतल नहीं चढ़ानी चाहिए थी.’, सबसे लंबे कद वाले ने कहा.

‘साले तू तो नेता से भी ज़्यादा झूठा है.’, अगले ने उसका प्रतिवाद किया.

इनकी बातचीत सुनकर आयोना ने कहा,

‘ख़ुश रहो, मज़े करो!’

‘अबे चुप! गाड़ी चला तेज़ साले बुड्ढे. चाबुक मार साली घोड़ी को.’, छोटे कद वाले ने धमकाया.

आयोना चुपचाप सुनता रहा और आस-पास से गुज़रते लोगों को स्ट्रीट लैंप की रौशनी में देखता रहा. कुछ देर बाद जब वो तीनों शांत हो गये तब आयोना ने कहा,

‘इस हफ़्ते…मेरे बेटे…मेरे बेटे की मौत हो गई.’

छोटी कद वाले ने कहा,’सबको एक दिन मर जाना है. तू गाड़ी हांक बे. कब तक पहुंचायेगा?’

‘क्यों न ज़रा सा उत्साह इसे भी दिया जाये… इसकी गर्दन पे.’

‘सुना साले बुड्ढे? जल्दी चला वरना चलने लायक नहीं छोड़ूंगा!’

आयोना ने सुना और अपनी गर्दन पर एक ज़ोरदार मुक्का महसूस किया.

‘हां हां दोस्तों. भगवान तुम्हें आबाद रखे!’

‘क्या तुम्हारी शादी हो गई है?’ लंबे कद वाले ने पूछा.

‘मेरी? बाबूजी अब तो गिली मिट्टी ही मेरी बीवी है. हा हा हा… कब्र की गिली माटी… मेरा बेटा मर गया और मैं ज़िंदा हूं… अजीब बात है. मौत मुझे आनी चाहिए थी पर वो शायद रास्ता भटक गई और मेरा बेटा चला गया…’

आयोना अपनी बेटे की मौत की कहानी सुनाने के लिए पीछे मुड़ा पर छोटे कद के आदमी ने ख़ुशी से कहा, ‘चलो हम पहुंच गए. ये लो पैसे.’

आयोना अंधेरे की तरफ़ कुछ देर तक देखता रहा. वो फिर से अकेला हो गया था. उसके पास उसकी चुप्पी के अलावा और कुछ नहीं था. दुख कुछ देर के लिए दिल से दूर चला जाता है और फिर दोगुनी ताकत से वापस आता है और दिल को छलनी कर देता है. बेटे की अर्थी उठाने से बड़ा दुख कोई नहीं, और उसके दुख को बांटने वाला कोई नहीं था. अगर दिल सच में टूटता और दर्द बाहर आ सकता तो आयोना के दिल का दर्द पूरे शहर में बाढ़ लाने के लिए काफ़ी था.

‘चलो वापस अस्तबल चला जाये’, उसने ख़ुद से कहा.

आयोना ने सोचा, ‘जितने पैसे आएं हैं, उससे तो एक वक़्त की रोटी भी नहीं खरीदी जा सकती. हद हो गई यार!’

अस्तबल के बाहर लेटा हुआ गाड़ीवान उठा और पानी के घड़े की तरफ़ हाथ बढ़ाने लगा.

‘पानी पियोगे?’, आयोना ने पूछा.

‘हां, प्यास लगी है.’

‘चलो इससे तुम्हारा भला हो पर मेरा बेटा मर गया…दोस्त… सुना तुमने? इसी हफ़्ते… मेरी आंखों के सामने.’

आयोना इन शब्दों का असर देखने के लिये कोचवान की तरफ़ मुड़ा, पर वो मुंह ढंक कर सो चुका था. बुढ़े आयोना ने गहरी सांस ली. उसके बेटे को मरे हुए एक हफ़्ते हो गये हैं पर अभी तक उसे कोई ऐसा नहीं मिला था जिससे वो अपने बेटे की बीमारी, उसकी मौत, उसकी शवयात्रा की बात कर सके. आयोना की बेटी अनीस्या गांव में है, वो उसके बारे में भी बात करना चाहता था.

आयोना ने सोचा बाहर जाकर घोड़ी को एक बार देख आया जाये. सोने के लिये तो वक़्त ही वक़्त है.

आयोना ने घोड़ी से पूछा,

‘क्या चबा रही है तू? ले खा ले, सूखा घास. चने किसी और दिन खा लेना. क्या करूं? बूढ़ा हो गया हूं, अच्छे से काम नहीं कर सकता. मेरे बेटे की उम्र थी अभी गाड़ी चलाने की. उसे तो अभी और जीना था…’

आयोना कुछ देर चुप रहा और फिर अपनी सारी दास्तां, मन की सारी बातें घोड़ी को सहलाते-सहलाते कह डाली.

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29 जनवरी, 1860 को जन्मे Anton Chekhov एक रशियन नाटक और लघु कहानी लेखक हैं. उन्हें संसार के महानतम लघुकथा लेखकों में गिना जाता है. पेशे से डॉक्टर Chekhov शुरुआत में सिर्फ़ आर्थिक उन्नति के लिए लिखते थे. उन्होंने अपनी कहानियों में मनुष्य के भावों और प्रवृत्तियों को बख़ूबी पेश किया है. इसके अलावा रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की छोटी-छोटी बातों को भी उन्होंने तवज्जो दी है. ‘The Steppe’, ‘The Lady With The Dog’ जैसी कहानियां इन्हीं की देन हैं. 1904 में उनका देहांत हो गया, लेकिन उनकी रचनाओं का जादू आज भी पाठकों के सिर चढ़कर बोलता है.