‘मैंने ज़िन्दगी को खुलकर जिया. मैंने ज़िन्दगी का भरपूर मज़ा लिया है.’
गुज़रे ज़माने की अभिनेत्री, डांसर, कोर्योग्राफ़र ज़ोहरा सहगल के इन लफ़्ज़ों में कितनी सकारात्मक ऊर्जा है. बड़ी-बड़ी आंखें, चुलबुलापन और मुस्कान ऐसी कि खड़ूस से खड़ूस इंसान भी मुस्कुरा दे.

कौन थी ज़ोहरा?
साहिबज़ादी ज़ोहरा बेग़म मुमताज़ उल्लाह खान उर्फ़ ज़ोहरा सहगल का जन्म 27 अप्रैल 1912 को एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. बचपन से ही विद्रोही स्वभाव की थीं ज़ोहरा. उन्हें पेड़ों पर चढ़ना, खेल-कूद, धमा-चौकड़ी में बेहद दिलचस्पी थी. 7 वर्ष की आयु में Glaucoma के कारण उनके बाईं आंख की रौशनी चली गई.

मां की इच्छा के अनुसार, उन्होंने लाहौर के Queen Mary College में दाखिला लिया, जहां सख़्त पर्दा किया जाता था. ज़ोहरा की ख़्वाहिशें पर फिर भी लगाम नहीं लगे. अपनी बहन की टूटी हुई शादी को देखकर ज़ोहरा ने विवाह न कर, कुछ कर दिखाने का निर्णय लिया.
ग्रैजुएशन के बाद वो जर्मनी गईं और वहां के Mary Wigman Ballet School में दाखिला लेने वाली पहली भारतीय बनीं.

उदय शंकर के साथ किया काम
यूरोप टूर के दौरान उन्होंने उदय शंकर साहब का शिव-पार्वती Ballet देखा, जिसने उन पर काफ़ी गहरा प्रभाव डाला. 1935 में उन्होंने उदय शंकर का ग्रुप Join किया. 5 साल बाद ज़ोहरा अल्मोड़ा स्थित, उदय शंकर इंडिया कल्चर सेंटर में शिक्षिका बन गईं.

पृथ्वी थियेटर में 14 साल तक किया काम
1945 में ज़ोहरा पृथ्वी थियेटर से जुड़ीं और 400 रुपए की मासिक पगार पर काम करने लगीं.
कई फ़िल्मों में किया काम
ज़ोहरा ने चेतन आनंद की ‘नीचा नगर’ में काम किया था. जिसे Cannes Film Festival में Palme d’Or का खिताब मिला था. इसके अलावा ‘धरती के लाल’,’अफ़सर’,’हम दिल दे चुके सनम’, ‘चीनी कम’, ‘वीर ज़ारा’ जैसी फ़िल्मों में भी अपने अभिनय का जौहर दिखाया था.

ज़ोहरा ने 60 साल से ज़्यादा तक पर्दे पर अभिनय किया. इतने लंबे समय तक पर्दे पर काम करने वाली वो एकमात्र एक्ट्रेस हैं.
10 जुलाई, 2014 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.
उनके विद्रोही स्वभाव और चुलबुलेपन की गवाही देते हैं उनके कहे ये लफ़्ज़-
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ज़ोहरा सहगल का ज़िन्दगी के प्रति रवैया कम लोगों में देखने को मिलता है.