बचपन में हर किसी की ख़्वाहिश होती है कि वो जल्दी से बड़ा हो जाए, कमाने लगे और अपने फ़ैसले खुद लेने लगे. पर जैसे ही हम बड़े होते हैं हमारे सामने वो फ़िल्म चलने लगती है, जिसका बचपन में हमें इल्म भी नहीं था. कॉलेज के बाद नौकरी की टेंशन, फिर बॉस की टेंशन. कुछ दिन बाद बेहतर कंपनी और सैलरी की टेंशन. आपको पता ही नहीं चलता कि कब आपकी आत्मनिर्भरता, टेंशन बन गई. बढ़ती उम्र के साथ हमारे जीवन का तनाव भी बढ़ता रहता है. हम बढ़ती उम्र को तो नहीं रोक सकते, लेकिन बचपने की कुछ आदतों के साथ बढ़ते तनाव पर नियंत्रण ज़रूर कस सकते हैं.

1. छोटी चीज़ों में खुशियां खोजें

जैसे बचपन में हम खिलौने, कार्टून या गुब्बारे से खुश हो जाया करते थे. अब भी हम ऐसी ही छोटी-छोटी चीज़ों में खुशी खोज सकते हैं. वो अपने मां की बनाई किसी स्पेशल डिश में हो सकती है या आॅफ़िस के बाद पेंटिंग करने में, या कुछ भी जो आपको पसंद हो.
2. जल्दी सोएं और पूरी नींद लें

अकसर हम चिड़चिड़े इसलिए हो जाते हैं क्योंकि हमारी नींद या तो पूरी नहीं होती या ठीक से नहीं होती. बचपन में हमारे मां-बाप नींद पर काफ़ी ध्यान देते थे. वो ठीक नौ बजे हमें सुला देते थे और यही कारण होता था कि हमें ज़्यादा तनाव नहीं होता था. अब भी हम अगर सोने का वक़्त निश्चित कर लें और आठ घंटे की पूरी नींद लें तो जीवन में तनाव कम हो सकता है.
3. मां के हाथ का खाना

अब के मुकाबले हम बचपन में इसलिए भी ज़्यादा स्वस्थ्य रहते थे क्योंकि हम घर का खाना खाते थे. कोशिश करें कि स्वस्थ जीवन के लिए बाहर का खाना कम के कम खाएं.
4. चाय, कॉफी से बेहतर है दूध या जूस

बचपन में वो चॉकलेट वाले दूध या हाथ से निचुड़े जूस में जो बात थी वो आज काम करते वक़्त हाथ में मौजूद चाय या कॉफ़ी में नहीं होती. इसे छोड़ अगर आप जूस या दूध पीते हैं तो जीवन स्वस्थ्य हो सकता है आपका.
5. गुस्से को बांध कर न रखें

याद है बचपन में दो मिनट में कट्टी हो जाती थी और दो मिनट में मुच्ची. हम आपको वो बेवकूफी दोबारा करने को नहीं कह रहे बस वो बातें भुला देने वाली आदत खुद में शुमार कर लीजिए तो जीवन से तनाव कम हो जाएगा.
6. सोने से पहले किताबें पढ़ें

बचपन की नींद और अब की नींद में ये फर्क है कि पहले हमें बिना कहानी सुने या पढ़े नींद नहीं आती थी. टीवी या इंटरनेट चलाने से बेहतर है किताबें पढ़ना, इससे हमारी सोचने की और कल्पना करने की शक्ति बढ़ती है.
7. ज़्यादा सवाल करें

हम जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं, सवाल पूछने से घबराने लगते हैं. हमें लगता है कि कहीं हमारी बेइज़्ज़ती तो नहीं हो जाएगी. सवाल पूछना कम न करिए, इससे कई हल निकल आते हैं और मानसिक तनाव कम होता है.
8. इंटरनेट पर नहीं असल ज़िन्दगी में दोस्तों से मिलें

जहां हर चीज़ इंटरनेट से होने लगी है, वहीं हमारी दोस्ती भी इंटरनेट तक ही सीमित रह चुकी है. पहले हम अपने दोस्तों के घर जाने से पहले पल भर भी नहीं सोचते थे, पर अब स्मार्टफ़ोन और इंटरनेट ने हमारी दूरियां बढ़ा दी हैं. कोशिश करें कि दोस्तों से ज़्यादा से ज़्यादा मिलें, इससे मानसिक तनाव थोड़ा कम होगा.
9. Outdoor Games खेलें

बचपन में हम स्कूल से आते ही खेलने के लिए मोहल्ले में इकट्ठा हो जाते थे. फिर जब तक मम्मी आंख नहीं दिखाती थीं, हम वापस नहीं आते थे. अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए गेम्स खेलना बहुत ज़रूरी है.