‘लुंगी’ एक 2 मीटर लम्बा कपड़ा होता है जो फ़्लोरल प्रिंट या रंग-बिरंगे चेक पैटर्न में आता है. एक ऐसा कपड़ा जिसको दक्षिण भारत के लोग ख़ूब पहनते हैं ख़ासतौर से पुरुष. 

मगर केरल में इस लुंगी या फिर कल्ली मुंडू (स्थानीय भाषा) की एक ख़ास जगह है. केरल के अलग-अलग समुदाय में फैली ये लुंगी कल भी और आज भी वहां का सांस्कृतिक प्रतीक है. केरल में लुंगी सिर्फ़ पुरुषों तक ही सीमित नहीं है, वहां इसे महिलाएं भी पहनती हैं. 

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केरल में लुंगी को मोटे तौर पर श्रमिक वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली पोशाक के रूप में देखा जाता है. ऑटो चालकों, सड़कों पर सामान बेच रहे विक्रेताओं से लेकर मछुआरों तक ये लुंगी पहनते हैं. लेकिन वक़्त के साथ कई बार ये लुंगी युवाओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र बनी है. 

केरल के अलग-अलग समुदायों में लुंगी का चलन 

आमतौर तो लुंगी को पुरुषों का वस्त्र मन जाता है मगर केरल में विभिन्न समुदायों में लुंगी अभी भी महिलाओं के लिए पसंदीदा आरामदायक पहनावा है. 

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लुंगी पहनकर घर-घर जाकर मछली बेचती एक महिला का दृश्य केरल में काफ़ी आम है. 

केरल में ईसाई समुदाय में महिलाओं की पुरानी पीढ़ी आज भी लुंगी पहनती है. यही नहीं, मुस्लिम समुदाय में भी कई महिलाएं अपने घरों में लुंगी पहनती हैं. मुस्लिम समुदाय में अक्सर लुंगी को दाईं से बाईं ओर पहना जाता है, जबकि अन्य लोग आमतौर पर लुंगी को बाएं से दाएं लपेटते हैं. 

KITEX गारमेंट्स के अधिकारी, जो लुंगी को एक ब्रांड नाम देने वाली केरल की पहली कुछ फ़र्मों में से एक थी, का कहना है कि अभी की तुलना में पहले राज्य में ज़्यादातर महिलाएं अकसर लुंगी पहना करती थीं. 

लुंगी का राजनीतिकरण 

मूल रूप से लुंगी को श्रमिक वर्ग का पहनावा माना जाता है. समाज द्वारा लुंगी को किसी एक समूह का पहनावा बनाने की वजह से ये कई बार विवादों का हिस्सा रही है. ऐसे विवाद जो इस समाज के दोहरे चेहरे को दिखाते हैं. 

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पिछले साल, कोझीकोड में, एक व्यक्ति को शहर के एक होटल में प्रवेश करने से मना कर दिया गया था क्योंकि उसने लुंगी पहन रखी थी. यह घटना एक ‘लुंगी विरोध’ में बदल गई. जिसमें कई लोग सड़कों पर उतरे और अपनी पसंद अनुसार कपड़े पहनने के अधिकार पर ज़ोर दिया. इस घटना का ये असर हुआ कि कोझिकोड निगम ने एक आदेश जारी किया जिसमें होटल्स को पारंपरिक पहनावे का सम्मान करने के लिए कहा गया. 

ऐसे भी उदाहरण हैं जहां लुंगी पहने लोगों को राज्य विधानसभा में आगंतुकों की गैलरी में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था क्योंकि उनके हिसाब से उन्होंने ‘अनौपचारिक’ कपड़े पहने हुए थे.