सिंड्रोम यानि किसी एक ख़ास परिस्थिति में एक ख़ास किस्म का व्यवहार करना, जो देखने और सुनने में व्यवहारिक न होकर एकदम अजीबोगरीब लगे. दुनिया में कई तरह के सिंड्रोम हैं और अगर आपको इन सिंड्रोम के बारे में जानकारी हो तो दुनिया के सबसे जटिल प्राणी यानि मनुष्यों के बारे में कुछ हद तक आपकी समझ भी बढ़ जाती है.

1. स्टॉकहोम सिंड्रोम

स्टॉकहोम सिंड्रोम इस लिस्ट में सबसे लोकप्रिय सिंड्रोम में शुमार है. माना जाता है कि आलिया भट्ट और रणदीप हुड्डा की फ़िल्म हाइवे भी इसी कॉन्सेप्ट पर आधारित थी.

इस सिंड्रोम में लोगों को शारीरिक नुकसान से डर लगता है और ऐसे में कई बार लोग अपने अपहरणकर्ताओं के प्रति सहज होने लगते हैं, ताकि वो उन्हें नुकसान न पहुंचाने पाए. कई मामलों में ये सहजपन, दोस्ती और उसके बाद आकर्षण में बदल सकता है.

स्टॉकहोम सिंड्रोम, 1973 में एक मामले के बाद चर्चा में आया था. 32 साल के एक क्रिमिनल एरिक ओल्सन ने बैंक में चोरी करते समय 4 लोगों का अपहरण किया था. छह दिन बाद जब ये पूरा मामला शांत हुआ तो चारों लोगों के अपने अपहरणकर्ता के साथ सकारात्मक रिश्ते बन चुके थे. इनमें से किसी ने भी एरिक के खिलाफ़ गवाही नहीं दी थी और इसके अलावा इन लोगों ने एरिक की सुरक्षा के लिए पैसों का इंतज़ाम भी शुरू किया था.

2. लंदन सिंड्रोम

लंदन सिंड्रोम को स्टॉकहोम सिंड्रोम का विपरीत कहा जा सकता है. इस सिंड्रोम में लोगों को अपने अपहरणकर्ता के लिए बेहद नफ़रत फ़ील होने लगती है.

1980 में लंदन में ईरान एंबेसी की घेराबंदी के दौरान अब्बास लावासानी नाम के एक शख़्स ने अपने अपहरणकर्ताओं के साथ बहस करनी शुरू कर दी थी. उसके विरोध का आलम ये था कि अपहरणकर्ताओं ने उसे मार गिराया था.

3. Uppgivenhetssyndrom

हालांकि इस डिसऑर्डर का नाम किसी जगह पर नहीं पड़ा है, लेकिन ये डिसऑर्डर केवल एक ही जगह पर होता है. स्वीडन से माइग्रेट हुए कई बच्चों और नौजवानों को पूर्वी सोवियत या युगोस्लोवाकिया जैसे देशों में शरण लेनी पड़ती है. इस पीड़ादायक माइग्रेशन के बाद ये लोग अपने देश से बाहर निकलने पर इतने दुखी होते हैं कि खाना पीना, बोलना सब भूल जाते हैं और डिप्रेशन का शिकार भी हो सकते हैं. खास बात ये है कि स्वीडन से माइग्रेट होकर दूसरे देशों में जाने वाले लोगों में ही ये सिंड्रोम देखा गया है.

4 पेरिस सिंड्रोम

हर साल साठ लाख जापानी पर्यटक पेरिस की यात्रा करते हैं. पेरिस को प्यार का शहर कहा जाता है. इस शहर के ग्लैमर, हाई फ़ैशन लाइफस्टाइल और दुनिया के सर्वाधिक रोमांटिक शहर की छवि गढ़ी गई है. यही कारण है कि कई जापानी लोग इस शहर में कुछ अनोखी धारणाओं के साथ पहुंचते हैं लेकिन जब वास्तविकता से इन लोगों का सामना होता है, तो कई लोगों को कल्चर शॉक लगता है और ऐसे में कई लोगों को बैचेनी और मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है. ज़्यादातर लोगों के लिए इस परिस्थिति में पेरिस छोड़कर वापस अपने देश जापान चले जाना ही उचित उपाय माना जाता है.

