बारिश हो रही थी. डॉ. आर पी यादव अपनी पत्नी के साथ कहीं जा रहे थे. तभी उन्होंने रास्ते में 4 लड़कियों को बारिश में भीगते हुए देखा. यादव जी ने अपनी कार रोकी और उन्हें लिफ़्ट दी. उनसे हुई बातचीत के दौरान पता चला कि वो रोज़ाना 4-5 किलोमीटर पैदल चलकर कॉलेज जाने के लिए बस स्टॉप जाती हैं. लड़कियों ने यादव जी की पत्नी को बताया कि कई बार बस में उनके साथ लड़के छेड़छाड़ भी करते हैं.

इस बात से यादव जी की पत्नी दुखी हो गयीं और उन्होंने अपने पति से पूछा क्या आप इन लड़कियों की कोई मदद कर सकते हैं. इसका जवाब देते हुए उन्होंने अपनी पत्नी से सवाल किया कि ‘अगर आज हमारी बेटी होती, तो उसकी पढ़ाई और शादी पर कितना ख़र्च आता.’ पत्नी ने कहा- ’18-20 लाख रुपये’.

पीएफ के पैसों से ख़रीदी छात्राओं के लिए बस

पत्नी का जवाब सुनकर यादव जी अगले दिन अपने पीएफ से 19 लाख निकाल लाए और कॉलेज जाने वाली लड़कियों के लिए एक बस ख़रीद ली. पिछले एक साल से उनके द्वारा चलाई जा रही बस में आस-पास के गांव की 60 छात्राएं कॉलेज जा रही हैं.

इस बस सर्विस का नाम है ‘निशुल्क बेटी वाहिनी’. इस सर्विस ने राजस्थान के सीकर ज़िले की लड़कियों को न सिर्फ़ सुरक्षा का एहसास कराया, बल्कि उनके सपनों को भी उड़ान दी है. उनके माता-पिता भी अब बेझिझक अपनी बेटियों को कॉलेज भेजने लगे हैं. पहले वही उनकी सुरक्षा की चिंता के कारण ऐसा करने से कतराते थे.

ज़िला अधिकारी ने भी की मदद

इससे क्लास में छात्राओं की उपस्थिति का ग्राफ भी ऊपर की ओर बढ़ चला है. डॉ. यादव की इस नेक पहल का राज्य सरकार ने भी स्वागत किया है. ज़िला अधिकारी ने बस का टोल टैक्स माफ़ कर दिया है और इस पर रोड टैक्स फ़्री करने के लिए आगे फ़ाइल भेज दी है.

इस बस को चलाने में हर महीने तकरीबन 36000 रुपये का डीज़ल लगता है. ड्राइवर और कंडेक्टर की सैलरी अलग. इस पूरे ख़र्च को डॉ. यादव ही वहन करते हैं. सीकर के एक सरकारी अस्पताल में बच्चों के डॉक्टर हैं यादव जी, जो बहुत जल्द रिटायर होने वाले हैं.

महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बातें, तो बहुत होती हैं, लेकिन बहुत कम लोग ही होते हैं, जो आगे बढ़कर इस समस्या को ख़त्म करने का प्रयास करते हैं. डॉ. यादव उन्हीं चंद लोगों में से हैं.