Success Story of Godrej: गोदरेज नाम से हर भारतीय वाकिफ़ है. शायद ही कोई ऐसा घर हो, जहां आज भी गोदरेज के ताले या या फिर अलमारी न मिले. ऐसा होना लाज़मी भी है, क्योंकि 125 सालों से कंपनी लोगों को अपनी सेवाएं दे रही हैं. मगर क्या आप जानते हैं कि इतने लंबे अरसे से लोगों के भरोसे पर खरी उतरने वाली इस कंपनी की शुरुआत कैसे हुई थी? 

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Success Story of Godrej-

एक पारसी लड़का जो वकालत छोड़ भारत लौटा

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आर्देशिर गोदरेज (Ardeshir Godrej) लॉ स्कूल से पास होकर निकले थे. उन्हें 1894 में बॉम्बे सॉलिसिटर की एक फ़र्म ने एक केस लड़ने के लिए जंज़ीबार भेजा. ईस्ट अफ्रीका में वकालत कर रहे इस वकील को जल्द ही समझ आ गया है कि वकालत में उसे झूठ का सहारा लेना पड़ेगा. मगर वो इस बात के लिए तैयार नहीं थे. ऐसे में वो वकालत को अलविदा कहकर भारत वापस लौट आए. 

कर्ज़ लेकर शुरू किया बिज़नेस

आर्देशिर गोदरेज भारत तो आ गए, मगर उनके पास कोई काम नहीं था. शुरुआत में उन्होंने एक कैमिस्ट शॉप में असिस्टेंट का काम किया. इस दौरान उनकी दिलचस्पी सर्जिकल इंस्ट्रमेंट्स बनाने की ओर हुई. इसके लिए उन्होंने पारसी समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति मेरवानजी मुचेरजी कामा से 3 हज़ार रुपए उधार लिए. हालांकि, उनका ये बिज़नेस चल नहीं पाया.

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गोदरेज का पहला बिज़नेस फ़ेल होने का कारण था उनका देशप्रेम या यूं कहे कि देश के लिए उन्होंने ख़ुद के मुनाफ़े को लात मार दी. दरअसल, आर्देशिर को एक ब्रिटिश कंपनी के लिए सर्जरी के औजार बनाने थे. बनाते गोदरेज मगर बेचती ब्रिटिश कंपनी. मगर पेंच इस बात पर फंस गया कि इन औज़ारों पर ठप्पा किस देश का लगेगा. गोदरेज चाहते थे कि उन पर ‘मेड इन इंडिया’ लिखा जाए. मगर अंग्रेज़ इस बात को तैयार नहीं थे. ऐसे में आर्देशिर ने इस बिज़नेस को ही बंद कर दिया. 

अख़बार की एक ख़बर ने दिया नए बिज़नेस का आइडिया

आर्देशिर गोदरेज का पहला बिज़नेस भले ही ठप हो गया, मगर उन्होंने हार नहीं मानी. वो कुछ अलग और बेहतर करना चाहते थे और अख़बार की एक ख़बर ने उन्हें ये मौक़ा दे भी दिया. ये ख़बर बंबई में चोरी की घटनाओं से जुड़ी थी. बंबई के पुलिस कमिश्नर ने लोगों को अपने घर और दफ्तर की सुरक्षा बेहतर करने के लिए कहा था.

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बस इस ख़बर से आर्देशिर के दिमाग़ में ताले बनाने का आइडिया आ गया है. ऐसा नहीं है कि उस वक़्त ताले नहीं थे. मगर गोदरेज ने ऐसे लॉक्स बनाए, जो पहले की तुलना में ज़्यादा सुरक्षित थे. साथ ही, किसी भी चाबी से हर ताला नहीं खुल सकता था. उस वक़्त तालों को लेकर कोई गारंटी भी नहीं देता था. मगर आर्देशिर गोदरेज ने ये भी रिस्क लिया. उन्होंने एक बार फिर मेरवानजी मुचेरजी कामा से कर्ज़ लेकर बॉम्बे गैस वर्क्स के बगल में 215 वर्गफुट के गोदाम खोला और वहां ताले बनाने का काम शुरू कर दिया. इसके साथ ही साल 1897 में जन्म हुआ गोदरेज कंपनी का. (Success Story of Godrej)

लोगों के भरोसे का ब्रांड बन गया 

गोदरेज का तालों का बिज़नेस चल पड़ा. उसके बाद उन्होंने लोगों  के जेवरात और पैसे रखने के लिए मज़बूत लॉकर और अलमारियां बनाना शुरू कर दिया. ताकि, उनके लॉकर में लोग अपनी क़ीमती चीज़ें रख सकें. उन्होंने एक ऐसी अलमारियां बनाईं, जो लोहे की चादर को बिना काटे बनी थीं. तालों की तरह अलमारियों ने भी लोगों का दिल जीत लिया. रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1911 में दिल्ली दरबार के वक़्त जब किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी भारत आए, तो उन्होंने भी अपने क़ीमती सामान रखने के लिए गोदरेज लॉकर का इस्तेमाल किया था.

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एक के बाद एक नए बिज़नेस की लाइन लगा दी

ताले और अलमारियों के बाद गोदरेज ने साबुन बनाया. ये पहला वनस्पति तेल वाला साबुन था. इसके पहले जानवरों के वसा से साबुन तैयार होता था. रवींद्रनाथ टैगोर तक ने उनके साबुन का प्रचार किया. 

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आज़ादी का मौक़ा भी गोदरेज के लिए व्यापास के नए अवसर लाया. 1951 में आज़ाद भारत में पहले लोकसभा चुनाव के लिए 17 लाख बैलेट बॉक्स बनाए. 

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1952 में स्वतंत्रता दिवस पर सिंथॉल साबुन का लॉन्च किया. आगे 1958 में रेफ्रिजरेटर बनाने वाली पहली भारतीय कंपनी बनी.1974 में लिक्विड हेयर कलर प्रोडक्ट्स लाए. यहां तक उन्होंने 1994 में गुड नाइट ब्रांड बनाने वाली कंपनी ट्रांस्लेक्टा खरीदी और फिर 2008 में चंद्रयान-1 के लिए लॉन्च व्हीकल और ल्यूनर ऑर्बिटर बनाए. आज गोदरेज सीसीटीवी से लेकर कंस्ट्रक्शन और डेरी प्रोडेक्ट तक का बिज़नेस कर रही है. भारत समेत दुनियाभर के मुल्क़ों में उसका व्यापार फैला हुआ है. गोदरेज के प्रोडक्ट्स दुनिया के 50 से ज्यादा देशों में बिक रहे हैं. (Success Story of Godrej)