आइए एक खेल खेलते हैं. नीचे एक तस्वीर दी गई है, जो एक नज़र में तो ठीक लगती है लेकिन उसमें छोटी-मोटी कुल इक्कीस ग़लतिया हैं. एक-दो हम बता रहे हैं.

  • एक खिड़की में दिन है, तो दूसरी में रात
  • जून में 31 तारीख नहीं होती
  • कैलेंडर में लिखे दिन के क्रम में भी गड़बड़ी है

आगे आप ढूंढिए.

आपने 21 ग़लतियां ढूंढ लीं? जितनी भी ढूंढी हों, आपको बधाई. चाहे तो आप उसे कमेंट बॉक्स में बता भी सकते हैं. परंतु इस Puzzle को आपको दिखाने का मुख्य उद्देश्य ग़लती ढूंढना नहीं था. दरअसल हमें इस Puzzle को बनाने की मानसिकता के ऊपर बात करनी है. उन 21 ग़लतियों से कहीं बड़ी ग़लती है इसे पेश करने का तरीका.

आगे दो तर्क दिए गए हैं, एक जो इस Puzzle के कटघरे में खड़ा करती है. दूसरी जो इसे संदेहों का लाभ देती है.

ये Puzzle महिलाविरोधी है

इसे महिलविरोधी कहने के पीछे कई तर्क हैं. पहला, इस तस्वीर में जो ग़लतियां दिख रही हैं, वो इतनी स्वाभाविक हैं कि कोई भी इंसान/ बच्चा इन्हें देखते ही पकड़ ले. (स्पेशल केसेस जैसे Slow Learners को छोड़ दिया जाए तो). किसी भी Puzzle का मक़सद बच्चे/ इंसान की बौद्धिक/वैचारिक क्षमता को जांचना होता है. इस Puzzle में बिना दिमाग़ लगाए आधे Clue साफ़ दिख रहे हैं, जो इशारा करता है कि इसका मक़सद तस्वीर के दूसरे पहलू की ओर ध्यान आकर्षित करना है.

दूसरा पहलू है सिर्फ़ महिला का काम करना और आदमी का बैठ कर क़िताब पढ़ना. न ही घर का काम करना ग़लत है, न ही क़िताब पढ़ना लेकिन सिर्फ़ एक का काम करना सही नहीं है. घर में ज़िम्मेदारी दोनों की है और अगर ये क़िताब सिर्फ़ बच्चों की Puzzle भी हुई, तो भी इसमें घर/परिवार के सेटअप को ग़लत तरीके से बच्चे के दिमाग़ में भरा जा रहा है. 6 या 7 साल का बच्चा ये तस्वीर देख कर परिवार की एक छवि बना लेगा, जो सही नहीं. उसे इस उम्र से ही ये बताना ज़रूरी है कि लड़का-लड़की दोनों तरह के काम कर सकते हैं और घर की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ महिला की नहीं है.

स्थिति स्पष्ट नहीं है

प्रथम दृष्टया ये तस्वीर महिला विरोधी ही लगती है, लेकिन ऐसा कहना जल्दबाज़ी होगा. इस Puzzle में जो सबसे बड़ी चूक है, वो ये कि इसमें ‘संदर्भ’ मौजूद नहीं है. संदर्भ के अभाव में ये कहना कि महिला घर का काम कर रही है और पुरुष मज़े से किताब पढ़ रहा, ग़लत होगा. हो सकता है पुरुष अपने हिस्से का काम कर के अभी-अभी बैठा हो या ये भी हो सकता है वो महिला से उसका किसी प्रकार का पारिवारिक रिश्ता न हो, वो उस घर में कर्मचारी की हैसियत से काम कर रही हो. 

जब हम इस तस्वीर को महिला विरोधी बता रहे हैं, तब ये भी कह रहे हैं कि पुरुष कुछ काम नहीं कर रहा, बल्कि वो साफ़-साफ़ किताब पढ़ता दिख रहा है और किताब पढ़ना भी एक महत्वपूर्ण कार्य है. हम तस्वीर पर आरोप लगाते हुए दो कार्यों की तुलना करने की ग़लती भी कर रहे हैं. इसके अलावा, क्या दोनों कार्यों की अदला-बदला कर देने मात्र से तस्वीर पर से महिला विरोधी होने का टैग हट जाएगा? अगर इसे अभी महिला विरोधी कहा जा रहा है, तो काम के बदल जाने के बाद इसे महिला सशक्तिकरण से जोड़ दिया जाएगा.

इन तर्कों को पढ़ने के बाद आपने क्या राय बनाई? क्या ये तस्वीर महिला विरोधी है? कमेंट बॉक्स मे राय ज़रूर रखें.