पूरी दुनिया, मैं, आप, सब अपने-अपने जीवन में मस्त,आने वाले कल के लिए अपनी एक Bucket List बनाने में लगे हुए थे. मगर लाइफ़ प्लानिंग के हिसाब से कभी नहीं चलती है बॉस. 

किसी को नहीं पता था जल्द ही सब की लम्बी चौड़ी प्लानिंग पर एक Full Stop लगने वाला है. चीन से निकले एक वायरस ने पूरे ब्रह्मांड में तहलका मचा दिया था. 

जब भारत में 500 केस भी नहीं हुए थे उससे पहले ही मेरे दफ़्तर ने वर्क फ़्रॉम होम दे दिया था. सच बोलूं तो मैंने घर जाने के बारे में सोचा नहीं था. हां, घर पर जब बताया तो वही हमेशा की तरह मम्मी-पापा बोले हमारे पास आ जाओ लेकिन मैंने मना कर दिया. 

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दिल्ली में मुझे रहते हुए 2 साल हो गए हैं. मुझे यहां बेहद अच्छा लगता है. यहां वो हर चीज़ करने की मेरे पास आज़ादी है, जो मुझे घर पर नहीं मिलती और कई छोटी-छोटी बातें. 

ख़ैर, घर वालों को कुछ जमा नहीं और मेरे पापा बिन बताए ‘जनता कर्फ़्यू’ से एक दिन पहले मुझे दिल्ली लेने आ गए. अब कोई नहीं, मैंने मन में सोचा एक तरह से ठीक ही है, बर्तन धोने से लेकर खाना बनाने तक हर तरह के काम घर पर मिल जुलकर आसानी से हो जाएंगे. 

शुरू के एक-दो दिन तो सब ठीक रहा. मगर तीसरे-चौथे दिन से ही मैंने देखा मम्मी-पापा हर वक़्त, हर चीज़ के लिए टोका-टाकी करने लगे. 

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अब माना वर्क फ़्रॉम होम है, तो हम सब थोड़ा रिलैक्स हैं. आराम से बिस्तर पर पड़े बिना बॉस कि नज़रों की परवाह किए, एक दम Chill मोड में काम कर सकते हैं. 

अभी एक दिन ऐसे ही अपने ऑफ़िस का काम कर रही थी, आर्टिकल लिखने से पहले रिसर्च कर रही थी. उतने में पापा आकर बोले, “ले ज़रा, मौसी से बात कर ले.” मैंने पापा की तरफ़ देखते बोला पापा मैं काम कर रही हूं, अभी नहीं कर सकती. उस पर पापा ग़ुस्सा होकर बोले, “अरे! 5 मिनट हाल-चाल जान लेगी तो क्या हो जाएगा? ऐसे दिखा रही है जैसे सारा काम यही करती है.” अब पापा को कैसे समझाया जाए भाई?

अच्छा, शुरू में जब में घर आई तब मुझे किसी का भी फ़ोन आता मम्मी तुरंत पूछती किसका फ़ोन है? कौन है? तो मैं बता देती थी. मगर ये कहानी रोज़ कि सी होने लगी तो मैंने मां से बोला कि मुझे नहीं पसंद आप मुझसे बार-बार पूछते हो कि कौन, कहां, कैसे? ख़ैर, मम्मी ने अगले दो-तीन दिन तो नहीं पूछा मगर अब फिर से वो डिटेक्टिव मम्मी बन गई हैं.   

मैं चीज़ों को लेकर ज़्यादा परेशान नहीं होती कि जो जहां है वहीं रहें. मगर मम्मी है. मम्मी हर दूसरे दिन मुझे चिल्लाती है कि ये लड़की हर चीज़ इधर-उधर कर देती है.   

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आजकल माहौल ऐसा हो गया है कि रात को 3-4 बजे से पहले नींद नहीं आती है. मेरे घर पर सबको 10 बजे सोने की आदत है. घरवाले तो सो जाते हैं मगर मैं रात को या तो बालकनी में खड़ी हो कर आसमान निहार रही होती हूं या फिर इलेक्ट्रॉनिक स्क्रीन पर लगी रहती हूं. ऐसे में जब भी रात को मम्मी या पापा मुझे देख लेते हैं तो मुझे समझाना शुरू कर देते हैं. उन्हें लगता है मैं बहाना मार रही हूं कोई. 