5. फ़्लोरेंस सिंड्रोम

अगर आप किसी आर्ट म्यूज़ियम में हैं और आपको बैचेनी, पसीना आना और अजीब महसूस होने लगता है, तो बहुत ज़्यादा सम्भावना है कि आप फ़्लोरेंस सिंड्रोम से गुज़र रहे हो.

लेकिन ऐसा क्यों होता है? क्या सदियों पुरानी तस्वीरें या आर्टिस्टिक पेटिंग्स की गंध दिमाग में चढ़ जाती है? नहीं ऐसा नहीं है. दरअसल इस परिस्थिति को आर्ट का ओवरडोज़ होना भी कहा जा सकता है. ज़्यादातर केसों में ऐसे लोग अक्सर किसी भी नई चीज़ के आगमन से जल्दी ही प्रभावित हो जाते हैं, इन स्थितियों में लोगों की उम्र अक्सर 26 से 40 की उम्र तक होती है. यात्रा से थकान और आर्ट का ओवरडोज़ लोगों को ऐसा महसूस करा सकता है.

6. जेरूसेलम सिंड्रोम

क्या किसी धार्मिक जगह पर जाने के बाद लोगों के विचारों और व्यवहार में बदलाव आ सकता है? जेरूसेलम सिंड्रोम दरअसल एक ऐसा ही सिंड्रोंम है. कई पर्यटक इस जगह जाने के बाद ये दावा कर चुके हैं कि वो बाइबिल के कोई पात्र है और वे अपने आपको अलौकिक शक्तियों से घिरा मानने लगते हैं.

हालांकि जेरूसेलम सिंड्रोम कई मायनों में पेरिस सिंड्रोम की तरह भी हो सकता है क्योंकि कई लोगों के लिए अक्सर जेरूसेलम कल्चर शॉक साबित होता है. जेरूसेलम सिंड्रोम के शिकार लोगों को बैचेनी हो सकती है. लोगों से मिलने की जगह, अकेलापन ज़्यादा रास आ सकता है. किसी धार्मिक जगह में अत्यधिक दिलचस्पी जैसी कई चीज़ें जेरूसेलम सिंड्रोम का हिस्सा होती हैं.

7. जंपिंग फ्रेंचमैन ऑफ़ Maine

1870 में उत्तरी Maine में फ़्रेंच और कनाडा के लोग जब किसी बात पर भौंचक्के होते थे तो कूदने लगते थे और अपने आसपास मौजूद लोगों की नकल उतारने लगते थे. इसके अलावा ये लोग चिल्लाना, कूदना, एक-दूसरे को मारना और कई अजीबोगरीब चीज़ें भी करते थे. हालांकि ये सिंड्रोम Maine के साथ ही गायब हो गया, लेकिन इसी तरह के बिहेवियर को लुईसियाना, मलेशिया, साइबेरिया, भारत, सोमालिया और यमन के कुछ क्षेत्रों में भी देखा गया था. कुछ लोगों का मानना है कि ये डिसऑर्डर, कहीं न कहीं जेनेटिक भी हो सकता है.

8. लिमा सिंड्रोम

लिमा सिंड्रोम, स्टॉकहोम सिंड्रोम से एकदम विपरीत है. इस सिंड्रोम में अपहरणकर्ता अपने द्वारा कैद किए गए शख़्स के लिए सहानुभूति महसूस करने लगता है.

इस शब्द का पहली बार इस्तेमाल 1996 में हुआ था, जब पेरू में मिलिटेंट मूवमेंट के लोगों ने कुछ ही दिनों में ज़्यादातर अपहरण किए लोगों को छोड़ दिया गया, इनमें वे लोग भी शामिल थे, जिन्हें अपहरण के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा था.

Source: oddee