इतिहास गवाह है कि जब युद्ध होता है, तब केवल इंसान ही नहीं, उसके साथ-साथ एक पूरा समाज, संस्कृति सब कुछ नष्ट हो जाता है. मगर ये भी सच है कि हर युद्ध अपने पीछे एक नई संस्कृति और सभ्यता की नींव रख कर जाता है, जो युद्ध के बाद की स्थितियों से उबरने की ताकत देती है. और जो इन स्थितियों ने उबरने और दूसरों की उबारने की कोशिश करते हैं, वो एक नया समाज बनाते हैं.
आज हम आपको एक ऐसे ही गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जो कभी सीरिया के युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में था. इस गांव पर ISIS का कब्ज़ा था. लेकिन आज इस गांव की कायापलट हो चुकी है. कायापलट माने, इस गांव को पूरी तरह से महिलायें ही चला रही हैं.
जिनवार नाम के इस गांव की सुरक्षा से लेकर यहां पर घर बनाने तक का सारा काम ये महिलायें ही करती हैं. इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि इस गांव में सिर्फ़ और सिर्फ़ महिलाओं का एकाधिकार है और बिना इनकी मर्ज़ी के कोई परिंदा भी यहां पर नहीं मार सकता है.
एक समय था जब इस गांव में महिलाओं को नियमित रूप से पितृसत्ता समाज होने के चलते तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता था और रूढ़िवादी सोच से रोज़ाना संघर्ष करना पड़ता था. वो ऐसा वक़्त था, जब जिनवार गांव की महिलायें बिना पुरुषों के जीवन की कल्पना तक भी नहीं कर सकती थीं. लेकिन उत्तरी सीरिया में रहने वाली महिलाओं के इस ग्रुप ने अपनी इस कल्पना को हक़ीक़त में बदल दिया.
मगर गांव की स्थिति बदलने की ये कहानी भी कई संघर्षों से भरी हुई है. उत्तरी सीरिया की इन महिलाओं ने एक आत्मनिर्भर नारीवादी संस्था बनाई. एक ऐसी संस्था जो पितृसत्ता और पूंजीवाद द्वारा लगाए गए कई तरह की बाधाओं से मुक्त थी.
जिनवार गांव, जो केवल महिलाओं का गांव है, उत्तरी सीरिया के डेमोक्रेटिक फ़ेडरेशन में स्थित है. डेमोक्रेटिक फ़ेडरेशन, एक वास्तविक स्वायत्त क्षेत्र है, जिसे आमतौर पर रोजवा के नाम से जाना जाता है. इस गांव की नींव 2016 में रखी गई थी. इस गांव में अभी तक 30 घर, एक स्कूल, एक म्यूज़ियम और एक मेडिकल सेंटर बन चुका है.
अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवकों और महिला संगठनों के समर्थन और सहायता से स्थानीय महिलाओं के ग्रुप ने इस इस संस्था को खड़ा किया. महिलाओं की इस संस्था का उद्देश्य अपने अस्तित्व के लिए एक वैकल्पिक और शांतिपूर्ण जगह प्रदान करना था, ताकि वो बिना किसी हिंसा के सुकून भरा जीवन व्यतीत कर सकें.
जिनवार की ऑफ़िशियल वेबसाइट के अनुसार, महिलाओं द्वारा महिलाओं के लिए बनाया गया ये गांव सभी जातियों और धर्मों की रोजवन महिलाओं और उनके बच्चों का घर है.
The Independent के मुताबिक़, ये पहल उन कुर्द महिलाओं से प्रेरित थी, जिन्होंने तथाकथित इस्लामी स्टेट (Daesh) से लड़ने के लिए हथियार उठाए थे, जो कुछ साल पहले इस क्षेत्र के नियंत्रण में था. उस समय एक आतंकवादी संगठन ने यहां के यज़ीदीस की हत्या कर दी, और हजारों महिलाओं से बलात्कार किया और उन्हें सेक्स स्लेव के रूप में इस्तेमाल किया.
जिनवार गांव की नींव रखने वाली कई महिलायें भी इस स्थिति को झेल चुकी थीं, उनको भी समाज में फैली रूढ़िवादी सोच, पितृसत्तात्मक का सामना करना पड़ा. लेकिन वो कहते हैं न कि किसी भी चीज़ को झेलने और सहन करने की एक सीमा होती है. ऐसा ही कुछ हुआ इन महिलाओं के साथ और इन्होने अपमान और यातना सहने की बजाए सदियों से चले आ रही पारंपरिक लिंग भूमिकाओं को चुनौती देने का फ़ैसला किया.
महिलाओं का ये गांव उनकी आत्मनिर्भरता का प्रतीक है
घर बनाने से लेकर, फ़सल उगाने और जानवरों की देखभाल करना, जिनवार गांव की हर महिला अपनी भूमिका को बख़ूबी समझती है और जानती है ताकि उनके समुदाय की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके. इसके साथ ही अपने इस प्रयास से ये महिलायें पारिस्थितिक और सांप्रदायिक जीवन को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही हैं.
वेबसाइट के अनुसार, ‘जिनवार गांव की स्थापना स्व-स्थायित्व के सिद्धांतों पर की गई थी और इसका लक्ष्य महिलाओं को उनकी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने का अवसर देना था.’
तो चलिए अब मिलते हैं जिनवार गांव की महिलाओं से
जिनवार में रहने वाली अमीर मुहम्मद , जिनके पति को Daesh के लोगों ने मार दिया था, ने बताया कि वो अपने बच्चों के साथ जिनवार आ गई थी क्योंकि वो अपने माता-पिता पर आर्थिक रूप से आश्रित नहीं रहना चाहती थीं.
वहीं ज़ैनब गवारी नाम की महिला जो विधवा हैं, का कहना है कि वो अपने बेटे के साथ अपनी मां के विरोध के बावजूद इस ग्रुप से जुड़ी थीं. उन्होंने कहा कि यहां पुरुषों की कोई ज़रूरत नहीं है, हमारा जीवन बहुत अच्छा है यहां. इसके साथ ही वो आगे कहती हैं, जब तक कि महिलाएं ख़ुद को शिक्षित और सशक्त नहीं करतीं, तब तक वो आज़ाद नहीं हो सकती हैं.’
जिनवार ऐसा पहला गांव नहीं है
ग़ौरतलब बात ये है कि ये ऐसा पहला गांव नहीं हैं, जहां महिलाओं की हुकूमत है और जहां महिलाओं ने पुरुषों के प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा रखा है. और ये भी पहली बार नहीं हुआ है कि महिलाओं ने दमनकारी और पितृसत्तात्मक सोच के आगे घुटने टेकने की बजाए आत्म-निर्भर होने की ओर कदम बढ़ाया है.
Umoja, Kenya, a women-only village which is home to around 50 adults and 200 children, created for females to escape male/patriarchal violence and control, by photographer Georgina Goodwin #womensart pic.twitter.com/1HgqNawVwN
— #WOMENSART (@womensart1) May 20, 2018
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 1990 में ब्रिटिश सैनिकों द्वारा बलात्कार किये जाने के बाद महिलाओं के एक समुदाय ने उत्तरी केन्या में अपना एक अलग गांव स्थापित कर लिया था.
वहीं उमोजा नाम का एक गांव का विस्तार पिछले कुछ सालों में ही हो गया है. ये गांव सांबुरु जनजाति में फैले दमनकारी सांस्कृतिक मानदंडों जैसे बाल विवाह, घरेलू हिंसा, बलात्कार और स्त्रियों के जननांगों के साथ विकृत हरकत करने की परंपरा से बचने की कोशिश करने वाली महिलाओं का स्वागत करता है.
इसी प्रकार इस लिस्ट में दक्षिणी मिस्र में अल समहा नामक एक अखिल महिला गांव शामिल है, जो 300 से अधिक अकेली महिलाओं और उनके बच्चों का घर है.
इन सभी महिलाओं ने साबित कर दिया कि वो अपने दम पर ज़िन्दगी व्यतीत कर सकती हैं, वो पुरुषों पर निर्भर नहीं रहना चाहती हैं.