जिस तरह हैदराबाद की बिरयानी और लखनऊ के टुंडे कबाब उनकी पहचान बन गए हैं. उसी तरह उत्तराखंड की बाल मिठाई भी उसकी पहचान बन गई है. चॉकलेट के जैसी दिखाई देने वाली बाल मिठाई खाकर लोग इसका स्वाद वर्षों नहीं भूल पाते.
बाल मिठाई को उत्तराखंड की चॉकलेट भी कहा जाता है. एक ऐसी चॉकलेट जिसे कोको बीन्स से नहीं, बल्कि खोए से बनाया जाता है. बाल मिठाई की ख़ासियत ये है कि ये खाने में कुरकुरी लगती है. इस मिठाई का स्वाद इतना लाजवाब है कि पर्यटक और यहां के लोगों की ये फ़ेवरेट मिठाई बन गई है. आज हम आपको उत्तराखंड के कुमाऊ क्षेत्र की पहचान बन चुकी बाल मिठाई का इतिहास बताएंगे.
इतिहासकारों का कहना है कि ये मिठाई 7वीं-8वीं सदी में नेपाल से उत्तराखंड आई थी. वहां से ये अल्मोड़ा कैसे पहुंची इसके साक्ष्य तो नहीं मिले, लेकिन अल्मोड़ा की ये पसंदीदा मिठाई कैसे बन गई इसका जबाब हमारे पास ज़रूर है.
बाल मिठाई को 20वीं सदी में प्रसिद्ध करने का श्रेय जाता है, लाला जोगाराम को. अल्मोड़ा के लाल बाज़ार में उनकी दुकान हुआ करती थी. उनकी दुकान में ही ये स्पेशल मिठाई बनाई जाती थी. अब जब मिठाई स्पेशल है, तो इसे बनाने की विधी स्पेशल ही होगी.
जोगाराम जी बाल मिठाई बनाने के लिए डेयरी प्रोडक्ट्स के लिए मशहूर एक गांव से स्पेशल क्रीम वाला दूध मंगवाते थे. इस गांव का नाम था फालसीमा. यहां से आए दूध से वो खोया बनाते थे. इससे वो पहले भूरे रंग की बर्फ़ी तैयार करते थे और फिर बाद में उस पर चाशनी में भीगे हुए खसखस के दाने लपेट देते थे.
इस तरह जो बाल मिठाई बनकर तैयार होती थी, उसे खाते ही लोग उसका गुणगान करने लगते थे. कहते हैं कि उस दौर में अंग्रेज़ भी इस मिठाई के शौक़ीन थे. वो इसे अपने साथ इंग्लैंड भी लेकर जाते थे. आज बाल मिठाई अमेरिका, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी बड़े ही चाव से खाई जाती है.
जिन लोगों ने इसका स्वाद अभी तक नहीं चखा, उन्हें इसे एक बार ज़रूर ट्राई करना चाहिए. हम शर्तिया कहते हैं कि आप भी इस मिठाई के फ़ैन बन जाएंगे.
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