बहुत कम लोगों को अपना काम बेहद पसंद होता है, ज़्यादातर लोग सिर्फ़ सर्वाइवल के लिए नौकरी करते हैं. विद्या शेल्के तब से ड्राइविंग जानती थी जब वो सिर्फ़ एक टीनेजर थीं. स्टीयरिंग व्हील के पीछे बैठकर एक-एक पल वो एन्जॉय करती थीं.

मेरी पगार से घर का आधा ख़र्च चलता था, बच्चों पर ही ख़र्च होता था. नौकरी जाने का हम पर गहरा प्रभाव पड़ा पर मैं झुकने को तैयार नहीं थी.
-विद्या

विद्या ने पैंडमिक के हालात में नौकरी न होते हुए भी लोगों की मदद करने की ठानी. विद्या ने लॉकडाउन में अलग-अलग जगहों पर फंसे लोगों को सुरक्षित घर पहुंचाने का ज़िम्मा लिया. विद्या ने 28 मार्च से ये काम शुरू किया और अब तक 200 लोगों को सुरक्षित घर पहुंचा चुकी हैं.
अनिल सामान के ट्रांसपोर्ट का बिज़नेस करते हैं. वो बहुत मेहनत करते हैं, और इस शहर में अकेले परिवार का पोषण करना मुश्किल है और मैं किसी भी तरह उनकी मदद करना चाहती थी. पहले मैंने बतौर ऑटोरिक्शा ड्राइवर शुरुआत की. सुरक्षा के लिहाज़ से रिक्शा चलाना ज़रा रिस्की था. ऐसे मौक़े पर मुझे एक टैक्सी-सर्विस कंपनी के लिए ड्राइव करने का मौक़ा मिला. नौकरी बदलने के बाद मैं अपने परिवार का पोषण करने और बच्चों को अच्छी शिक्षा भी दे रही थी.
-विद्या
बहुत सोचने के बाद विद्या ने लॉकडाउन में फंसे लोगों की सहायता करने का निर्णय लिया.
ट्रेन और बस बंद हो गये थे और बहुत सारे लोग घरों तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे थे. मुझे हालात की गंभीरता का अंदाज़ा था और मैंने कुछ करने का निर्णय लिया. मेरे पति की कार थी जिसे में नौकरी में इस्तेमाल कर रही थी, मैंने गाड़ी उठाई, वीडियो मैसेज बनाया और सोशल मीडिया पर डाला.
-विद्या

वीडियो डालने के 10 मिनट के बाद ही विद्या के पास कई फ़ोन आने लगे. बुज़ुर्गों से लेकर गर्भवती महिलाओं से लेकर मज़दूरों तक के. विद्या ने महाराष्ट्र के कोने-कोने तक ड्राइव करके लोगों को घर पहुंचाया. विद्या के ज़्यादातर कस्टमर्स एमरजेंसी केस वाले थे इसलिये उन्हें परमिशन में भी दिक्कत नहीं हुई.
विद्या की कहानी हम सबके लिए एक उदाहरण है.