आमतौर पर NEET की परीक्षा छात्र, डॉक्टर बनने, मेडिकल लाइन में जाने के लिए देते हैं. उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के अरविंद कुमार ने ये परीक्षा पास करना सिर्फ़ डॉक्टर बनने के लिए ही नहीं दी थी.

Indian Express की रिपोर्ट के अनुसार, 26 साल के अरविंद ने अपने पिता को सम्मान दिलाने के लिए डॉक्टर बनने की ठानी. अरविंद के पिता, भिखारी को उनके नाम और काम की वजह से गांववाले ताने मारते थे.

अरविंद ने NTA NEET की परीक्षा पास करके सभी के मुंह पर ताला लगा दिया. अरविंद को ये जीत आसानी से नहीं मिली. अरविंद ने सबसे पहले 2011 में AIPMT (All India Pre Medical Test) की परीक्षा दी, इस परीक्षा की जगह अब NEET (National Eligibility-cum-Entrance Test) ली जाती है.    
अरविंद ने इस साल 9वीं बार परीक्षा दी और उसे 11,603 रैंक मिला. OBC कैटगरी में उसका रैंक 4,392 रहा.  

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मैं नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदल देता हूं और वहीं से मोटिवेशन भी ढूंढ लेता हूं.

-अरविंद कुमार

अपनी सफ़लता का श्रेय, अरविंद ने अपने परिवार को दिया. अरविंद ने बताया कि उसके पिता, भिखारी 5वीं तक पढ़े हैं और उसकी मां ललिता देवी कभी स्कूल नहीं गई. अरविंद अपने पिता को बेइज़्ज़त होते देखकर बड़ा हुआ.

अरविंद ने बताया कि उसके पिता को परिवार के पालन-पोषण के लिए लगभग 2 दशक पहले जमशेदपुर जाना पड़ा. कुछ सालों के बाद, बच्चों की बहतर पढ़ाई के लिए भिखारी अपने परिवार को गांव से कुशीनगर शहर ले आया. अरविंद को 10वीं में 48.6% अंक मिले और 12वीं में 60%. अरविंद ने 12वीं में ही अपने पिता का सपना पूरा करने की ठान ली थी. उसने 9 सालों तक लगातार परिक्षाएं दीं पर उसे सफ़लता नहीं मिली.

हर Attempt में बढ़ते नंबर से उम्मीद लगी रहती और मैं अपने लक्ष्य से अडिग रहा.

-अरविंद कुमार

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2018 में अरविंद कोटा चला गया. Indian Express से बात-चीत में अरविंद के पिता भिखारी ने बताया कि वो बेटे की शिक्षा के लिए 12-15 घंटे काम करते.

मैं अपने बच्चों की शिक्षा का ख़र्च उठाने के लिए 12-15 घंटे काम करता और 6 महीने में कुछ समय के लिए अपने परिवार से मिलता. मुझे अरविंद पर गर्व है.

-भिखारी

अरविंद ने बताया कि वो Orthopaedic Surgeon बनकर लोगों की सेवा करना चाहता है.