मरने वाले इंसान की आख़िरी इच्छा को पूरा करना पुण्य का काम माना जाता है. भले ही वो इंसान कोई चोर-डकैत ही क्यों न हो. लेकिन, क्या जेल में किसी मुज़रिम को फांसी देने से पहले उसकी अंतिम इच्छा पूछी जाती है? ऐसा सवाल मन में आ सकता है, क्योंकि सभी जानते हैं कि फ़िल्मों में चीज़ों को किस तरह बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है और फ़िल्मी दुनिया असल दुनिया से बिल्कुल अलग होती है. इस लेख में हम जानेंगे कि मौत के दरवाज़े पर खड़े अपराधी से क्या सच में उसकी अंतिम ख़्वाहिश पूछी जाती है और इस विषय पर जेल का मैनुअल क्या कहता है.  

14 दिन का वक़्त  

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बीबीसी के अनुसार, मौत की सज़ा देने से पहले मुज़रिम को 14 दिन का वक़्त दिया जाता है ताकि वो मानसिक रूप से ख़ुद को ठीक कर सके और मरने से पहले अपने परिवार वालों से ठीक से मिल सके. वहीं, ज़रूरत पड़ने पर मुज़रिम की काउंसलिंग भी की जाती है क्योंकि अस्वस्थ अवस्था में फांसी नहीं दी जाती है.  

क्या सही में मुज़रिम से पूछी जाती है आख़िरी इच्छा? 

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सबसे पहली बात तो ये है कि मुज़रिम की आख़िरी इच्छा इंसानियत के नाम पर उससे पूछी जाती है और इसमें कुछ सीमित विकल्प उसके पास होते हैं. क्योंकि, इस पर अगर कोई कड़ा प्रावधान होता है कि पूछा ही जाना है, भले अपराधी कुछ भी अपनी ख़्वाहिश ज़ाहिर कर दे, तो मुश्किल खड़ी हो सकती है. 

अगर अपराधी फ़ांसी न देने की इच्छा ज़ाहिर कर दे, तो फिर क्या होगा. इसलिए, इंसानियत के नाते उससे पूछ लिया जाता है कि क्या आप अंतिम वक़्त में कुछ ख़ास खाना पसंद करेंगे या आप पूजा पाठ वगैरह करना चाहते हैं.  

वसीयत तैयार करने की इजाज़त  

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अंतिम वक़्त में मुज़रिम अगर अपनी वसीयत बनाना या लिखना चाहता है, तो उसकी भी इजाज़त दी जाती है. वहीं, वो इस विल में अपनी अंतिम इच्छा भी लिख सकता है. अगर उसकी अंतिम इच्छा है कि फांसी के वक़्त मौलवी, पंडित या पादरी वहां मौजूद रहें, तो उसकी उस इच्छा को भी जेल सुप्रिटेंडेंट पूरी करता है.

क्या कहता है जेल मैनुअल    

दिल्ली की तिहाड़ जेल में लॉ ऑफ़िसर रह चुके सुनिल गुप्ता ने मीडिया से बात करते हुए इस बात को साफ़ किया था कि क़ैदी की आख़िरी इच्छा पूछने जैसी कोई चीज़ नहीं होती है यानी इसका कोई प्रावधान नहीं है. हां ये ज़रूर है कि अगर किसी मुज़रिम के पास कोई चल या अचल संपत्ती है, तो वो मैजिस्ट्रेट के सामने वसीयत बनवा सकता है. 

क्या-क्या जांच फांसी से पहले की जाती है? 

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मुज़रिम को फांसी देने की पूरी तैयारी सुपरिटेंडेंट करता है. वो सभी ज़रूरी जांच करता है, जिसमें फांसी का तख़्ता, नक़ाब, रस्सी व अन्य चीज़ें शामिल हैं. वो ये भी देखता है कि लीवर में तेल डला है कि नहीं. वहीं, फांसी से एक दिन पहले शाम के वक़्त अंतिम जांच की जाती है, जिसमें रस्सी पर रेत के बोरे जो क़ैदी के वज़न से डेढ़ गुणा ज़्यादा के होते हैं उन्हें लटकाकर देखा जाता है. इसके अलावा, लीवर खींचने वाला जल्लाद दो दिन पहले जेल में आ जाता है और वहीं रहता है.