74 वर्षीय सिस्टर Rose Kayathinkara नागालैंड जा रही थीं, उनके रास्ते में गारो पड़ा और वो यहीं की होकर रह गयीं. वो कहती हैं कि वो उस यात्रा को कभी नहीं भूल सकतीं. यहां के लोग गरीब थे, लेकिन ज़मीन उपजाऊ थी. वो समझ गयी थीं कि उन्हें यहीं काम करना है.
उन्होंने एक उद्यमी बनने की ठानी और रबड़ उगाना शुरू किया. 1998 में उन्होंने Mendipathar Multipurpose Cooperative Society बनायी, जिसके सहारे आज कई सौ परिवारों को रोज़गार मिलता है.
सरकार की कई असफ़ल योजनाओं और कार्यक्रमों के बाद Rose Kayathinkara ने एक मिसाल कायम की है. हालांकि, नोटबंदी के बाद उन्हें थोड़ा नुकसान उठाना पड़ा था.
केरल के भरानानगणम ज़िले में थॉमस और एलिजाबेथ केथिंकारा के घर Rose Kayathinkara का जन्म हुआ था. 1974 में उन्होंने भोपाल विश्वविद्यालय में समाज कल्याण की पढ़ाई की.
1986 में उन्होंने रबड़ बोर्ड ऑफ़ इंडिया से संपर्क किया. उन्होंने घर-घर जाकर Mendipathar के लोगों को रबड़ की खेती करने के लिए समझाया. ये ज़िला शिलांग से 225 km दूर है और इसकी गिनती ग़रीब ज़िलों में होती थी.
अब सिस्टर Rose को लोग “Rubber Rose” के नाम से जानते हैं. आज रबड़ की खेती करने के अलावा, यहां के लोग मुर्गियों और सूअरों को भी पाल रहे हैं. यहां काली मिर्च और हल्दी जैसी चीज़ों की खेती भी की जाने लगी है. इससे युवाओं और गारो की महिलाओं के लिए रोज़गार पैदा हुआ है. इसके साथ ही कई स्वयं सहायता समूहों ने भी लैंगिक समानता के लिए अभियान चलाया और गांवों में घरेलू हिंसा के खिलाफ़ लड़ाई का आगाज़ किया.
सिस्टर कहती हैं कि जब वो लोगों के पक्के घरों को देखती हैं, ये देखती हैं कि अब उनके पास बाइक और सेकंड हैण्ड गाड़ियां भी आ गयी हैं, तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है. इस ज़िले में अब लोगों की स्थिति सुधरी है और बच्चे भी इस खेती से मिलने वाले पैसों से अच्छे स्कूलों में पढ़ने जाने लगे हैं. वो चाहती हैं कि यहां के बच्चे आगे जाकर उच्च पदों पर काम करें.
उन्हें ये सब करने के लिए कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. 2012 में उनके अपहरण तक की कोशिश की गयी थी. आज उनकी बदौलत रबड़ की खेती करने वाले किसान सालाना 5-6 लाख कमाने लगे हैं. अब ये किसान नारियल उगाना भी शुरू कर रहे हैं.
ये सब एक महिला के दृढ़ संकल्प के कारण मुमकिन हो पाया है और आज वो यहां के हर इंसान के लिए मिसाल बन चुकी हैं.