‘आगरा’ हिंदुस्तान का वो शहर जहां कई वर्षों तक मुग़लों का राज रहा. मुग़ल शासकों ने कला, धर्म, संस्कृति और खानपान को लेकर दुनियाभर में अपना एक गहरा प्रभाव छोड़ा है. यही वजह है कि, आज भी आगरा में आपको वहां की सभ्यता और कला में मुग़लकाल की छाप दिखाई देगी. फिर चाहे वो मुग़ल स्टाइल में बनी कोई इमारत हो, या वहां का भोजन. 

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आगरा के ‘भगत हलवाई’ ने भी अतीत के इसी स्वाद को स्थानीय निवासियों और पर्यटकों के बीच बरकरार रखा है. आपको जानकर हैरानी होगी कि आगरा की इस प्रतिष्ठ दुकान की शुरूआत 1795 में हुई थी. लेख राज भगत ने यमुना तट अपनी छोटी सी मिठाई की दुकान खोली थी. इसके बाद उन्होंने दुकान पर पूरी-सब्ज़ी, मिठाई और शुद्ध दूध से बनी बर्फ़ी और रबड़ी बेचनी शुरू की.  

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कहते हैं कि उस समय दुकान पर मिठाई और भोजन पकाने के लिये चारकोल नहीं, बल्कि गाय के गोबर से बने कंडे और लकड़ी का प्रयोग किया जाता था. कंडे और लकड़ी पर भोजन बनाने से उसका स्वाद दोगुना हो जाता है. क़रीब 226 साल पहले खोली गई इस शॉप पर मिलने वाली मिठाईयों और पकवानों का स्वाद आज भी पहले जैसा है. ये आगरा की एकमात्र ऐसी दुकान है, जहां आपको पेठों के अलावा सब कुछ मिलेगा, क्योंकि पेठा बनाना कभी इनकी लिस्ट में नहीं था.  

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दशकों पहले ये जो मिठाई और पूरी-सब्ज़ी बेचते थे, वही क्वालिटी आज भी कायम है. यही वजह है कि आज ये सिर्फ़ आगरा की ही नहीं, बल्कि हिंदुस्तान की फ़ेवरेट शॉप में से एक है. शहरभर में ‘भगत हलवाई’ की कुल 4 दुकाने हैं, जहां से आप स्वादिष्ट मिठाई ख़रीद सकते हैं. कितनी अच्छी बात है न कि मुग़लकाल की ये दुकान आज भी अपनी विश्वनियता बनाये हुए है.  

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अगर इस बार आगरा जाना तो यहां मिठाई और पूरी-सब्ज़ी ख़रीद कर ज़रूर खाना. आगरा वासियों आपका तो यहां रोज़ आना-जाना लगा रहता होगा न?