देशभर में कोरोना वायरस के चलते 14 अप्रैल तक लॉकडाउन जारी है. कोरोना जैसे ख़तरनाक वायरस से बचने के लिए हमारे पास एकमात्र ऑप्शन लॉकडाउन ही है. इसके चलते घरों से बाहर निकलने पर पाबंदी है जिससे लोगों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. कुछ लोग लॉकडाउन से इस कदर परेशान हो गए हैं कि अब बस इसके खुलने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं.

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लॉकडाउन न सिर्फ़ कोरोना वायरस से लड़ने में सक्षम है, बल्कि इसकी वजह से हमारे दैनिक जीवन की कई मुसीबतें भी ठीक हो रही हैं. जिन चीज़ों से हम ज़िंदगी भर लड़ते रहे 21 दिन के लॉकडाउन ने उसे कुछ हद तक सही कर दिया. इसलिए हम कह सकते हैं कि एक हद तक ये लॉकडाउन सही भी है.

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तो चलिए जानते हैं लॉकडाउन के दौरान ऐसी कौन से चीज़ें हैं जिनमें हमें बदलाव देखने को मिल रहा है- 

1- देशभर में एयर क़्वालिटी अच्छी हो गई है.

लॉकडाउन के चलते सड़क पर गाड़ियों के न चलने और फ़ैक्ट्रियों के बंद होने से देशभर में वातावरण साफ़ सुथरा हो गया है. अप्रैल के महीने में भी देश के महानगरों का तापमान अब भी सामान्य बना हुआ है. अब भी मौसम में ठंडक है. जो अमूमन अप्रैल माह में देखने को नहीं मिलता है. खुली हवा में सांस लेने में कोई कठिनाई नहीं हो रही है. एयर क्वालिटी इतनी अच्छी हो गई है कि जालंधर से 200-300 किलोमीटर दूर स्थित धौलाधार के पहाड़ शहर से दिखने लगे हैं.

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2- फ़ैक्ट्रियां बंद होने से यमुना का पानी साफ़ हो गया है.

देशभर फ़ैक्ट्रियां बंद होने से नदियों का पानी काफी हद तक साफ़ हो गया है. देश की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक यमुना का पानी भी पहले से साफ़ हो गया है. लॉकडाउन के बाद से ही दिल्ली-NCR की सभी फ़ैक्ट्रियां बंद हैं. 

3- सड़कों पर कई दुर्लभ जानवर दिखाई देने लगे हैं.

लॉकडाउन के चलते सड़कें सुनसान हैं. मॉल वीरान हो चले हैं. ऐसे में दुर्लभ जंगली जानवर फिर से दिखने शुरू हो गए हैं. नोएडा के एक मॉल के बाहर नील गाय, मुम्बई में घरों के बाहर मोर, तो केरल की सड़कों पर एक दुर्लभ जानवर घूमता हुआ पाया गया.

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4- वैज्ञानिकों के मुताबिक़ ओज़ोन लेयर भरने लगी है.

पिछले कई सालों से क्लाइमेट चेंज के चलते ओज़ोन लेयर ख़तरे में आ गई थी. अब वैज्ञानिकों का दावा है कि दुनियाभर में प्रदूषण कम होने से ओज़ोन लेयर भरने लगी है. 

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5- फ़िजूलख़र्ची बिलकुल ही ख़त्म हो गयी है.

लॉकडाउन के चलते मॉल, सिनेमाहॉल और बाज़ार बंद होने से फ़िजूलख़र्ची पूरी तरह से ख़त्म हो गयी है. लॉकडाउन से पहले हर दिन 500 से लेकर 1000 रुपये तक ख़र्च हो जाते थे, लेकिन अब इस फ़िजूलख़र्ची पर पूरी तरह से कोरोना की लगाम लग चुकी है.

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6- फ़ैमिली के साथ बॉन्डिंग मज़बूत हो गयी है.

कामकाजी लोगों को फ़ैमली मेंबर्स के साथ वक़्त बिताने का मौक़ा ही नहीं मिल पता है. पहले हर दिन सुबह 9 बजे घर से निकल जाना और रात 9 बजे घर पहुंच पाते थे, लेकिन अब दिन भर घर में रहने से फ़ैमली मेंबर्स के साथ बॉन्डिंग पहले से कहीं अधिक मज़बूत हो गयी है.

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7- हर दिन कुछ न कुछ नया सीखने को मिल रहा है.

‘वर्क फ़्रॉम होम’ वालों को छोड़ दें तो बाकी लोग हर दिन कुछ न कुछ नया करने में लगे हुए हैं. जिसने ज़िंदगी कभी झाड़ू तक नहीं पकड़ी थी वो अब फ़ुल्के बनाना सीख गया है. कोई खाना बनाना सीख रहा है तो कोई घर की सफ़ाई में लगा हुआ है. तो वहीं कोई पेंटिंग में हाथ आज़मा रहा है तो कोई यूट्यूब से योगा सीख रहा है. 

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8- घर के बड़े बुज़ुर्गों की सेवा करने का मौक़ा मिल रहा है.

ऑफ़िस के काम के चलते अक्सर हम घर के बुज़ुर्गों को बिलकुल भी समय नहीं दे पाते थे, लेकिन इन दिनों हम इतने फ़्री हो गए हैं कि हर समय दादा-दादी की गोद में ही पड़े नज़र आते हैं. कभी उनसे पुराने ज़माने की कहानियों की गुज़ारिश करने लगते हैं, तो कभी उन्हें नए ज़माने की चीज़ों से रू-ब-रू कराते हैं. सही मायने में यही वो समय है जब हमें उनके साथ रहना चाहिए, उनसे बातें करनी चाहिए.

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9- जिन रिश्तेदारों से बातचीत बंद थी अब उनसे भी बात होने लगी है.

समय न मिलने के चलते जिन रिश्तेदारों से कई सालों से बात तक नहीं हो पाई थी अब उनसे बातचीत होनी शुरू हो गई है. दिल में जो एक झिझक थी वो अब ख़त्म हो गयी है. दूर दराज़ के गावों में रह रहे रिश्तेदारों से उनका हाल जानना, उनके बच्चों के बारे में पूछना कि कौन क्या कर रहा है और कहां रहता है? ये सब भी एक अलग ही अनुभव है.  

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10- ग़रीब और ज़रूरतमंदों के प्रति नज़रिया बदल गया है’

हाल ही में लॉकडाउन के चलते सैकड़ों मील पैदल चलकर अपने घर पहुंचने की जुगत में लगे ग़रीब दिहाड़ी मज़दूरों की मुश्किलों को देख बेहद बुरा लगा. जब भी घर से बाहर राशन लेने निकलते हैं, तो किसी ग़रीब या रिक्शेवाले से पूछ बैठते हैं खाना खाया आपने? इस दौरान हमसे जो मदद बन पड़ती है वो कर देते हैं.

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हालांकि, लॉकडाउन के चलते कुछ लोगों को काफ़ी परेशानी भी हुई है. इसलिए अब लोग इसके खुलने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं.