मौसम का मिजाज़ पल-पल रंग बदल रहा है. कहीं तेज़ बारिश, कहीं पसीने छुड़ा देने वाली गर्मी. इन सबकी वजह है बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण. पर इसकी चिंता शायद हमारे माननीयों को कतई नहीं. इसी का नतीजा है केरल में आई बाढ़ और उत्तर भारत में सितंबर के महीने रिकॉर्ड तोड़ बारिश.

वहीं दूसरी तरफ़ कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो देश और दुनिया को हरा-भरा बनाने में जुटे हैं. इन्हें देख कर दिल को तसल्ली मिलती है कि कोई तो है जिसे हमारे वातावरण की चिंता है. इन्हीं में से एक हैं सोनीपत को प्राकृतिक हरे रंग से रंगने में जुटे कॉन्स्टेबल देवेंद्र सुरा.

सुरा चंडीगढ़ में एक पुलिस कॉन्स्टेबल की नौकरी करते हैं. 30 वर्षीय सुरा अपनी जेब से 30 लाख ख़र्च कर शहर सोनीपत को हरियाली से समृद्ध करने में जुटे हैं. 2012 में शुरू हुई उनकी इस नेक पहल का लोगों ने खुले दिल से स्वागत किया है. अब ज़िले की 152 पंचायत और तकरीबन 2000 युवक उनके साथ मिलकर शहर भर में पेड़ लगाने का काम कर रहे हैं.

चंडीगढ़ की हरियाली से ली प्रेरणा

2012 में देवेंद्र सुरा की पोस्टिंग चंडीगढ़ में हुई थी. जब वो इस शहर पहुंचे थे, तब इसकी हरियाली को देख कर मंत्रमुग्ध रह गए थे. तभी इन्होंने ठान लिया था कि वो अपने होमटाउन सोनीपत को भी इतना ही हरा-भरा बनाएंगे.

इसके लिए उन्होंने भी अपने शहर में पिलखन के पेड़ लगाने की बात सोची, जो चंडीगढ़ में हर जगह दिख जाते हैं. दूसरी वजह ये है कि पिलखन तेज़ी से बढ़ता है और आस-पास के इलाके को जल्द हरियाली प्रदान करता है. वो काम से वक़्त निकालकर प्राइवेट नर्सरी से इसके पौधे लाकर उन्हें शहर भर में लगाने लगे. शुरुआत में तो इस काम में उनकी सारी सैलरी ख़र्च हो जाती थी.

परिवार ने किया था विरोध

इसलिए उनका परिवार नाराज़ रहने लगा. किंतू अपने शहर को क्लीन और ग्रीन बनाने की लगन के आगे उन्हें भी हार मानना पड़ा. फ़िलहाल उनके परिवार का ख़र्च पिता की पेंशन और गॉर्ड की नौकरी से मिलने वाली सैलरी से होता है. शहर से पौधे ख़रीदने पर उनका पैसा अधिक ख़र्च होता था. इसलिए उन्होंने यूपी में पिलखन के पेड़ की पौध तैयार करने वाले किसानों की मदद ली. 

सुरा ने उनके साथ 15 दिन बिताए. इस दौरान उन्होंने इसकी पौध तैयार करने संबंधी ट्रेनिंग ली. अब वो ख़ुद अपने शहर में इसके पौध तैयार कर रहे हैं. इससे उनका ख़र्च तकरीबन आधा हो गया है. इसे भी वो पेड़ लगाने पर ही व्यय कर रहे हैं.

लोगों को मुफ़्त में देते हैं पौधे

पिलखन के साथ ही सुरा अब पीपल और कई तरह के औषधीय पौधे भी लगाने लगे हैं. 152 ग्राम पंचायतों में फैले इनके Volunteers स्कूल, सड़क और आश्रम में पेड़ लगाने का काम कर रहे हैं. साथ ही वो पेड़ लगाने के इच्छुक लोगों को मुफ़्त में पौधे देते हैं. बस इसके बदले उनसे पौधे के पेड़ बनने तक उसकी रक्षा और देखभाल करने का वादा लेते हैं.

प्रदूषण न हो इसलिए गाड़ी नहीं बैलगाड़ी से बांटते हैं पौधे

पर्यावरण को पेड़ों के ज़रिये शुद्ध करने में लगे सुरा लोगों को स्वास्थ्य के बारे में भी जागरुक कर रहे हैं. वो हर साल त्योहारों पर मिलने वाली मिलावटी मिठाइयों की जगह घर में बनी मिठाई खाने को कहते हैं. इसके लिए वो स्वयं मिठाइयां बनाकर ज़रूरतमंदों को भी देते हैं. 

साथ ही वो लोगों से प्रदूषण कम फैले इसके लिए छोटी दूरी के लिए गाड़ी की जगह साइकिल से चलने का आग्रह करते हैं. वो ख़ुद भी अपने पौधे किसी ट्रक या टैम्पो में नहीं, बल्कि एक बैलगाड़ी में बांटने करने जाते हैं.

पर्यावरण में प्रदूषण रूपी खरपतवार को खुरपा लेकर नष्ट करने में जुटे देवेंद्र की इस पहल की जितनी प्रशंसा की जाए कम है.