मेरे पापा को न्यूज़ देखने का बड़ा क्रेज़ है. न्यूज़ चैनल देखते रहते हैं या ऑनलाइन न्यूज़ पढ़ते रहते हैं. ऐसे में यदि कोई चीज़ उनको पसंद आती है तो वो पूरे घर को दिखाएंगे फिर भले आपकी उसमें कोई दिलचस्पी हो या न. 

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मैं जानती हूं सुबह जल्दी उठना चाहिए लेकिन नहीं होता है रे बाबा! और अब जबकि मैं घर पर हूं तो आप समझ लीजिये ये तो मेरा रोज़ का रोना है. हर रोज़ घरवाले देर तक सोने के लिए ताने मारते हैं.(ख़ैर, ये दुख-भरी दास्तां और किस-किस की है?) 

मुझे लम्बे समय से ही चेहरे पर पिम्पल की शिकायत रही है. मैंने बहुत हद तक अपने तरीक़े से इसे स्वीकारा भी है. मगर अब जब मैं घर पर हूं तो मुझे हमेशा ये लगाया करो, ये मत किया करो, वो खाओ- वो नहीं कि राय मिलती रहती है. जो मुझे नहीं पसंद आती है. 

जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं आपको प्राइवेसी का महत्व समझ आता है. जो फैमिली को शायद जंचता नहीं है. मैं अपने आप को कभी भी अकेला नहीं पाती. मेरे पास ख़ुद के लिए समय ही नहीं है. 

फ़ोन हम सब की ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बन गया है. हमारी पूरी दुनिया उसमे हैं. ऐसे में फ़ोन पर लगे रहना एक आदत से ज़्यादा अब ज़रूरत बन गया है. मैं अपने तमाम ऑफ़िस के काम से लेकर निजी सब उसमें करती हूं. जो कि मेरे(शायद आपके भी) माता-पिता को लगता है मैं दिन-भर बेफिज़ूल उसमें लगी रहती हूं. कोई तो उन्हें समझा दो यार! 

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नहीं मैं उनसे नफ़रत नहीं करती, बेहद प्यार करती हूं. 

बस समझ नहीं आ रहा था कि मुझे इतनी दिक़्क़त क्यों हो रही है उनके साथ रहने में? मुझे अपनी सोच पर गिल्ट हो रहा था. कई साल से बाहर रहने की वजह से मुझे चीज़ें अपने तरीक़े से करने की आदत पड़ गई है.(इसमें कुछ ग़लत भी नहीं है.) इसलिए अब जब मुझे उनके साथ रहना था तो एडजस्ट करने में बेहद दिक्कत हो रही थी. 

थोड़ा, रुक कर सोचा तो समझ आया कि अपने शहर और घर से दूर मैं तो निकल गई अपनी तलाश में कि मेरा आने वाला समय कैसा होगा, अपना एक भविष्य बनाने. और इस प्रोसेस में लाज़मी है कि मैं बदलूंगी. चीज़ों, रिश्तों और ख़ुद को लेकर भी मेरा नज़रिया बदलेगा. मगर मेरे घर वाले वो तो वही हैं, उन्होंने अपनी ज़िंदगी एक तरह से जी ली है अब उनमें बदलाव कि उम्मीद करना थोड़ा मुश्किल है. हां, उनकी कुछ बातों का अब मुझे बिलकुल सिर-पैर समझ नहीं आता !     

वैसे अब तो घर में रहते- रहते 2 महीने हो गए हैं . जब से घर से दूसरे शहर की तरफ़ निकली हूं ये अब तक का सबसे ज़्यादा परिवार के साथ बिताया हुआ समय है. पीछे मुड़कर देखती हूं तो जान पाती हूं कि इन सालों में कितना कुछ बदला है. मगर आख़िर, में फ़ैमिली तो फ़ैमिली ही है. हां, लड़ाई- झगड़े और Adjustments अभी भी जारी हैं. 

इन सब के साथ मैं एक बात और ज़रूर शेयर करना चाहूंगी कि इन सब लड़ाई, नोक-झोंक और एडजस्टमेंट के बीच में ख़ुद को बहुत ख़ुशनसीब समझती हूं कि मेरे पास एक घर है जहां मैं अपनों के बीच इस मुश्किल समय से लड़ सकती हूं. 

Awesome Illustration by Aprajita