दुनियाभर से लगातार आती हिंसा, बलात्कार और आतंकी घटनाओं की ख़बरों से जब आपका दिल भी कहने लगे कि अब इंसानियत ख़त्म हो गई, तो एक बार दिल पर हाथ रखकर ज़रूर सोचियेगा कि इंसानियत को बचाने के लिए आपने क्या किया है?

हमारे आस-पास घटने वाली ऐसी घटनाएं हमें विचलित करती हैं. अख़बार से लेकर न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया पर भी ऐसी ही घटनाएं दिखाई जा रही हैं इसलिए आपका ये डर लाज़मी है. मगर इन्हीं सबके बीच ऐसा भी बहुत कुछ घट रहा है, जिसे जानकर आपको लगेगा कि इंसानियत कुछ लोगों में ही सही मगर ज़िन्दा है. वो दुष्यंत कुमार कहते हैं न:

तेरे सीने में नहीं, तो मेरे सीने में सहीहो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए

आज हम आपको बताएंगे ऐसे ही एक लड़के की कहानी, जिसने एक इंसान को ही नहीं, इंसानियत को भी बचाने की ख़ूबसूरत मिसाल दी है.

फ़ेसबुक पेज Humans of Bombay पर इस लड़के ने अपनी छोटी सी कहानी लिखी है, जो हज़ारों लोगों को पसंद आ रही है.

इस बहादुर लड़के ने लिखा है कि, ‘मैंने तैराकी की कोई ट्रेनिंग नहीं ली. मगर मेरी पैदाइश और पालन-पोषण ऐसे क्षेत्र में हुआ कि ये मुझे अपनेआप ही आ गई. हम लोग अक्सर नज़दीक ही पानी में खेला करते थे. यहां पानी कम गहरा था इसलिए हमें कभी डर नहीं लगा.’

इस लड़के ने पिछले साल की एक घटना का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि,

‘पिछले साल की बात है. मैंने एक छोटी बच्ची को पानी में हंसते-मुस्कुराते हुए खेलते देखा. उसे देखकर मुझे अपना बचपन याद आ गया. मैं मुस्कुराया और अपना काम करने लगा, अचानक मुझे उसकी चीख सुनाई दी. मैंने पानी की तरफ़ देखा मगर लड़की वहां नहीं थी. वो पानी की गहराई में डूब रही थी. वहां आस-पास लगभग 100 लोग थे, मगर कोई इंच भर भी नहीं हिला. मैं समझ नहीं पाया कि कोई उस लड़की की मदद को आगे क्यों नहीं आता.’

‘मैं उसे देख नहीं सकता था इसलिए मुझे पता नहीं था कि वो पानी में कहां होगी, लेकिन मैं कूद गया, ये सोचकर कि शायद पानी के अन्दर वो मुझे दिख जाए. मैंने उसे गहराई में डूबते देखा और उसकी तरफ़ बढ़ा, ताकि उसे खींच सकूं. उस जगह पर पानी का दबाव ज़्यादा था मगर मैंने अपनी पूरी ताकत झोंक कर उस लड़की को और ख़ुद को बचाने की कोशिश की. एक समय मुझे लगा कि मैं ये नहीं कर पाऊंगा, क्योंकि उस समय पानी का दबाव बहुत ज़्यादा हो गया था. लेकिन मैंने अपनी सारी शक्ति लगाई और कोशिश की और उस लड़की तक पहुंच गया.’

लड़के ने आगे लिखा है कि, ‘मैंने उसे पकड़ लिया और गहराई से बाहर की तरफ़ खींच लिया. मैं किनारे पर पहुंचा, तो आस-पास तमाशा देखने वाले उस लड़की के शरीर से पानी निकालने के लिए Pump करने को दौड़े. सब मेरी तारीफ़ कर रहे थे, लेकिन मेरा ध्यान इस तरफ़ था कि क्या लड़की सही सलामत है? ईश्वर की कृपा से कुछ मिनट बाद उसने सांस लेना शुरू किया. वो बच गई थी. मैंने ये काम कोई प्रसिद्धि पाने के लिए नहीं किया था, लेकिन तमाम मीडिया वाले मेरे पास आए और इंटरव्यू करने लगे.’

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‘इसके बाद पिछले साल मुझे दिल्ली बुलाया गया, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुझे General National Bravery Award से सम्मानित किया. मेरे परिवार को मुझ पर गर्व था और लोग मुझे बधाई दे रहे थे. उस वक़्त मुझे लगा कि उस दिन तमाशा देखने वालों में कोई भी इस अवॉर्ड को पा सकता था. लेकिन ये मुझे मिला क्योंकि मैंने दूसरों की तरह देखते रहने के बजाय कुछ करने की ठानी. इससे मुझे ज़िन्दगी में एक सीख मिली कि मूक दर्शक बने रहना अच्छा नहीं है, हमें उस समय दूसरों की मदद करनी चाहिए जब उन्हें हमारी ज़रूरत हो. ये बदलाव ही शुरुआत है.’

इस लड़के की ये कहानी बताती है कि इंसानियत के ख़त्म होने की दुहाई देने से कुछ नहीं होगा. बदलाव का बीज हम सबके भीतर है. उसके ऊपर पड़े कूड़े-करकट को हटाना भी हमारी ज़िम्मेदारी है और फिर अच्छी सी उपयुक्त जगह देखकर रोपना भी. हो सकता है इसके परिणाम हम न देख सकें, लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ियों के बग़ीचे में रंग-बिरंगे फूल ज़रूर खिलेंगे.

Martin Luther King Jr ने कहा था, “जो सही है उसे करने के लिए हर समय सही होता है.”

Source: Humans of Bombay