‘बैंडिट क्वीन’ के नाम से मशहूर फूलन देवी के बारे में तो आप सभी जानते ही होंगे कि कैसे बीहड़ों की एक डकैत देश की संसद तक पहुंची. कुछ ऐसी ही दिलचस्प कहानी है दस्यु सुंदरी फूलन देवी की. 

 इस घटना ने फूलन को बनाया ‘बैंडिट क्वीन’ 

14 फ़रवरी 1981 को उत्तर प्रदेश के कानपुर के पास ‘बेहमई कांड’ हुआ था. इस दौरान फूलन देवी और उसके 35 साथियों ने 20 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. इस बहुचर्चित हत्याकांड ने ही फूलन देवी को ‘बैंडिट क्वीन’ बनाया. 

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कैसे बनी फूलन देवी डकैत? 

फूलन देवी के पिता की 40 बीघा ज़मीन पर उनके चाचा ने जबरन कब्जा कर लिया था. 11 साल की उम्र में फूलन ने जब चाचा से ज़मीन वापस मांगी तो चाचा ने फूलन पर डकैती होने का केस दर्ज कर जेल भिजवा दिया. जेल से छूटने के बाद फूलन असल के डकैतों के संपर्क में आने लगी. लेकिन इस दौरान एक दूसरी गैंग के डकैतों ने फूलन देवी का गैंगरेप कर दिया. 

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इसी का बदला लेने के लिए फूलन ने 14 फ़रवरी 1981 को ‘बेहमई कांड’ को अंजाम दिया. इस दौरान फूलन की गैंग ने 20 लोगों को गोलियों से भून दिया था. इसी घटना के बाद ही फूलन देवी ‘बैंडिट क्वीन’ कहलाने लगी. इसके बाद फूलन देवी ने कई सालों तक मध्य प्रदेश व यूपी पुलिस की नाक में दम कर दिया था. 

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इस कांड के बाद दोनों ही राज्यों की पुलिस ने कई बार फूलन देवी से सरेंडर करने को कहा, लेकिन उसने साफ़ तौर पर इंकार कर दिया था. इस दौरान तत्कालीन भिंड के एसपी राजेन्द्र चतुर्वेदी ने फूलन देवी को सरेंडर के लिए तैयार कर लिया था, लेकिन इस बीच फूलन के साथ एमपी में ऐसी घटना हो गई, जिससे वो फिर से बीहड़ में कूदने को तैयार हो गई. 

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दरअसल, राजेन्द्र चतुर्वेदी की कई मिन्नतों के बाद फूलन देवी अक्टूबर 1982 में सरेंडर करने के लिए राजी हो गई थीं. इस बीच फूलन भिंड के ऊमरी गांव के पास आयी थीं. जहां भिंड पुलिस ने सरेंडर करने वाले डकैतों के लिए शांति कैंप तैयार कर रखे थे. इस दौरान पुलिस ने फूलन की गैंग के एक ईनामी डकैत मुस्लिम का एनकाउंटर करा दिया, लेकिन मुस्लिम मरा नहीं. इस घटना से फूलन देवी भड़क गईं. 

फूलन देवी को लगा कहीं पुलिस उसे भी एनकाउंटर में न मार दे इसलिए उसने सरेंडर करने से इंकार कर दिया. फूलन के इंकार से भिंड के एसपी राजेन्द्र चतुर्वेदी परेशान हो गए. इसके बाद भिंड के एसपी चतुर्वेदी ने मध्य प्रदेश के सीएम अर्जुन सिंह से कहकर भिंड रेंज के डीआईजी शर्मा को चंबल रेंज से हटवाया और फूलन देवी को मनाने में जुट गए. यहां तक कि उन्हें बतौर जमानत अपना बेटा फूलन देवी को सौंपना पड़ा. 

आख़िरकार उन्होंने दोबारा फूलन देवी को सरेंडर करने के लिए तैयार कर लिया. इस घटना के 2 साल बाद 13 फरवरी 1983 को फूलन देवी ने ख़ुद भिंड एमजेएस कॉलेज में अपने साथियों के साथ सरेंडर किया. 

भिंड में आत्म समर्पण के समय फूलन देवी और मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह

कानपुर देहात के बहुचर्चित ‘बेहमई कांड’ पर शनिवार को फिर से फैसला टल गया. मुकदमे की मूल केस डायरी ही ग़ायब है. फैसले के स्तर पर मूल केस डायरी न मिलने पर कोर्ट ने लिपिक को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने मूल केस डायरी तलाश कर 24 जनवरी 2020 को अदालत में रखने का आदेश दिया है.