ये कहानी है अबला से सबला बनने तक की, ये कहानी है ख़ुद की ज़िंदगी को तराशने की, ये कहानी है… दरअसल ये कहानी नहीं, एक सच्चाई है.

आगे जो आप सुनेंगे वो कहानी है Soraya Postel की और इसे Humans Of Bombay फ़ेसबुक पेज ने दुनिया को सुनाई है.

Humans Of Bombay

‘मैं तब 20 साल की थी जब मेरे पति से मुलाक़ात हुई. प्यार हुआ, जब 23 की हुई तब शादी हो गई. हमलोग ‘परफ़ेक्ट कपल’ थे. 20 साल हमने साथ गुज़ारे, फिर चीज़ें बदलने लगीं और हम अलग हो गए. 47 साल की उम्र में हमारा तलाक हुआ और हम अलग रास्ते चल पड़े. मेरे दोनों बच्चे विदेश में रहते थे इसलिए मुझे अपने लिए नई ज़िंदगी शुरू करनी थी. मुझे नहीं पता था कि कैसे शुरू करनी है. इससे पहले मैंने एक चेक भी साइन नहीं किया था, अब अकेले रहना था लेकिन में ख़ुद से सब करने के लिए उत्सुक थी.

सबकुछ अपने-आप अपनी जगह पर बैठने लगा. मेरी एक दोस्त ने मुझे फ़ोन करके बताया कि उसके स्कूल में फ़्रेंच टीचर के लिए ओपनिंग है. एक छोटे से इंटरव्यू के बाद मुझे नौकरी मिल गई. हर रोज़ मुझे बॉम्बे सेंट्रल से चेंबुर स्कूल बस से जाना पड़ता था. फिर मैं ट्यूशन भी लेने लगी, जिम भी जाती थी और देर से सोती थी. मेरे भीतर जीने की आग थी, मुझे नहीं पता था कि इसे बाहर कैसे निकालना था, मैंने कभी कोशिश भी नहीं की थी.

अब मेरे पास नया सपना था… अब मैं चाहती थी कि मेरे पास ख़ुद का घर हो. मेरी नज़र एक बहुत अच्छे व्यू वाले अपार्टमेंट पर थी, हर सुबह ऊंची इमारतों के बीच में उगता सूरज, मैं यही चाहती थी. कुछ सेविंग्स लगी, निर्वाह के लिए मिले पैसे लगे, बहन से लोन लिया… और इस तरह मुझे मेरा घर मिल गया.

हालांकि घर में एक भी फ़र्नीचर नहीं था, पूरा घर खंडहर था, मुझे सब फिर से बनाना था. मैं काम करने के लिए तैयार थी. मैंने सेकेंड हैंड फ़र्निचर लिए, ज़मीन पर सोने के लिए गद्दा लिया. ईंट दर ईंट मैंने मकान बनाया, जो बाद में घर बन गया.

चार साल बाद, मेरे एक नज़दीकी ने कहा कि उसे अच्छा नहीं लगता कि मैं अकेले रहती हूं. इसलिए उसने मेरे लिए Homestay Service शुरू कर दी. मुझे पता भी नहीं था कि कंप्यूटर कैसे चलाते हैं, फिर अकेले इस काम को करना. लेकिन मैं नई चीज़ आज़माने के लिए तैयार थी, इसलिए मैंने सोचा ‘क्यों नहीं?’

मैं दुनियाभर के लोगों की मेहमाननवाज़ी करने लगी. मैं उन्हें एयरपोर्ट लेने जाती थी, उनके लिए खाना बनाती थी, उनका ख़्याल रखती थी. मुझे लगता है कि मेरे घर में एक जादू था क्योंकि जो भी वापस गए वो सब खुश थे. एक ने तो मुझे दिल्ली में अपनी शादी के लिए भी बुलाया. ये एक करिश्मे जैसा था. ज़िंदगी हमें हमेशा अचंभित करती है. इस काम के ज़रिये मैं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो गई.

मेरे लिए सबसे खु़शी का पल वो था जब मैं इतने पैसे बचा पाई थी कि अपनी बेटी के साथ साउथ अमेरिका घूमने जा सकी. मैं आज़ाद महसूस कर रही थी, भावनात्मक रूप से, आर्थिक रूप से, मानसिक रूप से.

तब से, मैं हर साल उसके साथ एक ट्रिप ज़रूर प्लान करती हूं. ऐसा लग रहा है जैसे दुनिया ने मेरे लिए तमाम दरवाज़े खोल दिए हों. लेकिन मैं आपको एक राज़ की बात बताती हूं. दुनिया में कोई भी नज़ारा उतना ख़ूबसूरत नहीं है, जो नज़ारा मेरी खिड़की से दिखता है. मुझे वो याद दिलाता है कि ये घर मैंने बनाया है. फिर मुझे लगता है कि ज़िंदगी आपको दोबारा मौका देती है और जब आप सबसे कम उम्मीद करते हैं, तभी चमत्कार होता है.

इस कहानी को पढ़ने के बाद लोगों ने भावनात्मक प्रतिक्रियाएं दीं…

किसी समझदार इंसान ने कहा था कि शुरुआत करने के लिए कोई भी उम्र ज़्यादा नहीं होती.