भारत (India) में संगीत के क्षेत्र में एक से बढ़कर एक फ़नकार हुये हैं, जिन्होंने देश-विदेश में भारत का नाम रौशन किया है, लेकिन संगीत का जो जादू तानसेन (Tansen) की गायकी में था, उस तरह का संगीत आज तक न कोई गा पाया न ही कोई गा पायेगा. संगीत सुनने से शारीरिक और मानसिक बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं. मधुर संगीत सुनने से इंसान तनाव मुक्त होता है और तरोताजा महसूस करता है. मधुर संगीत सुनने से मन को बेहद शांति मिलती है और 16वीं में तानसेन इसी मधुर संगीत के पर्याय बन चुके थे.
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तानसेन (Tansen) के बारे में कहा जाता है कि जब वो राग छेड़ते थे तो मौसम अपन रंग बदल लेता था. आसमान में बादल आने लगते और पानी बरसने लगता था. तानसेन जब अपना ‘राग दीपक’ गाते थे तो दीप अपने आप जल जाते थे. यही कारण है कि तानसेन को ‘संगीत सम्राट’ भी कहा जाता है. उन्होंने शास्त्रीय संगीत को आगे बढ़ाने में अमूल्य योगदान दिया है. वो गायक ही नहीं, बल्कि उच्च कोटि के वादक भी थे. इसके अलावा तानसेन ने कई रागों का निर्माण भी किया था. लेकिन बेहद कम लोग जानते होंगे कि संगीत सम्राट तानसेन बचपन में बोल नहीं पाते थे.
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तानसेन (Tansen) की गायकी का राज था इमली का पेड़
तानसेन (Tansen) का जन्म सन 1493 से सन 1500 के बीच ग्वालियर में हुआ था. उनका असली नाम रामतनु पांडे था. उन्हें मियां तानसेन के नाम से भी जाना जाता है. वो बचपन में बोल नहीं पाते थे. इसे लेकर उनके माता-पिता बेहद परेशान रहते थे. इस दौरान किसी ने उन्हें बच्चे को इमली के पत्ते खिलाने की सलाह दी. इमली के पत्ते खाने के कुछ समय बाद ही तानसेन बोलने लगे. इसके बाद उनका रुझान संगीत की तरफ़ बढ़ने लगा. वो घर पर ही संगीत का रियाज़ करने लगे. रियाज़ से पहले और बाद वो हर रोज़ इमली के पत्ते खाते थे.
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तानसेन (Tansen) की गायकी का राज इमली का पेड़ ही था. वो संगीत का इतना रियाज़ करते थे कि उनकी इस साधना को देख तत्कालीन बादशाह अकबर ने उन्हें अपने ‘नौरत्नों’ में शामिल कर लिया था. बादशाह अकबर के ‘नौरत्नों’ में शामिल होना उस दौर में बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी. इसके बाद तानसेन संगीत की दुनिया के सम्राट बन गये. तानसेन के आध्यात्मिक गुरु मोहम्मद गौस थे.
Tombs of Mohammad Ghaus and Tansen, Gwalior
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तानसेन (Tansen) का निधन 26 अप्रैल 1589 को आगरा में हुआ था. उनकी अंतिम अच्छा थी कि जब उनका निधन हो तो उन्हें उनके आध्यात्मिक गुरु मोहम्मद गौस के मकबरे के पास ही दफ़नाया जाये. मरने के बाद उन्हें वहीं दफनाया गया. कुछ सालों बाद जिस जगह पर तानसेन को दफ़नाया गया था उसी जगह पर एक इमली का पेड़ उग आया. धीरे-धीरे ये मान्यता बन गई कि जो भी इस पेड़ की पत्तियां खाएगा उसका गला सुरीला हो जाएगा.
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आज संगीत की साधना करने वाला हर इंसान यहां आता है और इस इमली के पेड़ की पत्तियों को अपने साथ ले जाता है. क़रीब 600 साल पुराना ये पेड़ दुनिया भर के संगीतकारों के लिए किसी धरोहर से कम नहीं है. ऐसी मान्यता है कि इस पेड की पत्तियों में तानसेन की रूह बसती है जो भी इस पेड़ की पत्तियां खाएगा उसकी आवाज़ सुरीली हो जाएगी. संगीत की समझ रखने वाले मानते हैं कि जो इस पेड़ की पत्तियां खाता है उसे तानसेन का आशीर्वाद मिलता है.
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आख़िर इमली के पत्तों में ऐसी कौन सी बात है, जिसे खाकर तानसेन ‘संगीत सम्राट’ बन गए थे?
इमली में कई प्रकार के औषधीय गुण होते हैं, इससे हम सभी वाक़िफ़ हैं. लेकिन इमली की पत्तियां भी बेकार नहीं हैं. इमली की पत्तियों में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं. कई ऐसे घरेलू नुस्खे हैं जिसमें इमली की पत्तियों का इस्तेमाल कर सेहत की समस्याओं में राहत मिलती है. जब इमली की पत्तियों का रस निकाला जाता है और घावों पर लगाया जाता है, तो वे घाव को तेज़ी से ठीक करते हैं. इसके पत्तों का रस किसी भी अन्य संक्रमण और परजीवी विकास को रोकता है. इसके अलावा ये नई कोशिकाओं का नर्मिाण भी तेज़ी से करता है.
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इमली के पत्ते के फ़ायदे (Benefits of Tamarind Leaves)
1- इमली की पत्तियां ‘विटामिन सी’ का भंडार होते हैं, जो कि किसी भी सूक्ष्मजीव संक्रमण से शरीर की रक्षा करता है जिससे शरीर स्वस्थ रहता है.
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इमली के पत्ते के नुकसान (Side Effects of Tamarind Leaves)
1- इमली के पत्तों में टैनिन मौजूद होता है. ऐसे में अधिक मात्रा में इसके सेवन से मतली, पेट में जलन और लिवर संबंधी समस्या हो सकती है.
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कब और कितना खाएं इमली के पत्ते
इमली के पत्तों का इस्तेमाल सुबह, दोपहर या रात में कभी भी कर सकते हैं. लेकिन, इसका सेवन सीमित मात्रा में ही करना चाहिए. इमली के पत्तों का सेवन करने से पहले एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर लें.
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अगर आप भी तानसेन जितना सुरीला गाना चाहते हैं तो इमली के पत्तों का इस्तेमाल करें.
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