Parsi Community of India: भारत का पारसी समुदाय विश्व स्तर पर सबसे सफल अल्पसंख्यक और प्रवासी समूहों में से एक है. भारत की आबादी का 0.0005% हिस्सा होने के बावजूद  इस प्रवासी समुदाय के लोगों का भारत की अर्थव्यवस्था, व्यापार और उद्योग में अहम योगदान है. लेकिन देश के लिए चिंता की बात है कि पिछले कुछ सालों से पारसी समुदाय (Parsi Community) की आबादी तेज़ी से घट रही है. भारत में आज ‘पारसी समाज’ की आबादी महज़ 57,264 रह गई है. बावजूद इसके इसका भारत की GDP में अहम योगदान रहता है.

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भारत में ‘मेक इन इंडिया’ का नारा साल 2014 से ज़ोरों शोरों पर है, लेकिन ये नारा असल में भारत के ‘पारसी समुदाय’ पर सटीक बैठता है. पिछले 1000 सालों से ये समुदाय ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देता आ रहा है. 10वीं शताब्दी से भारत में व्यापार, परोपकार और समाज के उत्थान के लिए इसका बहुत बड़ा योगदान रहा है. देश में न केवल व्यापार बल्कि स्वास्थ्य सेवा, कला, सामाजिक बुनियादी ढांचे, शिक्षण संस्थानों, पुस्तकालयों, सार्वजनिक स्थानों, सामाजिक विकास और ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में ‘पारसी समुदाय’ का अमूल्य योगदान रहा है.

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दरअसल, ये सिलसिला क़रीब 1300 साल पहले उस वक़्त शुरू हुआ, जब फ़ारस की खाड़ी (आज का ईरान) में बुत-परस्ती की ख़िलाफ़त करने वालों ने इस अमन-पसंद कारोबारी समाज पर ज़ुल्म ढाए और ये किसी तरह अपनी जान बचाकर हिन्दुस्तान आ पहुंचे. तब हिंदुस्तान में पारसियों को गुजरात के ‘जादव राणा’ की रियासत ने सबसे पहले पनाह दी. इसके बाद ये समुदाय ‘गुजरात का पारसी समाज’ कहलाया गया.

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1- कावसजी नानाभाई दावर

बात फ़रवरी 1854 की है. भारतीय उद्योग-धंधों पर तब अंग्रेज़ों का राज हुआ करता था. लेकिन तब बंबई शहर में एक सूत कारख़ाना (कॉटन-मिल) खोला गया था. हिंदुस्तान में ऐसा पहली बार हो रहा था जब किसी हिंदुस्तानी द्वारा ख़ुद का कारख़ाना खड़ा किया गया था. इस कारख़ाने की शुरुआत करने वाले कावसजी नानाभाई दावर (Cowasji Nanabhai Davar) थे, जो पारसी समुदाय से ताल्लुक़ रखते थे. लेकिन भारत में ‘पारसी समाज’ की असल शुरुआत सन 1870 के आस-पास हुई. तब गुलाम हिंदुस्तान के एक शख़्स ने ‘हिंदुस्तानी उद्योग, हिंदुस्तानियों द्वारा, हिंदुस्तानियों के मुताबिक़, हिंदुस्तानियों के लिए हो’ ऐसा ख़्वाब देखा था. इस शख़्स का नाम जमशेतजी नुशेरवांजी टाटा था.

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2- जमशेतजी नुशेरवांजी टाटा

सन 1868 में पारसी कारोबारी जमशेतजी नुशेरवांजी टाटा (Jamsetji Nusserwanji Tata) ने 21,000 रुपये के साथ एक ट्रेडिंग कंपनी की स्थापना की. 1869 में उन्होंने बॉम्बे के चिंचपोकली की एक दिवालिया Oil Mill ख़रीदी और इसे एक Cotton Mill में बदल दिया. इसका नाम उन्होंने Alexandra Mill रखा. लेकिन 2 साल बाद उन्होंने ये मिल अधिक पैसों में बेच दी. सन 1874 में जमशेतजी टाटा ने नागपुर में ‘सेंट्रल इंडिया स्पिनिंग, वीविंग एंड मैन्युफ़ैक्चरिंग कंपनी’ शुरू की शुरुआत की. इसके बाद जमशेतजी टाटा की इस विरासत को दोराबजी टाटा ने आगे बढ़ाया. हिन्दुस्तान को सन 1907 में ‘लोहे का पहला कारख़ाना’ उन्होंने ही दिया था. तीसरी पीढ़ी में जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा (जेआरडी टाटा) ने सन 1932 हिन्दुस्तान को उसकी पहली एयरलाइंस (एयर इंडिया) दी.

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3- आर्देशिर ईरानी

भारत में सन 1909 से लेकर सन 1930 तक मूक फ़िल्म (Silent Film) ही बनती थीं. लेकिन उस दौर में पारसी परिवार से ताल्लुक़ रखने वाले आर्देशिर ईरानी (Ardeshir Irani) ने सन 1931 में हिंदुस्तान को ‘आलम-आरा’ के रूप में पहली बोलती फ़िल्म (Sound Film) दी थी. आर्देशिर ईरानी ने साल 1922 में साइलेंट फ़िल्म Veer Abhimanyu से अपने निर्देशन करियर की शुरुआत की थी.

