2010 में मंदी के कारण कई लोगों ने अपनी नौकरियां गंवाई थी. लंदन के सुजय साहनी भी उन्हीं लोगों में से एक थे. सुजय सोहानी ने मंदी के कारण 5-Star होटल में Food And Beverage Manager की नौकरी खो दी. सुजय की हालत ऐसी हो गई थी की गुज़ारा करना भी मुश्किल हो रहा था.

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ऐसे वक़्त में सुजय ने अपने कॉलेज के दोस्त, सुबोध जोशी से मदद मांगने की सोची. परेशान होकर सुजय ने अपने दोस्त से कहा कि उसके पास वड़ा पाव खरीदने तक के पैसे नहीं थे. किसने सोचा था कि मजबूरी से भरा उनका ये डायलॉग ही उन दोनों की ज़िन्दगी बदल देगा.

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कुछ दिन बाद सुजय को एक दमदार आईडिया आया. उन्होंने सोचा कि क्यों ना लंदन की सड़कों पर वड़ा पाव बेचा जाए? आईडिया तो आ गया पर उसका Implementation आसान नहीं था. दोनों दोस्तों ने अपने ओस आईडिया पर सोच-विचार किया और शहर में ऐसी जगहें ढूंढी जहां पर वे अपना स्टॉल लगा सकते थे.

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सुजय ने बताया,

‘Hounslow एक अच्छी जगह लगी, क्योंकि वहां South-East Asia के काफ़ी लोग आते थे. हम वहीं पर स्टॉल ढूंढने लगे. वहां हमें एक Polish Cafe दिखा जो उतना अच्छा बिज़नेस नहीं कर रहा था. हमने उस Cafe के मालिक से बात की और उन्होंने हमें दो टेबल लगाने की इजाज़त दे दी. हमने उसे 400 Pound(लगभग 35000 रुपये) महीने देने का वादा किया.’
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15 अगस्त, 2010 को सुजय और सुबोध ने लंदनवासियों के लिए अपना स्टॉल खोला. सुजय ने बताया,

‘हमने सबसे पहले 1 Pound (लगभग 80 रुपये) में वड़ा पाव और 1.50 Pound(लगभग 131 रुपये) में दाबेली बेचना शुरू किया.’ दोस्तों और रिश्तेदारों ने प्रोत्साहित किया पर पहले महिने में मुनाफ़ा ना के बराबर था.
‘हम अपने प्रोडक्ट को पॉपुलर बनाना चाहते थे, इसके लिए ज़रूरी थी Advertising.’
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इसके बाद दोनों दोस्तों ने Hounslow के भीड़-भाड़ वाले सड़कों पर लोगों को फ़्री का वड़ा पाव चखाना शुरू किया. सुजय ने अपनी बिज़नेस स्ट्रैटजी के बारे में बताते हुए कहा,

‘हमने अपने आइटम को इंडियन बर्गर बोलकर लोगों को खिलाना शुरू किया. आस-पास के रेस्त्रां में बर्गर 5 Pound(लगभग 440 रुपये) से कम नहीं मिलता था. जो बर्गर लोग खाते थे, उसी का इंडियन Version हमने उससे आधे दाम में उपलब्ध करवाया.