देवी के नौ रूपों और नौ शक्ति का प्रतीक है नवरात्री का त्यौहार. इसका हिंदू धर्म में बहुत ज़्यादा महत्व होता है. जिस दिन से नवरात्री शुरू होते हैं उस दिन से घरों में पूजा-पाठ का माहौल देखने को मिलता है. कहते हैं न जब भगवान आते हैं, तो हवाओं में भी उनकी शक्ति और ख़ूशबू महसूस होती है. ऐसे ही कुछ ये नौ दिन भी होते हैं. सुबह-सुबह पूजा घर से कपूर की ख़ूशबू आना और फूल मालाओं से सजी देवी का तेज़ देखने लायक होता है. नवरात्री में 9 दिन व्रत करने से घर में सुख-शांति आती है.

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नवरात्री शक्ति, आस्था, प्रेम और क्रोध सारे भाव का मेल है. नवरात्री को लेकर कई तरह की कहानियां जुड़ी हैं, लेकिन आज हम आपको नौ दिन की नौ देवियों के बारे में नहीं, बल्कि इस व्रत को किसने सबसे पहली बार किया और क्यों वो बताएंगे? 

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नवरात्री की कथा को लेकर बहुत सारी कहानियां जुड़ी हैं कि इस व्रत को करने से घर में सुख-शांति आती है. ये नौ दिन देवी अपने भक्तों की पूजा से प्रसन्न होकर उन पर अपनी कृपा बरसाती हैं. साथ ही ये व्रत को करने से विद्या, धन, संतान और वैभव हर चीज़ की प्राप्ति होती है. एक पौराणिक कथा के अनुसार, बृहस्पति जी ने ब्रह्माजी से पूछा कि नवरात्र को चैत्र और आश्विन मास के शुक्लपक्ष में ही क्यों किया जाता है? मुझे इसका कारण जानना है.

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तभी ब्रह्माजी ने ब्रहस्पति जी के सवाल का जवाब देते हुए बताया कि ये व्रत मनुष्यों के लिए क्यों ज़रूरी है वो बताता हूं, हे बृहस्पतेय! इस व्रत को सबसे पहले जिसने किया था उसके बारे में मैं बताता हूं, प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठत् नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था, जो भगवती दुर्गा का भक्त था. उसकी एक सुमति नाम की सद्गुणी और सुंदर कन्या थी. एक दिन वो खेल के चक्कर में मां दुर्गा की पूजा करना भूल गई थी तो उसके पिता ने इस बात से क्रोधित होकर गुस्से में कहा कि मेैं तेरा विवाह कुष्ठ रोगी या दरिद्र मनुष्य के साथ करुंगा.

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अपने पिता की ऐसी बातें सुनकर सुमति बोली, हे पिता! मैं आपकी कन्या हूं तो आप जो बोलेंगे वो मैं मानूंगी. इस तरह जो मेरे भाग्य में लिखा है, वो तो होगा ही. अपनी बेटी की निडरता से गुस्सा हो उस ब्राहम्ण ने अपनी बेटी का विवाह एक कुष्ठ रोग (जो कोढ़ से पीड़ित होता है) से कर दिया. इसके बाद वो अपने पति के साथ वन में चली गई.

उस गरीब लड़की की दशा देख देवी भगवती प्रकट हुईं और उससे कहा, हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुम्हारे पिछले जन्म में किए कामों से प्रसन्न हूं पिछले जनम में तुम्हारे पति निषाद ने चोरी की और इस कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़कर जेल खाने में कैद कर दिया. कैद में रहने के चलते तुमने और तुम्हारे पति ने नवरात्र के दिन कुछ खाया न पिया इस प्रकार तुम्हारे नौ दिन के व्रत हो गए.

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उसी व्रत से प्रसन्न होकर मैं तुझे फल देना चाहती हूं, जो इच्छा हो मांग लो. तब ब्रह्मणी ने मांगा कि मेरे पति के कोढ़ को दूर कर दीजिए. इस प्रकार ब्राह्मणी को देवी ने फल के रूप में उसके पति को कोढ़ से मुक्त कर दिया.

तब ब्राह्मणी ने देवी की स्तुति की और कहा हे दुर्गे! आप दुखों को हरने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली, लोगों को उनके इच्छानुसार वर देने वाली हो.

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ब्राह्मणी की इन बातों को सुनकर देवी बहुत प्रसन्न हुईं और कहा- हे ब्राह्मणी! बहुत जल्द तेरा एक उदालय नाम का बुद्धिमान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र होगा. इतना कह देवी व्रत की विधि बताकर अदृश्य हो गईं. 

अब जान लीजिए की हर दिन आप देवी के नौ रूपों कौन सा श्लोक पढ़ें, उसको क्या भोग लगाएं, जिससे वो आपसे प्रसन्न हो जाएं: 

पहले दिन घी

पहला दिन शंकरजी की पत्नी और अनंत शक्ति वाली मां शैलपुत्री का होता है. नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री का होता है. इस दिन मां को घी का भोग लगाते हैं इसे लगाने से भक्त निरोगी और दुखों से मुक्त रहते हैं.

दूसरे दिन शक्कर

नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी का होता है. इनको शक्कर पसंद है इसलिए शक्कर का भोग लगाने से उम्र लंबी होती है.

तीसरे दिन दूध

मां चंद्रघंटा को दूध या दूध से बनी खीर और मिठाइयों का भोग लगाने से भक्तों को दुखों से मुक्ति मिलती है. 

चौथा दिन मालपुआ

मां कूष्मांडा की पूजा-अर्चना करने से मानसिक शक्ति बढ़ती है. मां को मालपुए का बोग लगाने से वो प्रसन्न होती हैं.

पांचवां दिन केला

पांचवें दिन यानि पंचमी को देवी स्कंदमाता की पूजा होती है उन्हें केले का भोग लगाने से शारीरिक कष्ट दूर होते हैं.

छठा दिन शहद

शहद और मीठे पान का भोग लगाने से मां कात्यानी प्रसन्न होती हैं.

सांतवां दिन गुड़

मां कालरात्रि की पूजा होती है. इनकी पूजा करने से नकारात्मक शक्तियों से बचने की शक्ति मिलती है. इस दिन माता को गुड़ का भोग लगाते हैं. 

आठवां दिन नारियल

आठवां दिन देवी महागौरी का होता है. अन्न-धन देने वाली देवी के इस स्वरूप को नारियल चढ़ाते हैं. कहते हैं नारियल चढ़ाने से संतान सुख की प्राप्ति होती है. 

नौवें दिन अनार

माता सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना के साथ उन्हें अनार का भोग लगाते हैं. ये देवी सुख और सिद्धी की देवी होती हैं. होता है. 

॥या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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