आज हम आपको एक ऐसी महिला से मिलवाने जा रहे हैं, जिसने कई अनाथ और बेसहारा बच्चों की ज़िन्दगी संवार है. श्रीमती वनीथा रेंगराज पोलाची के एक स्थानीय आर्ट और साइंस कॉलेज के डिपार्टमेंट ऑफ हिस्टरी में बतौर सीनियर ग्रेड लेक्चरर काम कर रहीं थीं. उसी दौरान उनको पोलाची के इनर व्हील क्लब, के प्रेसिडेंट के रूप में चुना गया. इनर व्हील क्लब 1998-99 के दौरान रोटरी क्लब का ही एक विंग हुआ करता था. यही वो समय था जब उन्होंने समाज के लिए कुछ करने के लिए गंभीरता से सोचा और इसके लिए उन्होंने फुटपाथों और उनके आस-पास के स्लम एरिया में रहने वाले लोगों के मिलना-जुलना और उनकी समस्याओं और परेशानियों को समझना शुरू किया.
वनीथा इन जुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के लिए कुछ करना चाहती थी, खासतौर पर इन इलाकों में रहने वाले बच्चों और महिलाओं जो गरीबी में अपना जीवन व्यतीत करने को मजबूर थे. उनके मन में ये ख्याल जुग्गी-झोपड़ी वाले क्षेत्रों का निरिक्षण करने और वहां के लोगों के गरीबी भरे जीवन को देखने के दौरान आया था.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2017/01/587dfbfb19867e7fc0db9906_0ae44b91-2110-47b2-99f4-b5e2f627c848.jpg)
जब वनीथा ने इस इलाकों का निरीक्षण किया तो उन्होंने देखा कि इन स्लम बस्तियों में रहने वाले बच्चे स्कूल नहीं जाते थे, न ही उनके पास खाने के लिए हेल्दी खाना था और न ही उनको टाइम पर खाना मिलता था. इतना ही नहीं कुछ बच्चे तो ऐसे भी थे वहां जिनके पास बदन ढंकने के लिए कपडे भी नहीं थे. वहां पर कई बच्चे ऐसे भी थे जो शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम थे और उनकी देखभाल करने के लिए भी कोई नहीं था. स्लम बस्तियों में रहने वाले बच्चों और महिलाओं की ऐसी स्थिति देखकर उनका मन बहुत ही विचलित हो उठा था. बच्चों की दयनीय हालत देखकर उन्होंने अपनी एक संस्था खोलने का निर्णय लिया, एक ऐसी संस्था जो इन अनाथ और दिव्यांग बच्चों और महिलाओं की देखभाल करे. उन्होंने कसम खाई कि वो इनकी स्थिति को पूरी तरह से बदल कर इनको ऐसी ज़िन्दगी देंगी जिसमें प्यार होगा, केयर होगी और इनका सम्मान भी होगा.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2017/01/587dfbfb19867e7fc0db9906_0ad1f585-3065-420f-aec9-b1075b894c80.jpg)
वनीथा की इसी विचारधारा की बदौलत 29 जनवरी, 2001 को जन्म हुआ शरणालयम संस्था. वनीथा ने इस संस्था की शुरुआत एक किराए के घर में फुटपाथ, रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन और उनके आस-पास की जुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले 7 बच्चों से की थी. पहले इन बच्चों माता-पिता वनीथा की इस इच्छा के खिलाफ़ थे, लेकिन उनके पास अपने बच्चों के खातिर ही वनीथा के साथ खड़े होने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था. हालांकि, उन दिनों ऐसे बच्चों की तादाद ज्यादा ही थी इसीलिए एक साल के अन्दर ही उनकी इस संस्था में 100 से भी ज़्यादा बच्चे रहने लगे थे. किराए के छोटे से घर में बनी इस संस्था में हर जगह बच्चे थे, किसी कोने से बच्चे के रोने की आवाज़ आती थी, तो कही से हंसने और झगंडे की. कोई किसी पर गुस्सा कर रहा होता था तो कोई अपनी ख़ुशी व्यक्त कर रहा होता था.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2017/01/587dfbfb19867e7fc0db9906_b66963b4-01dc-4f18-909e-0a41044303c0.jpg)
जैसा कि हमने बताया कि हर जगह बच्चे होते थे, तो वीनिता जी भी कैसे बची रह सकती थीं, तभी कोई बच्चा उनके कंधे पर तो कोई उनकी गोदी में. कुछ बच्चे उन्हीं के पास बैठे लड़ रहे होते थे, तो कोई उनकी गर्दन पर लटकने की कोशिश करता. ऐसा लगता था मानो इन अनाथ बच्चों को उनकी मां मिल गई हो, जिसके लिए ये बच्चे इस तरह से शतानी करके अपना प्यार दिखा रहे थे. वो भी एक सगी बच्चों की तरह ही उन बच्चों को प्यार करती थी और उनका ख्याल रखती थीं. वनीथा अपना काम पूरी लगन और ज़िम्मेदारी से कर रहीं थीं और उन बच्चों को ये आश्वाशन भी दिलाती थीं कि अब जो उनके सिर पर ये छत आई है, वो अब हमेशा रहेगी उनके ऊपर.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2017/01/587dfbfb19867e7fc0db9906_91efdf00-732c-4bb8-85a7-e1fb0560f67a.jpg)
