भारत में साइंटिफ़िक उपचार के साथ-साथ दादी-नानी के ‘घरेलू नुस्खे’ भी बड़ी मात्रा अपनाए जाते हैं. देश में किसी भी छोटी मोटी शारीरिक तकलीफ़ का प्रारंभिक उपचार घरेलु नुस्खों से ही किया जाता है. सर्दी, खांसी, ज़ुकाम हो या फिर सिर दर्द, पेट दर्द, आंख दर्द या फिर कान दर्द इन सभी का शुरूआती इलाज़ भी घरेलू नुस्खों से ही किया जाता है. सेहत से जुड़ी हर छोटी-मोटी परेशानियों को हम घरेलू नुस्खों से ही ठीक कर लेते हैं. तकलीफ़ बढ़ने पर ही लोग डॉक्टर के पास जाते हैं. भारत में लगभग हर घर में ‘घरेलू नुस्खे’ अपनाए जाते हैं. इन घरेलू नुस्खों को डॉक्टर्स भी बेहद कारगर मानते हैं. 

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तो चलिए जानते हैं, ऐसे वो कौन कौन से ‘घरेलू उपाय’ हैं जिन्हें मेडिकल साइंस भी मानता है- 

1- दूध में एक चुटकी हल्दी से फ़ायदे

हल्दी को वेदों में ही नहीं, बल्कि मेडिकल साइंस में भी बेहद गुणकारी माना जाता है. अगर सबसे पुराने या फिर सबसे आम घरेलू उपचार का नाम लिया जायेगा, तो हल्दी वाले दूध का नाम सबसे ऊपर होगा. भारतीय माताएं आज भी अपने बच्चे को सोने से पहले हल्दी वाला दूध पिलाना नहीं भूलती हैं. गरमा-गरम दूध में एक चुटकी हल्दी का मेल शरीर की सारी थकान और दर्द कुछ ही देर में ग़ायब कर देता है. हल्दी को एंटीसेप्टिक की तरह भी इस्तेमाल किया जाता रहा है. किसी भी तरह की चोट या घाव पर हल्दी का मलहम लगाने से वो जल्दी ठीक हो जाता है.

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आख़िर क्यों है हल्दी इतनी गुणकारी?

हल्दी में करक्यूमिन (Curcumin) होता है, जो कि एक ज़बरदस्त एंटीऑक्सीडेंट है. यही वजह है कि ये इतने काम की चीज़ है. जब हम इसका सेवन करते हैं, तो ये शरीर के मुक्त पार्टिकल्स को ख़त्म करता है. इसके फलस्वरूप हमारा इम्युनिटी सिस्टम मज़बूत होता है. इतना ही नहीं दूध में मिलने के बाद तो ये और भी फायदेमंद बन जाता है.

2- अदरक और शहद के इस्तेमाल से कफ़ ग़ायब

अदरक भी हल्दी की तरह ही बेहद गुणकारी माना जाता है. अदरक से बनी 1 कप चाय सिरदर्द में अमृत का काम करती है. इसके अलावा सर्दी, खांसी की समस्याओं को भी काफी हद तक अदरक ठीक करने में सहायक होता है. इतना ही नहीं अदरक कफ़ का सफ़ाया करने के लिए भी मशहूर है. पानी में अदरक को उबालकर उसमें थोड़ा सा शहद डालकर पीने से कफ़ और गले से जुड़ी समस्याएं चुटकी में दूर हो जाती हैं. अदरक का सेवन शहद के साथ किये जाने से ये गले की जलन में भी काफी राहत देता है.

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मेडिकल साइंस में अदरक और शहद का महत्व

अदरक में एंटीऑक्सीडेंट मौजूद होता है, जो दर्द में आराम देता है. हड्डी रोग से जुड़ी बीमारियों जैसे गठिया और अर्थरायटिस के लिए शहद और अदरक का सेवन बेहद फायदेमंद माना जाता है. हालांकि, डायबिटीज से ग्रस्त लोगों को इसे लेते समय थोड़ा ध्यान देना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादा शहद की मात्रा उनके लिए नुकसानदायक हो सकती है. लिहाजा उन्हें इसके उपयोग में सावधानी बरतनी चाहिए.

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3- सरसों का तेल बनाता है अंदर से मज़बूत

भारत के ग्रामीण इलाक़ों में आज भी बड़ी मात्रा में सरसों के तेल का इस्तेमाल किया जाता है. ग्रामीण इलाक़ों में आज भी माताएं सरसों के तेल से ही अपने बच्चे की मालिश करती हैं. भारतीय घरों में सालों से सरसों के तेल से बच्चे की मालिश करने का रिवाज वर्षों से चलता आ रहा है. इससे बच्चों की मांसपेशियों और हड्डियों का विकास होता है और वो मज़बूत बनती हैं. सरसों के तेल की तासीर गर्म होती है. इससे शिशु की मालिश करने से उसके शरीर के छिद्र खुलते हैं और त्वचा कोमल बनी रहती है. यही नहींं, अच्छे से की गयी मालिश से बच्चे के शरीर का ब्लड सर्कुलेशन भी ठीक बना रहता है.

