जब से रिज़ल्ट अनाउंस होने शुरू होए हैं, तब से सोशल मीडिया उन तस्वीरों से पटी पड़ी हैं जिनमें छात्रों को नंबर 90 प्रतिशत से ज़्यादा है. अगर सिर्फ़ सोशल मीडिया पर डाली गई पोस्टों का सर्वेक्षण करें, तो पाएंगे कि भारत में किसी बच्चे के नंबर 90 से कम ही नहीं आते.
सच्चाई सब को पता है, बस लोग कम नंबर लाए बच्चों के रिज़ल्ट पर छाती चौड़े कर पोस्ट नहीं डालते. शायद शर्म महसूस करते हों कि उनके घर के बच्चे 90 के पार नहीं गए.
फ़ेसबुक पर एक मां ने बहुत ही प्यारी बात कही, उसके बेटे ने दसवीं के परिक्षा में 60 प्रतिशत नंबर लाए. Vandana Sufia Katoch ने अपने बेटे आमिर के बारे में लिखा कि उन्होंने अपने बेटे को कई विषयों में आखिरी हद तक संघर्ष करते देखा है लेकिन अंतिम के डेढ़ महीने में उसने मेहनत कर अपना सब कुछ झोंक दिया.
Vandana ने अपने बेटे के बारे में पोस्ट किया है,’मुझे अपने बेटे पर गर्व है, जिसने 10वीं के बोर्ड्स में 60 परसेंट मार्क्स स्कोर किये।हां ये 90 नही है, लेकिन इससे फ़र्क नहीं पड़ता मैं क्या महसूस कर रही हूं. क्योंकि मैंने कुछ विषयों में उसे हार मानने की हद तक संघर्ष करते देखा है और फिर अंतिम डेढ़ महीने में पूरा ज़ोर लगा कर ये हासिल किया! ये तुम्हारे लिए है, आमिर. और तुम्हारे जैसी और मछलियों के लिए, जिन्हें पैर पर चढ़ने के लिए कहा जाता है. इस बड़े समंदर में अपना ख़ुद के कोर्स का चार्ट बनाओ, मेरे प्यारे बच्चे. और अपने भीतर की अच्छाई, उत्सुक्ता और दयालुता को ज़िंदा रखो. और ख़ासकर अपने अजीब सेंस ऑफ़ ह्यूमर को भी!’
90 प्रतिशत से ज़्यादा नंबर लाने वाले बच्चों के रिश्तेदारों को शायद न पता हो, वो बस ख़ुशी में पोस्ट करते हों लेकिन इसकी वजह से उन बच्चों पर मानसिक दबाव बनता है, जिनके नंबर तुलनात्मक रूप से कम होते हैं. उन रिश्तेदारों को ख़ुद से सवाल पूछना चाहिए कि क्या अपने बच्चे को औसत प्रदर्शन के बावजूद सोशल मीडिया पर उसे पोस्ट करते?