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4- शापूरजी पालोनजी मिस्त्री

सन 1960 में हिंदी सिनेमा की ऐतिहासिक फ़िल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ को परदे पर लाने का सपना भी एक पारसी ने ही साकार किया था. अगर उस वक़्त निर्देशक के. आसिफ़ के कांधे पर पारसी कारोबारी शापूरजी पालोनजी मिस्त्री (Shapoorji Pallonji Mistry) का हाथ नहीं होता तो हिंदी सिनेमा को ये बेहतरीन को फ़िल्म नहीं मिल पाती. उस ज़माने शापूर जी पालोन जी मिस्त्री ने 1.5 करोड़ रुपये ख़र्च किये थे.

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5- होमी जहांगीर भाभा

भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक होमी जहांगीर भाभा (Homie Jehangir Bhabha) भी पारसी समुदाय से ही ताल्लुक़ रखते थे. होमी भाभा भारत के प्रमुख परमाणु भौतिक विज्ञानी थे. उन्होंने मार्च 1944 में अपने कुछ वैज्ञानिकों साथियों को साथ लेकर न्यूक्लियर एनर्जी पर रिसर्च की थी. सन 1945 में वो परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फ़ंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफ़आर) के संस्थापक निदेशक बने. इसके बाद सन 1948 में डॉ. भाभा ‘परमाणु शक्ति आयोग’ के चेयरमैन बने. सन 1954 में भारत सरकार द्वारा उन्हें ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया था.

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6- फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ

सन 1971 के ‘भारत-पाकिस्तान युद्ध’ के हीरो रहे सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) भी एक पारसी परिवार से ताल्लुक़ रखते थे. उनका पूरा नाम ‘सैम होर्मसजी फ़्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ‘ था. वो ‘फ़ील्ड मार्शल’ की रैंक हासिल करने वाले भारतीय सेना के पहले सैनिक थे. भारतीय सेना में उन्हें ‘सैम बहादुर’ के नाम से भी जाना जाता था. सन 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान वो ‘भारतीय सेना’ के ‘सेना प्रमुख’ थे. भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म विभूषण’ और ‘पद्म भूषण’ से भी सम्मानित किया था. 

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7- रतन टाटा

आज ‘टाटा फ़ैमिली’ की विरासत को दुनियाभर में फैलाने का श्रेय रतन टाटा (Ratan Tata) को जाता है. भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति, निवेशक, परोपकारी और टाटा संस के पूर्व अध्यक्ष रतन टाटा देश के सबसे बड़े पारसी कारोबारी परिवार की चौथी पीढ़ी के सदस्य हैं. उन्हें भारत के सबसे शक्तिशाली सीईओ के रूप में भी स्थान दिया गया है. देश में उद्यमिता, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास के हिमायती रतन टाटा को साल 2008 में ‘पद्म विभूषण’ और साल 2000 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया जा चुका है. 

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9- सायरस पूनावाला

साल 2020-21 में जब कोरोना महामारी ने दुनियाभर में कहर बरपाया था उस वक़्त पारसी समुदाय से ताल्लुक़ रखने वाले सायरस एस पूनावाला (Cyrus S. Poonawalla) ने मेक इन इंडिया ‘वैक्सीन’ बनाकर देश के हज़ारों लोगों की जान बचाई थी. दुनियाभर में सबसे पहले ‘कोरोना वैक्सीन’ बनाने वालों में देश का ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया’ भी एक था. ये संस्थान देश के प्रमुख टीका उत्पादक के तौर पर जाना जाता है. उद्योगपति, फ़ा र्माकोलॉजिस्ट और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया के संस्थापक डॉ. सायरस पूनावाला को भारत सरकार ‘पद्मश्री’ से भी सम्मानित कर चुकी है.

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9- अर्देशिर बुर्जोरजी सोराबजी गोदरेज

19वीं सदी में ‘टाटा फ़ैमिली’ के अलावा भारत को जिस पारसी परिवार ने ‘मेक इन इंडिया’ का अहसास कराया वो ‘गोदरेज फ़ैमिली’ ही थी. सन 1897 में संस्थापक अर्देशिर बुर्जोरजी सोराबजी गोदरेज (Ardeshir Burjorji Sorabji Godrej) के नेतृत्व में ‘गोदरेज समूह’ की कंपनियों ने देश को पहली बार ‘मेक इन इंडिया’ उपभोक्ता वस्तुओं (Consumer Goods) से लेकर रसायनों (Chemicals) तक से रू-ब-रू कराया. आज ‘गोदरेज समूह’ केवल व्यवसाय ही नहीं, बल्कि ‘परोपकारी कार्य’, ‘स्वयं सहायता समूह’, ‘सामाजिक विकास कार्य’ और ‘शिक्षा व साक्षरता’ के कार्य भी कर रहा है.

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इनके अलावा भी पारसी समाज से ‘वाडिया’, ‘मिस्त्री’, ‘दारूवाला’ जैसे कई बड़े नाम हैं जो देश में कई पीढ़ियों से कारोबार कर रहे हैं. इनकी फ़ेहरिस्त और भी लंबी है.

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