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आख़िर सरसों का तेल इतना असरदार क्यों है?

मेडिकल साइंस के नज़रिए से देखें तो सरसों के तेल में ओमेगा 3 और ओमेगा 6 फ़ैटी एसिड मौजूद होता है. इसके अलावा इसमें Vitamin E पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है. सरसों के तेल में मौजूद विटामिन जैसे थियामाइन, फोलेट व नियासिन शरीर के मेटाबाल्जिम को बढ़ाते हैं, जिससे वजन घटाने में मदद मिलती है. अस्थमा से पीड़ि‍त लोगों के लिए सरसों का तेल खासतौर पर फायदेमंद होता है. सरसों में पर्याप्त मात्रा में मैग्नीशियम पाया जाता है, जो अस्थमा के मरीज़ों के लिए ख़ासतौर पर फ़ायदेमंद है. सर्दी हो जाने पर भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

4- माइग्रेन और एंग्ज़ाइटी के लिए ‘लैवेंडर ऑइल’

भारत में वर्किंग प्रोफेशनल्स के बीच ‘माइग्रेन और एंग्ज़ाइटी’ आज एक कॉमन समस्या बन चुकी है. अगर आप भी काम के दौरान या फिर ऑफ़िस से थककर घर आते हैं और तेज़ सिरदर्द हो रहा हो, माइग्रेट का अटैक हो, बेचैनी या फिर चिंता महसूस हो रही हो तो ऐसे में लैवेंडर ऑइल Lavender Oil) को सूंघने से आपकी तकलीफ़ कुछ कम हो सकती है. स्टडीज में भी ये बात साबित हो चुकी है कि ‘लैवेंडर की चाय’ पीने से या फिर लैवेंडर ऑइल की कुछ बूंदों को रुमाल या टीशू पेपर पर डालकर सूंघने से ऐंग्जाइटी कम होती है. इसके अलावा दिमाग और शरीर भी रिलैक्स होता है और स्ट्रेस लेवल में भी कमी आती है.

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लैवेंडर ऑइल क्यों है इतना फ़ायदेमंद?  

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लैवेंडर के तेल में एंटी-एंग्जायटी और एंटी-डिप्रेसेन्ट होता है. ये तेल अरोमाथेरेपी माइग्रेन के सिरदर्द को कम करने में काफ़ी असरदार है. लैवेंडर का तेल कोलेजन को बढ़ाता है, जिससे आपका घाव जल्दी भर पाता है. ताजा घाव पर लैवेंडर का तेल लागने से भी आपको फायदा मिल सकता है. ये एंटी एक्ने की तरह काम करता है, जिससे मुंहासों की समस्या से राहत मिलती है. अगर गर्भावस्था में और सामान्य तौर से जी मचलने या उल्टी की समस्या होती है. ऐसे में अगर आप लैवेंडर के तेल की अरोमाथेरेपी लेते हैं तो इससे आपको काफी आराम मिलता है. अगर ‘माइग्रेन’ की दिक्कत बड़ी है तो ‘लैवेंडर’ दवा का सब्सिट्यूट नहीं हो सकता. ये सिर्फ़ दर्द को कुछ देर के लिए कम करने में मदद कर सकता है, ठीक करने में नहीं.

5- चिकन सूप और जुकाम का 36 का आंकड़ा 

‘चिकन सूप’ का नाम सुनते ही हर किसी के मुंह में पानी आ जाता है. ये एक ऐसा नुस्खा है जिसे चिकन पसंद करने वाले लोग खुले दिल से अपनाते हैं. साधारण कोल्ड या ज़ुकाम में ‘चिकन सूप’ काफ़ी लाभकारी माना जाता है. यदि आपको कोल्ड के लक्षण दिखाई दें, तो आपका एक बाउल गरमा गरम ‘चिकन सूप’ पी लें, सेहत में सुधार आएगा. इसके सेवन से गला और नाक दोनों ही खुल जाते हैं. इतना ही नहीं ये गले की जलन को भी ठीक करता है. गरम चिकन सूप बॉडी को फिर से हाइड्रेट करने में भी मदद करता है.

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मेडिकल साइंस क्या इसके बारे में कहता है? 

मेडिकल साइंस चिकन सूप बॉडी में न्युट्रोफिल्स (एक प्रकार का सफ़ेद सेल) के मूवमेंट को रोकता है. इससे कन्जैशन नहींं होता. ये जुकाम में सांस न ले पाने की दिक्कत को भी दूर करता है. हालांकि, ध्यान रहे कि अगर 36 घंटे बाद भी इन लक्षणों में कोई बदलाव नहींं होता, तो, डॉक्टर से परामर्श ज़रूर लें. ऐसा इसलिए क्योंकि ये कभी-कभी तुरंत लाभ तो देता है, लेकिन परमानेंट लाभ नहींं. 

इन नुस्खों को अपनाकर आप भी बन सकते हैं अपने घर के वैद्य.

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