हाल ही में रिलीज़ हुई आमिर खान की फ़िल्म ‘दंगल’ ने हर तरह से बॉक्स ऑफिस के सारे रिकार्ड्स तोड़ दिए हैं. ये तो आपको पता ही होगा की इस फ़िल्म की कहानी फोगट सिस्टर्स की असली कहानी पर आधारित है. लेकिन हरियाणा के एक छोटे से गांव की दो लड़कियों की असली कहानी शायद ही किसी को पता होगी, जिन्होंने विश्व पटल पर भारत नाम ऊंचा किया था. मगर न ही किसी को इनके वारे में पता होगा और न ही किसी ने इन पर कोई कहानी ही लिखी होगी. या यूं कह लीजिये कि इन दोनों पर शायद मीडिया की नज़र ही नहीं पड़ी.
28 वर्षीय गीता फोगाट, कॉमनवेल्थ गेम्स में कुश्ती में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं. इसके साथ ही वो पहली महिला पहलवान भी हैं जिसने ओलम्पिक में क्वालीफाई किया था. आज गीता देश की हर महिला के लिए प्रेरणा स्रोत हैं. फ़िल्म में दिखाए महावीर सिंह फोगाट का अपनी बेटियों के लिए किया गया संघर्ष इंडिया में फीमेल एथलीट्स की स्थिति को बखूबी दिखाता है.
फ़िल्म रिलीज़ होने के बाद महाराष्ट्र में रहने वाली 16 साल की महिमा राठौड़ जब इस फ़िल्म को अपने पिता के साथ देख रहीं थीं, तो उनकी आंखों से लगातार आंसू निकल रहे थे. महिमा को फ़िल्म की में दिखाए गए एक पिता के संघर्ष को देख कर अपने पिता के संघर्ष याद आ रहे थे. फिल्म में दिखाया गया महावीर सिंह फोगाट का संघर्ष हु-ब-हु महिमा के पिता राजू राठौड़ की असल ज़िन्दगी की कहानी से मिलता-जुलता है.
क्या है महिमा की कहानी
आपको बता दें कि राजू राठोड एक किसान हैं, लेकिन एक ज़माना था जब वो पहलवानी करते थे. राजू के पूरे परिवार ने कई पुश्तों से पहलवानी ही की थी. राजू के दादा, पिता और 8 चाचा सभी पहलवानी करते थे. इतना ही नहीं वो सभी स्टेट लेवल की कई प्रतियोगिताओं के विजेता भी रहे थे. हालांकि, परिवार की आर्थिक स्थिति और कुश्ती के लिए ज़रूरी सुविधाओं की कमी के चलते उनको पहलवानी को छोड़ किसानी को अपने जीविकोपार्जन के लिए चुनना पड़ा.
राजू बताते हैं, पहलवानी करने के लिए बहुत अच्छे डाइट की ज़रूरत होती है. हमारे लिए तो दो वक़्त की रोटी भी मिल पाना मुश्किल था फिर पहलवानी कैसे करते.
हालांकि, जब राजू और उनके भाई संतोष थोड़े बड़े हुए तो वे दोनों भी अपने पिता और चाचाओं के साथ पहलवानी करने लगे. दोनों ही भाईयों ने राज्य स्तर पर मेडल भी जीते पर फिर बात वही दो वक़्त की रोटी कमाने पर आकर रुक गयी. राजू भी खेतो में मजदूरी करने लगे और धीरे-धीरे पहलवानी छोड़ दी.
जल्द ही अपनी मेहनत के दम पर राजू ने 3 एकर ज़मीन खरीद ली पर अब भी फसल उतनी ही होती जिससे बस अपने परिवार का गुज़र बसर कर सके. लेकिन पहलवानी तो उनके खून में थी, तो अब वो सपना देखने लगे कि जैसे ही उनका बेटा होगा, वो उसे पहलवान जरूर बनायेंगे, ठीक उसी तरह जैसे फ़िल्म में महावीर फोगाट ने देखा था.
