रोज़ाना घर से दफ़्तर जाते वक़्त कितनी ही बार आपको कोई बुज़ुर्ग या गर्भवती या चोटिल इंसान खड़े-खड़े सफ़र करता दिखता होगा. कितनी बार आपने उनके लिए सीट छोड़ी होगी?

कुछ लोग शालीनता से ज़रूरतमंदों को बैठने की जगह दे देते हैं और कुछ बहस पर उतर आते हैं.

‘लेडीज़ हो लेडीज़ डिब्बे में जाओ’, ऐसे कमेंट सुनने मिलते हैं.

कोई न उठाए इसलिए पैर ज़्यादा फैलाकर बैठते हैं. या फिर नींद में होने, न सुनने का उत्तम अभिनय करते हैं.

कुछ इसी तरह की घटना का सामना किया मुंबई की सॉफ़्टवेयर इंजीनियर दीपिका ने. Mastek में कार्यरत दीपिका विरार से चर्चगेट स्टेशन जा रही थीं. सफ़र के दौरान दीपिका का सामना एक महिला से हुआ. दीपिका ने अपनी आपबीती फ़ेसबुक पर शेयर की.

‘बहुत ही पतली-दुबली, मैले-कुचैले कपड़े वाली, अव्यवस्थित सामान की गठरी लिए एक महिला ने लोकल में चढ़ी. सारी सीटें भर चुकी थीं. वो इतनी पतली थी कि 2-3 साल के बच्चे जितनी जगह में ही बैठ जाए. उसने बैठी हुईं सारी महिलाओं को जगह बनाने को कहा, सभी पैर फैलाकर बैठीं थीं और ऐसे दिखा रही थी कि जगह नहीं है. महिलाएं सीट से यूं चिपकी थीं मानो फे़विकॉल लगा लिया हो.

मैंने उन्हें एहसास दिलाया कि जगह देना, दयालुता दिखाना होगा. कुछ मिनटों के ‘अप्रिय वार्तालाप’ के बाद महिलाओं ने जगह बनाई, लेकिन सभी उस महिला को घृणित निगाहों से देख रहे थे. उन्होंने मुझे उस महिला को अपने पास बैठाने को कहा क्योंकि वो एक मैली-कुचैली औरत के पास नहीं बैठना चाहती थी.

मेरी क़िस्मत अच्छी थीं कि वो मेरे पास ही बैठीं. मुझे उनके लिए बुरा लग रहा था. मैंने उनसे कहा कि दूसरों की बातों का बुरा न मानें.

वो महिला मुस्कुरा दी और कहा,

‘मुझे बुरा नहीं लगता, क्योंकि उनकी बातें सिर्फ़ 1 घंटे के सफ़र के दौरान ही रहेंगी. उनकी बातें मेरी 85 साल के ज़िन्दगी के सफ़र पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाएंगे. इसमें उनकी ग़लती नहीं है कि वो नहीं जानते कि ये मैली-कुचैली महिला राज्य स्तर की हॉकी खिलाड़ी रह चुकी है. वो ये नहीं जानतीं कि जिस महिला को वो बदसूरत समझ रही हैं, वो जवानी के दिनों में वो मॉडलिंग भी कर चुकी है. जिस महिला को वो कमज़ोर समझ रही हैं, इस महिला ने काफ़ी पहले अपने पति और इकलौती बेटी को खो दिया था, फिर भी ज़िंदादिली के साथ ज़िन्दगी जी है. उन्हें ये नहीं पता कि जिस औरत से ‘पहली बार आई है क्या ट्रेन में’ कह रहे हैं, वो 1940 से मुंबई लोकल में Peak Hours के दौरान सफ़र कर रही है. जिस औरत को वो इस उम्र में घर पर बैठने की हिदायत दे रहे हैं, वो रोज़ाना विरार से बांद्रा ग़रीब बच्चों को पढ़ाने जाती है ताकि वो इन महिलाओं की तरह न बन जाएं!’

सच में किसी भी किताब का आंकलन उसके कवर से नहीं करना चाहिए.’

दीपिका ने उस महिला से नाम पूछा तो उन्होंने कहा, ‘Ivy’. इसका मतलब जानने की जिज्ञासा दीपिका की आंखों में दिख गई, तो Ivy ने कुछ यूं जवाब दिया,

Ivy एक पौधा है. तुमने स्कूल में नहीं पढ़ा?

दीपिका की पोस्ट को अब तक फ़ेसबुक पर 42 हज़ार से ज़्यादा बार शेयर किया जा चुका है. लोगों ने इस पर अलग-अलग प्रतिक्रियां दी हैं.

1. इस शख़्स ने दीपिका के माता-पिता और उसकी पढ़ाई के बारे में जानने की इच्छा ज़ाहिर की.

2. दीपिका और Ivy के लिए शुभकामनाएं!

3. इस शख़्स ने दीपिका को तारीफ़ में आलिया भट्ट कहा!

4. सच में दोनों ही महिलाओं की जितनी तारीफ़ करें कम है!

5. Twitter पर Empowering Goa ने दीपिका की कहानी साझा की और वहां भी आशीषों की वर्षा हो गई.

Ivy की कहानी, हम सभी के लिए प्रेरणा है. ज़िन्दगी को किस तरह ज़िन्दादिली के साथ जीया जाता है, ये हमें Ivy से सीखना चाहिए. एक चीज़ और, हमारे सामने इतनी कहानियां पड़ी होती हैं और हम गर्दन नीची कर फ़ोन पर चैट करते हुए उन्हें खो देते हैं. 

अगर दीपिका ने भी ऐसा ही किया होता तो, शायद Ivy की कहानी कभी सामने न आती. छोटी सी ज़िन्दगी है, इसमें जितनी कहानियां समेत सको, उतना अच्छा.