सुनी-सुनाई बातें हों, मीडिया की ख़बरें हों या फिर फ़िल्मी चरित्र हों, समाज में पुलिस की ये छवि बन गई है कि इनसे दूरी बना कर रखनी चाहिए, थाने के चक्कर में पड़ने से ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी.

चूंकी पुलिस का मुख्य काम समाज में क़ानून व्यवस्था स्थापित करना है, इसलिए इस काम में थोड़ा सख़्त होना उनकी मज़बूरी भी है और अत्यधिक काम के बोझ की वजह से भी अनचाही परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं.
पुलिस के ऊपर से इस धब्बे को हटाने के लिए IPS अधिकारी विनिता एस. ने महाराष्ट्र के भंडारा ज़िले में एक अनोखी पहल की है.

इस मॉर्डन दुनिया में जहां हर प्रकार की सेवा ग्राहक के दरवाज़े तक पहुंचाई जा रही है, विनिता एस. ने पुलिस और जनता के बीच की दूरी को कम करने के पहलू पर विचार किया. इसके बाद उन्होंने मोबाइल पुलिस स्टेशन की शुरुआत की.
उनका मुख्य उद्देश्य लोगों के दिल से पुलिस के नाम के डर को हटाना था ताकि लोग बिना डर के पुलिस के पहुंचे और अपनी शिकायत उनके साथ साझा करें.
इसके लिए विनिता ने न सिर्फ़ जागरूकता अभियान चलावाया बल्कि पुलिस थाने को लोगों के बीच में लेकर गईं.

विभिन्न गांवों में अस्थायी तौर पर पुलिस थाने जैसी व्यवस्था की गई है, जिसमें एक अधिकारी के साथ दो सिपाही मौजूद होते हैं, जिनमें एक सिपाही महिला होती है. गांववालों की सुविधा के लिए ये थाने गांव की ग्राम पंचायत या स्कूल में लगाए जाते हैं. जहां कोई इमारत नहीं होती, वहां टेंट में ही काम होता है.
इन अस्थायी थानों को धीरे-धीरे सुविधाएं भी दी जा रही हैं. इससे गांव में सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे हैं, गांवों में कई किस्म के अपराधों में गिरावट देखने को मिली है.

इसकी शुरुआत पिछले साल 28 जनवरी को हुई थी. ये चलते-फिरते थाने 17 जगहों पर शनिवार को बैठाये जाते हैं. सभी तरह की कार्रवाई का दस्तावेज़ में ज़िक्र होता है. इससे अब तक कुल डेढ़ लाख लोगों को मदद मिली है.
IPS अधिकारी विनिता एस और उनकी टीम का मानना है कि संचार की कमी की वजह से जनता और पुलिस के बीच ये खाई पनपी है. जो पुलिस ‘सुरक्षा’ का पर्याय है, उसे लोग ‘डर’ का पर्याय समझने लगे हैं. हालांकि उनका मानना है कि सही संचार से लोगों के दिल से इस डर और पुलिस के प्रति तैयार प्रॉपोगैंडा को ख़त्म किया जा सकता है.