जल्द ही समाज वनीथा पर विश्वास करने लगा और उनको पहचाने लगा. धीरे-धीरे सरकारी संस्थाएं और क्लब्स भी उनकी मदद करने के लिए सामने आने लगे. सबसे पहले वनीथा की मदद और सहयोग करने के लिए द लायंस क्लब सामने आया और उनकी संस्था के लिए Kinathukadavu में एक पर्मानेंट घर बनाने में सहयोग किया. 2002 में इस क्लब ने वनीथा के हाथों में 3000 स्क्वायर फीट के एरिया में इन बनी एक बिल्डिंग की चाभी वनीथा के हाथों में सौंपी. अब ये घर इन अनाथ और बेसहारा बच्चों का अपना आशियाना था. आगे आने वाले समय में धीरे-धीरे घर में ज़रूरत की सभी चीज़ें भी आ गई. जिस जगह पर घर बना था वो काफी बड़ी जगह थी, इसलिए बच्चों के पास खेलने के लिए प्लेग्राउंड. खाना खाने की जगह, योगा सेंटर तो था ही, साथ ही मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के लिए अलग से जगह थी.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2017/01/587dfbfb19867e7fc0db9906_aa1f3ef0-64cb-4394-9d60-5ebfba8135c6.jpg)
साल 2008 में वनीथा को एहसास हुआ कि हमारे देश में एक बच्चे को परिवार की बहुत ज़रूरत होती है जो उसकी देख-रेख करे, बजाये के उनके लिए इस तरह के घर या अनाथालय बनाए जायें. इसलिए उन्होंने स्थानीय प्राधिकारी वर्ग को इसकी सहमती के लिए मनाया और उसके बाद उनकी संस्था को मान्यता मिली कि वहां से कोई भी निःसंतान दम्पति या दूसरे लोग बच्चे को गोद ले सकते हैं. ये उपलब्धि शरानालायम के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई. और आज करीब 8 सालों के कठिन परिश्रम के बाद 70 से ज्यादा बेसहारा अनाथ और छोड़े गए बच्चों को एक अच्छा घर और प्यार करने वाले मां-बाप मिल चुके हैं और वो सभी बच्चे अपने नए घरों में बेहद खुश हैं. आज इन बच्चों की ज़िन्दगी पूरी तरह से बदल चुकी है. ये सब संभव हुआ है वनीथा जी के अथक प्रयासों और कभी हार ना मानने वाली प्रवृत्ति की बदौलत. ये उनकी ज़िन्दगी का सबसे खुशनुमा समय रहा है.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2017/01/587dfbfb19867e7fc0db9906_978f88d9-603d-4e56-83dc-2493d3730019.jpg)
वनीथा जी केवल बच्चों के उत्थान के लिए ही नहीं, बल्कि पिछले 10 सालों से HIV/AIDS के प्रति भी लोगों को जागरूक करने का काम कर रही हैं. इतना ही नहीं, वो 60 से ज्यादा एचआईवी ग्रसित बच्चों की देखभाल भी कर रहीं हैं. इसके अलावा वो लगभग 1000 वयस्कों के जिनको समाज ने एचआईवी पॉजिटिव होने के कारण छोड़ दिया है, के लिए भी सरकार द्वारा प्राप्त ज़मीन पर आशियाना बनाया है. वनीथा ने समाज को समाज से जोड़ने का काम किया है और अपने साथ लोगों को जोड़ने की बेजोड़ कोशिश की है. और काफ़ी हद तक वो अपने प्रयासों में सफल भी हुई हैं. NACO द्वारा वनीथा जी की संस्था को A ग्रेड का सर्टिफिकेट भी दिया गया है. इसके अलावा इनकी संस्था नशे के आदी लोगों के लिए भी काम करती है.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2017/01/587dfbfb19867e7fc0db9906_13d5e59e-52c5-4d53-99e4-bdf76b1958c2.jpg)
पिछले 16 सालों से इंसानियत के नाम पर लोगों की सेवा में तत्पर वनीथा ने कई बच्चों और बड़ों की ज़िन्दगी संवारी है. गौरतलब है कि उनकी देख-रेख में बड़ी हुई 10 से ज्यादा लड़कियों की शादी भी उन्होंने करवाई है और अब वो अपनी खुशियों भरी ज़िन्दगी में खुश है और अपना परिवार बना रही हैं. शरणालयम संस्था ने देश को कई इंजीनियर्स, नर्सेज़, पैरामेडिकल स्टाफ, शिक्षक, ट्रेनर्स, इंडस्ट्रियल हेल्पेर्स आदि दिए हैं.
वनीथा जी के लिए ये कहना गलत नहीं होगा कि वो इन बच्चों की सगी मां से भी बढ़कर हैं, जिसने इन बच्चों को एक सुनहरा भविष्य दिया है और देश के भविष्य को इन बच्चों के ज़रिये और मजबूत बनाया है. वो शरणालयम संस्था की मां हैं. वनीथा जी को ग़ज़बपोस्ट की सादर सम्मान. देश के हर व्यक्ति को वनीथा जी से प्रेरणा लेनी चाहिए.