जब भी मेरे सामने ये विकल्प मौजूद रहता है कि इंडियन या वैस्टर्न टॉयलेट में से किसी एक में जाना है, मैं हमेशा वेस्टर्न को चुनता हूं. उसके पीछे वाजिब कारण है, वेस्टर्न में आराम से बैठ कर फ़ोन चला सकते हैं लेकिन इससे ज़्यादा ज़रूरी कारण भी है.
अगर प्रेशर न आ रहा हो, तो आप 10 मिनट से ज़्यादा इंडियन टॉयलेट में नहीं बैठ सकते, घुटने और पीठ जवाब दे जाते हैं, लेकिन इंडियन वाले में पेट भी वैज्ञानिक तरीके से साफ़ होता है.
इस समस्या को सुलझा दिया है सत्यजीत मित्तल ने, जिन्होंने इंडियन टॉयलेट को उनके लिए आरामदायक बना दिया है, जिन्हें घुटनों की प्रॉब्लम है या जो ज़्यादा देर बैठ नहीं सकते.
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26 साल के सत्यजीत ने पुणे के MIT से डिज़ाइनिंग की पढ़ाई की है और उसके बाद डिज़ाइन किया ऐसा टॉयलेट, जिसका नाम है SquatEase. इसका डिज़ाइन 2016 में पूरा हो गया था.
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Squat इसलिए क्योंकि इंडियन टॉयलेट में बैठने की पोज़िशन Squat जैसी होती है. ख़ैर, इसके डिज़ाइन में ये ख़्याल रखा गया है कि इस्तेमाल करने वाले के घुठने, पीठ और पंजों पर ज़ोर न पड़े. साथ ही साथ इसकी सफ़ाई में कम पानी का इस्तेमाल हो. इसका टेस्ट एक अस्पताल में हड्डियों के विभाग में हुआ था. जहां पर मरीज़ों ने इसे ग्रीन सिग्नल दिया.
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इस इनोवेशन के लिए सत्यजीत को भारत सरकार द्वारा पुरस्कार भी मिला है. सिंगापुर के वर्ल्ड टॉयलेट ऑर्गनाजेशन से साथ मिल कर SquatEase के प्रोडक्शन का काम पूरा हो चुका है, अब आप जल्द ही इसे बाज़ार में देख सकेंगे.