अपने शहर से बहुत सारे सपने लेकर जब दिल्ली में क़दम रखा, तो यहां की भागदौड़ देखकर थोड़ा सा डर गई. अकेले आने-जाने से थोड़ा सा हिचक गई. मगर मेरी दीदी यहां रहती थी, तो थोड़ा डर कम हो गया. उसने मुझे यहां के बारे में काफ़ी कुछ बता दिया था. जैसा सबको बताया जाता है ज़्यादा किसी से बोलना नहीं, बस में अपने पर्स का ध्यान रखना और कोई अपनी आपबीती बताकर पैसे मांगे तो मत देना. ये सब तो मैं समझ गई.

मैं एक छोटे शहर से हूं और दिल्ली में पढ़ने का सपना लेकर आई थी, तो मेरे कॉलेज का पहला दिन था. सुबह उठी तैयार हुई और हाथ में घर से कॉलेज तक जाने का नक्शा लेकर निकल गई. बस स्टैंड पर पहुंची तो थोड़ी देर के इंतज़ार के बाद बस मिल गई. वो आधे घंटे के रास्ते में दिल और दिमाग़ इतनी तेज़ गति से दौड़ रहे थे कि अगर मापा जाता तो बस की स्पीड भी कम पड़ जाती.

फिर कॉलेज पहुंच गई. कॉलेज का पहला दिन था, मेरे शहर की ज़िंदगी और यहां की ज़िंदगी में बहुत बदलाव था, लेकिन पहला दिन बहुत अच्छा बीता. उसी दिन एक दोस्त भी बन गई थी. 

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कॉलेज टाइमिंग ओवर होने के बाद फिर बस स्टैंड पहुंची. मेरी बस आ गई, उसमें बैठकर घर के लिए रवाना हो गई. आधे घंटे बाद जैसे ही मेरा स्टैंड आया तो मैं इस बार आगे से नहीं पीछे से उतरने लगी और उसने बस की स्पीड बढ़ा दी. मैं इतनी तेज़ से बस गिरी, कि मुझे हाथ और पैर में बहुत चोट आई. वो चोट आज 7 साल बाद भी पुरवइया (पूरब से चलने वाली हवाएं) चलने पर दर्द होती है. मैं नई ज़रूर थी उस शहर के लिए, लेकिन उस शहर के लोगों ने मुझे उठाया. रोना तो बहुत आ रहा था मगर चुप रही.

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घर पहुंची जब दीदी घर आई तो उसे सब बताया. उसने तब मुझे बताया कि बस में पीछे से नहीं उतरते. मैंने उसको बोला अगर ये बात भी उन सब बातों के साथ बताई होती तो ये चोट नहीं लगती. जब कभी ये चोट दर्द होती है तो बस से गिरना नहीं, वो छोटे शहर से बड़े-बड़े सपने लेकर आई लड़की याद आती है. बस का सफ़र आज भी जारी है, बस में चढ़ने वाले कई लोगों को पीछे से उतरते भी देखती हूं, मगर मेरी हिम्मत आज भी पीछे से उतरने की नहीं होती.

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