साल में 2 महीने ऐसे होते हैं, जिसमें जीना दुश्वार हो जाता है. सुबह 10 बजे भी बाहर निकलो, तो यूं लगता है मानो नाक के बाल तक जल जाएंगे! ये दो महीने हैं, मई और जून.
अब गर्मियों और शादी को एक साथ Imagine करिए… दिमाग की बत्ती गुल हो जाती है. शादी की इच्छा रखने वाले देश के हर उस शख़्स से मेरा एक सवाल है…
अब कुछ लोग यहां कहेंगे कि ये उनकी मर्ज़ी. बिल्कुल उनकी मर्ज़ी है पर चिलचिलाती गर्मी वाले मई-जून का ही महीना क्यों? रिश्तेदारों से लेकर दोस्तों तक, केटरर्स से लेकर पूरी शादी में काम करने वालों तक सबको दिक्कत होती है. चाहे कितना भी बर्फ़ का पानी और रूह अफ़्ज़ा पी लो, पर आराम नहीं होता.
वैसे तो बारातियों को डांस करने से कोई रोक नहीं सकता और न ही महिलाओं को मेकअप करने से. पर दोनों ही गर्मी में परेशान होते हैं. बाराती पसीने से तरबतर होकर और महिलाएं मेकअप लेयर्स पसीने में धुलने की वजह से.
जो अमीर हैं, वो Centralized AC वाला तरीका अपनाकर शादी कर सकते हैं, पर ये उनके लिए आरामदायक होता है. उनकी शादी में काम करने वाले केटरर्स और वर्कर्स के लिए नहीं.
उसके बाद ज़्यादा गर्मी की वजह से लोगों का पारा भी जल्दी चढ़ने की संभावना होती है. फिर अगर पार्किंग में BP और RS की बोतलें खुलने लगीं, तब तो पूछिए ही मत. हालात चंद पलों में काबू से बाहर हो सकते हैं.