दंगल के महावीर की तरह ही राजू को भी उस समय बेहद निराशा हुई जब उन्हें पता चला कि उनकी पहली संतान एक लड़की है. इसके बाद उनके भाई के घर भी एक बेटी पैदा हुई, इसके बाद दोनों भाई निराश हो गए!
इसके साथ ही राजू बताते हैं, एक रोज़ मैं और मेरा भाई बाते कर रहे थे. वो कह रहा था कि भैया इश्वर ने हमे बेटियां देकर हमारे साथ बहुत नाइंसाफी की है. पर हम दोनों ने सोचा कि क्यों न हम अपनी बेटियों से ही पहलवानी करवाए! ये दस साल पुरानी बात है और उस वक़्त हमें फोगाट बहनों या महावीर सिंह फोगाट के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. हमारे गांव में तो क्या हमारे पूरे जिले में कोई लड़की पहलवानी नहीं करती थी. पर हम भाईयों ने ठान लिया कि हम ये खानदानी हुनर अपनी बेटियों को ज़रूर सिखायेंगे.
इसके बाद राजू और संतोष ने अपनी बेटियों को पहलवानी के सारे गुर सिखा दिए. लेकिन दुर्भाग्यवश पांच साल पहले एक दुर्घटना में संतोष की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी बेटी ने दोक्टारी में अपना करियर बनाने का फैसला किया. राजू ने भी उसकी इच्छा के मुताबिक़ उसे अपना करियर चुनने दिया.
महावीर ने खुद भले ही पहलवानी छोड़कर किसानी को अपना लिया था, लेकिन उन्होंने अपनी बेटियों के ज़रिये अपने सपने को पूरा कर दिखाया. इसके बाद पूरे गांव में राजू की बेटी महिमा ही अकेली लड़की थी, जो दंगल लड़ने के लिए अखाड़े में उतरती थी. लोग मजाक उड़ाते, अजीब-अजीब नामों से बुलाते, उट-पटांग बातें करते थे, पर राजू रुकने वालो में से नहीं था. धीरे-धीरे महिमा लड़कों को पछाड़ने लगी और दूसरे गांवों में जाकर दंगल लड़ने लगी. 16 साल की महिमा आज नेशनल लेवल की खिलाड़ी हैं. और यहां तक वो किसी भी प्रोफेशनल ट्रेनिंग और डायटीशियन की मदद के बगैर पहुंची है.
गौरतलब है कि अब तक महिमा के पिता राजू राठौड़ ही उसके कोच रहे हैं. ये महिमा की मेहनत और राजू की लगन का ही नतीजा है कि पिछले साल भुवनेश्वर में हुई राष्ट्रिय कुश्ती स्पर्धा में महिमा ने रजत पदक हासिल किया. महिमा ने हाल ही पटना में आयोजित नेशनल रेसलिंग चैंपियनशिप में महाराष्ट्र को रिप्रेजेंट भी किया था.
वर्तनाम में महिमा पूरी मेहनत और लगन के साथ 2016-17 के राष्ट्र स्तरीय खेलों की तैयारी कर रहीं हैं.
महिमा कहती हैं, गांववाले आज भी हमारा मज़ाक उड़ाते हैं, पर मेरे बाबा उन्हें जवाब दे देते हैं और मेरा मनोबल बनाये रखते हैं. उनसे मैंने एक ही बात सीखी है कि जीवन में कभी भी हार नहीं माननी है.
आपको बता दें कि आगे बढ़ने के लिए महिमा को व्यावसायिक प्रशिक्षण और अच्छे खान पान की ज़रूरत होगी, जो उनके किसान पिता के लिए संभव नहीं है.
16 साल की महिमा आज नेशनल लेवल की खिलाड़ी है. और यहां तक वो किसी भी प्रोफेशनल ट्रेनिंग और डायटीशियन की मदद के बगैर पहुंची है. उम्मीद है महिमा अपने सफर को फिल्म ‘दंगल’ की तरह आगे बढ़ाते हुए ओलंपिक तक पहुंचेंगी और देश का नाम रोशन करेंगी.