Success Story: अपने बच्चों की ख़ुशियों के लिए मां-बाप कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. ख़ुद के गमों को भूलकर वो अपने बच्चों की ख़ुशियों को सबसे पहले रखते हैं. लेकिन मां जितना स्पेशल प्यार बच्चों को कोई दूसरा नहीं दे सकता. ऐसी एक मां सुमित्रा देवी (Sumitra Devi) भी हैं, जिन्होंने सफ़ाईकर्मी की नौकरी करके अपने 3 बेटों को बड़ा ऑफ़िसर कड़ा संघर्ष किया. सुमित्रा देवी ने 30 साल तक झाड़ू लगाकर आज अपने 3 बेटों को उस मुकाम पर पहुंचा दिया कि वो पूरे समाज के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हैं. आज सोशल मीडिया पर इस मां के ख़ूब चर्चे हैं.

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झारखंड (Jharkhand) के रामगढ़ ज़िले के रजरप्पा गांव की रहने वाली सुमित्रा देवी (Sumitra Devi) आज हर किसी के लिए प्रेरणास्रोत हैं. सुमित्रा देवी झारखंड के रामगढ़ स्थित सेंट्रल कोलफ़ील्‍ड्स लिमिटेड में बतौर सफ़ाईकर्मी काम करती थीं. लेकिन कुछ साल पहले वो सेवानिवृत हो गईं. इसी नौकरी से उन्होंने अपने तीनों बेटों को पढ़ाया लिखाया और आज बेटे अपने-अपने फ़ील्ड के सम्मानित पदों पर आसीन हैं.

रिटायरमेंट पर नीली बत्ती वाली गाड़ी से पहुंचे बेटे तो हैरान रह गए लोग

30 साल की नौकरी के बाद जब सुमित्रा देवी के रिटायरमेंट के वक्त फ़ेयरवेल प्रोग्राम का समय आया तो अचानक अपने तीनों बेटों को वहां देख सुमित्रा देवी की आंखें भर आईं थी. दरअसल, सुमित्रा देवी को उनके आने का कोई अंदाजा नहीं था. उन्होंने अपने बेटों के बारे में अपने साथियों को भी कुछ नहीं बताया था. लेकिन जब फ़ेयरवेल प्रोग्राम में उनका एक बेटा नीली बत्ती लगी गाड़ी में पहुंचा तो ये दृश्य देख हर कोई हैरान रह गया. इसके अलावा उनके दो अन्य अफ़सर बेटे भी अपनी अलग-अलग गाड़ियों से वहां पहुंचे थे.

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सुमित्रा देवी हैं प्रेरणास्रोत

सुमित्रा देवी (Sumitra Devi) ने फ़ेयरवेल प्रोग्राम के दौरान जब अपने तीनों बेटों का परिचय वहां मौजूद अपने अधिकारियों से कराया तो वो सकते में आ गए. सबसे बड़ा बेटा वीरेंद्र कुमार रेलवे में चीफ़ इंजीनियर है. मझला बेटा धीरेंद्र पेशे से डॉक्‍टर (मेडिकल ऑफ़िसर) है, जबकि सबसे छोटा महेंद्र कुमार IPS अधिकारी है.

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प्रोग्राम के दौरान जब कलेक्टर, डॉक्टर और इंजीनियर बेटों ने वहां मौजूद लोगों को अपनी मां की मेहनत और संघर्ष की कहानी सुनाई तो हर किसी की आंखों में आंसू थे. इसके अलावा वहां मौजूद लोगों को न केवल सुमित्रा देवी पर बल्कि, उनके तीनों बेटों की कामयाबी पर भी गर्व हो रहा था.

मां के संघर्ष को बता भावुक हुए बेटे

सुमित्रा देवी (Sumitra Devi) के सबसे छोटे बेटे और सीवान के कलक्टर महेन्द्र कुमार ने इस दौरान बड़े ही भावुक अंदाज में कहा, ‘कभी भी विपरीत हालात से हार नहीं मानना चाहिए. सोचिए हमारी मां ने संघर्ष कर हम तीनों भाइयों को पढ़ाकर आज इस मुकाम तक पहुंचा दिया है. हम आर्थिक तौर पर बेहद कमज़ोर थे, लेकिन हमारी मां के साहस और निष्ठा ने हमें आज इस मुकाम पर पहुंचा दिया है. हमारी मां ही हमारी प्रेरणा हैं.

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रिटायरमेंट प्रोग्राम के दौरान सुमित्रा देवी भी अपनी 30 साल की नौकरी को याद करते हुए भावुक हो गईं. इस दौरान सुमित्रा देवी ने कहा कि, कठिनाइयों के बावजूद मैंने अपने बेटों को साहब बनाने का सपना आंखों में संजोया था. आख़िरकार भगवान की कृपा और बेटों की मेहनत से मेरा वो सपना सच हो गया.

सुमित्रा देवी (Sumitra Devi) के तीनों बेटे जब सरकारी अधिकारी बन गए तो उन्होंने अपनी मां को उम्र का हवाला देकर कई बार नौकरी छोड़ने का निवेदन भी किया, लेकिन सुमित्रा देवी ने हर बार इससे इंकार कर दिया. मां की लगन को देखते हुए बेटों ने भी उनकी भावना की कद्र की. वो बस मां के रिटायरमेंट वाले दिन उनके दफ़्तर पहुंच गए और सुमित्रा देवी के लिए वो पल यादगार बन गया.

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