Success Story Of Adidas: भारत में स्पोर्ट्स शूज़ के ब्रांड्स की बात आती है तो जर्मनी कंपनी एडिडास के शूज़ नम्बर एक पर आते हैं. 100 साल पुरानी इस कंपनी को जर्मनी के Dassler Brothers ने शुरू किया था, उन्होंने इन जूतों को एथलीट्स (Athletes) की परफ़ॉर्मेंस को बेहतर करने के लिए बनाया था. जैसे-जैसे समय बढ़ा इस कंपनी ने मार्केट में अपने पैर जमा लिये. जूतों के साथ-साथ Adidas के कपड़े भी लोगों को पसंद बन गए.
Success Story Of Adidas
ये भी पढ़ें: Beauty Products में महिलाओं की पहली पसंद ‘Lakme’ कैसे बना ‘Lakme’? बहुत दिलचस्प है इसकी कहानी
चलिए, जानते हैं कि ये Adidas ब्रांड कैसे बना और इसके पीछे की कहानी.
जर्मनी के Herzogenaurach में जन्में Adolf Dassler के पिता Christoph Dassler जूतों का व्यापार करते थे, लेकिन उन्हें कभी उतनी पहचान नहीं मिली. बस अपने पिता से ही प्रेरणा लेकर दोनों Dassler भाइयों ने पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 1922 में जूतों के बिज़नेस में क़दम रखा. वैसे तो Herzogenaurach जगह को कभी कपड़ों का हब माना जाता था, लेकिन धीरे-धीरे वहां जूतों की मैन्यूफ़ैक्चरिंग बढ़ने से ये जूतों का गढ़ बन गया.
इनके जूतों को पसंद तो ख़ूब किया जा रहा था, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के बाद सभी जूता व्यापारी के कारोबार पर तगड़ी गाज गिरी, इसका असर डसलर परिवार पर भी पड़ा. परिवार में आर्थिक तंगी होने के चलते डसलर ब्रदर्स की मां ने लॉन्ड्री का काम करके घर का खर्च चलाया. जूतों का व्यापार दोबारा शुरू करने के लिए डसलर ब्रदर्स के पास न तो जगह थी, न पैसे और न ही बिजली की पर्याप्त व्यवस्था.
कहते हैं जो लिका है वो तो होगा ही, दोनों भाइयों ने एडॉल्फ़ और रुडॉल्फ़ डसलर ने मां की लॉन्ड्री वाली जगह को अपने जूतों के बिज़नेस के लिए यूज़ किया. साथ ही वहां के जंग लगे सामानों का इस्तेमाल जूता बनाने में किया, उन्होंने मिलिट्री यूनिफ़ॉर्म, हेलमेट, वाहनों के टायर और पैराशूट का इस्तेमाल शुरू किया. इसके अलावा, बिजली की कमी को पूरा करने के लिए ऐसे उपकरणों का इस्तेमाल किया, जिनसे बिजली बनती थी.
ये भी पढ़ें: 80 रुपये उधार लेकर 7 सहेलियों ने की थी लिज्जत पापड़ बनाने की शुरुआत, अब है करोड़ों का टर्न ओवर
एडॉल्फ़ डसलर को खेलों से लगाव था इसलिए उन्होंने सबसे पहले स्पोर्ट्स शूज़ बनाए और उनमें स्पाइक्स लगाए, जो कॉन्सेप्ट लोगों को काफ़ी पसंद आया. जब इनके जूतों की डिमांड बढ़ने लगी तो दोनों भाइयों ने मिलकर डसलर ब्रदर्स शूज़ फ़ैक्ट्री की शुरुआत की, जिसमें एडॉल्फ़ मैन्यूफ़ैक्चरिंग संभालते थे तो रुडॉल्फ़ मार्केटिंग संभालते थे.
दोनों भाइयों ने अपने कंपनी के जूतों को स्पोर्ट्स से जोड़ने के लिए धीरे-धीरे स्पोर्ट्स इवेंट में जाना शुरू किया. इसके बाद, 1928 में एम्सटरडम के ओलंपिक्स में एथलीट्स ने Adidas के जूते पहनें. साथ ही, 1936 में बर्लिन के ओलंपिक्स में फ़ास्टेस्ट रेसर अमेरिका के Jesse Owens ने इनकी कंपनी के जूते पहने और 4 गोल्ड मेडल जीते. बस यहीं से Adidas ने इतिहास रचना शुरू कर दिया और इनके जूतों की डिमांड बढ़ने लगी.
जूते बनाने वाली इस कंपनी ने देश को 1 सितंबर 1939 के दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भी काफ़ी सपोर्ट किया. जब जर्मनी की सेना ने पोलैंड पर हमला किया तो इस हमलें में 1943 में जर्मनी हार गया. फिर जंग के लिए हथियारों की ज़रूरत पड़े पर कंपनी ने हथियार बनाना भी शुरू कर दिया. मगर जब ये बात अमेरिकी सेना तक पहुंची तो उन्होंने एडॉल्फ़ को बर्बाद करने की धमकी दी, जिस पर उनकी पत्नी ने आश्वासन दिया कि हम सिर्फ़ जूते बनाने का काम करते हैं.
सफलता की कहानी गढ़ने वाले दोनों भाइयों में कुछ साल बाद मतभेद होने से दोनों ने अपनी राहें अलग कर ली. इसके बाद, रुडॉल्फ़ ने अपनी अलग कंपनी बनाई, जिसका नाम Puma रखा. इसके बाद, 1949 में एडॉल्फ़ ने पुरानी कंपनी का नाम बदलकर Adidas रख दिया. एडॉल्फ़ का सपना था कि, हर एथलीट उनकी कपंनी का जूता पहने और उनका ये सपना काफ़ी हद तक पूरा भी हुआ. ADIDAS का पूरा नाम All Day I Dream About Sports है.
आपको बता दें, जूते बनाने वाली इस कपंनी ने कपड़े, एसेसरीज़ सहित कई चीज़ें बनाकर कंपनी को 5.41 लाख करोड़ रुपये की कंपनी बना दिया.