हमारी प्रकृति की हरियाली छीनकर कॉनक्रीट के जंगल खड़े कर दिए गए और हम में से ज़्यादातर लौग मौन खड़े रहे. कुछ लोग इस ‘विकास’ के साथ हो लिए और इसे ही विकास मान लिया.
बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अपनी जल, जंगल, ज़मीन के लिए आवाज़ उठा पाते हैं. और वो आवाज़ उठाते भी हैं तो उन्हें विकास का दुश्मन मान लिया जाता है.
अपने जंगल, ज़मीन को बचाने के लिए हिमाचल की एक महिला ने कई दशक पहले आवाज़ उठाई थी. नाम था, किंकरी देवी.
अनपढ़ किंकरी देवी ने वो कर दिखाया जो पढ़े-लिखे भी करने की नहीं सोचते वो भी अकेले. एक रिपोर्ट के मुताबिक़, किंकरी का जन्म हिमाचल प्रदेश के घान्टो गांव में एक ग़रीब परिवार में हुआ. बचपन में ही किंकरी देवी को घर चलाने के लिए काम-काज शुरू करना पड़ा था. एक रिपोर्ट के मुताबिक़, किंकरी देवी का विवाह 14 साल की उम्र में श्यामू राम से कर दिया गया जो कि एक बंधुआ मज़दूर था. किंकरी 22 साल की थी जब उसके पति की मौत हो गई और उसे मजबूरन स्वीपर का काम शुरू करना पड़ा.
1985 में दून की खदानों के बंद हो जाने के बाद ज़िला सिरमौर में चूना पत्थर के व्यापार का तेज़ी से विस्तार हुआ. व्यापक खनन की वजह से नदियां मैली और उनका पानी ज़हरीला होने लगा, खेती-बाड़ी को नुकसान होने लगा और जंगल ग़ायब होने लगे.
किंकरी देवी ने खनन से पर्यावरण को हो रहे नुकसान के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठाई. पढ़ी-लिखी न होने के बावजूद उसने सभी को अवैध खनन और पर्यावरण को हो रहे नुकसान से अवगत करवाया.
किंकरी देवी ने सबसे पहले आस-पास के लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास किया और कई स्थानियों को जागरूक करने में सफ़ल हुई. 1987 में उसने, People’s Action for People in Need की सहायता से शिमला हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की.
किंकरी ने 48 खदान मालिकों के ख़िलाफ़ PIL की थी. यही नहीं, किंकरी शिमला गईं और कोर्ट के सामने 19 दिन की भूख हड़ताल भी की. आख़िर में किंकरी की जीत हुई और कोर्ट ने पहाड़ तोड़ने पर पाबंदी लगाई और खनन पर रोक लगाई.
1995 में किंकरी के केस की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हुई और सुप्रीम कोर्ट ने भी उसी के पक्ष में निर्णय दिया.
किंकरी देवी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली. 1995 में बीजिंग में हुए International Women Conference में किंकरी को बुलाया गया जहां पर हिलेरी क्लिंटन ने किंकरी से कॉनफ़्रेंस में दीप प्रज्वलन करवाया.
1999 में किंकरी को झांसी की रानी लक्ष्मी बाई स्त्री शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. किंकरी के ख़ून में ही क्रांति थी, वो यहीं नहीं रुकी. उसने अपने गांव में डिग्री कॉलेज खोलने के लिए प्रयास किया और 2006 में कॉलेज खुला. 2007 में किंकरी देवी की मृत्यु हो गई.
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महिलाओं की शक्ति को कम समझने वालों को किंकरी देवी की कहानी ख़ासतौर पर पढ़नी चाहिए.