तेलंगाना के मुलुगु की विधायक, दानसारी अनुसूया. 


आमतौर पर हमारे दिमाग़ में विधायकों की छवि, लालबत्ती वाली गाड़ी, कई गार्ड्स, सफ़ेदपोश, जनता के बीच कभी-कभी जाने वाले की है. उत्तर भारत में तो ‘जानते नहीं हो हमको, चचा विधायक हैं हमारे’ वाली बात का भी प्रचलन है. 

दानसारी अनुसूया उर्फ़ सितक्का की छवि इसके ठीक विपरीत है. 

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कौन हैं सितक्का? 

रिपोर्ट्स के अनुसार, सितक्का ने ग़रीबों और आदिवासियों की मदद के लिए मात्र 16 साल की उम्र में हथियार उठा लिया था. कई सालों तक माओवादियों के साथ रहीं सितक्का ने 1997 में 25 की उम्र में सरेंडर कर दिया था. इसके बाद वे समाज से जुड़ गईं. एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने एलएलबी किया, वे वारंगल ज़िला न्यायालय में वक़ालत करती थीं. इसके बाद वे मुख्यधारा राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हो गईं. उनकी लोकप्रियता देख कांग्रेस ने मुलुगु क्षेत्र से उन्हें टिकट दिया और लोगों ने उन्हें चुन लिया. लोगों ने ही उन्हें प्यार से ‘सितक्का’ नाम दिया. 

लॉकडाउन के बाद से ही लोगों के बीच जाकर कर रही हैं मदद 

लॉकडाउन के बाद से ही लोगों के बीच जाकर कर रही हैं मदद 

लॉकडाउन के बाद से ही लोगों के बीच जाकर कर रही हैं मदद 

26 मार्च को उन्होंने कुछ ग़रीबों को अपने कैम्प के दफ़्तर के पास खाना दिया. इसके बाद ग़रीबों और भूखे लोगों की भीड़ लग गई. सितक्का को एहसास हुआ कि पैंडमिक से ज़्यादा लोग भूख और ग़रीबी से परेशान है. इसके बाद सितक्का ने गांव-गांव जाकर लोगों की मदद करने का निर्णय लिया.


Go Hunger Go कैंपेन के ज़रिए वे लोगों की मदद कर रही हैं.  

19 मई के एक ट्वीट के मुताबिक़, सितक्का ने अपने क्षेत्र के 500 गांव में चावल, सब्ज़ियां, तेल और अन्य ज़रूरत का सामान पहुंचाया. 

सितक्का रोज़ सुबह ट्रैक्टर से गांव के लिए निकल पड़ती हैं. कभी कंधे पर राशन की बोरियां तो कभी सिर पर. उबड़-खाबड़ रास्तों पर वो किसी भी आम ग्रामवासी की तरह ही चलती दिखती हैं.

सितक्का को उनकी कार्यों के लिए हृदय से अभिवादन!