राजा-महाराजाओं का शहर जयपुर भारत की अथाह संस्कृति को अपने अंदर संजोए है. इस शहर ने कई ऐतिहासिक शिल्पकला के नमूने राजस्थान को दिए हैं. यही वजह है कि विभिन्न राजघरानों ने इन शिल्पकारों को हमेशा प्रोत्साहित किया और उनके द्वारा बनाए गए बेशकीमती कला के नमूनों को देश-विदेश में प्रचलित किया.

ऐसी ही एक कला है जयपुर के ‘नीले मिट्टी के बर्तन’. कभी हाथ से बने ये सुंदर-सुंदर बर्तन जयपुर की शान हुआ करते थे, लेकिन नकली माल और चीनी क्रॉकरी के सामने इनकी चमक फीकी पड़ती जा रही है. आइए ख़त्म होने के कगार पर पहुंच चुकी जयपुर की इस ऑर्ट फ़ॉर्म के बारे में जानते हैं.

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ये कला जयपुर वासियों व पर्यटकों के बीच ‘Blue Pottery’ के नाम से फ़ेमस है. मिट्टी से बने ये नीले बर्तन बहुत ही असाधारण और भव्य हैं. इन पर हाथ से नक्काशी की जाती है. इससे खिलौने, बर्तन, गुलदस्ते, गमले, टाइल्स आदि भी बनाए जाते हैं. इसमें जो नीला रंग इस्तेमाल किया जाता है उसे बनाने की एक ख़ास प्रकिया है. यही कारण है कि ये रंग जल्दी फीका नहीं पड़ता. 

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14वीं सदी में ये कला भारत आई थी और 17वीं सदी में ये कला जयपुर में प्रसिद्ध हो गई थी. नीले रंग के ये बर्तन शाही घरानों के रसोई की शान बढ़ाया करते थे. नीले चटख रंग वाले ये बर्तन कभी लग्ज़री हुआ करते थे. राजा-महाराजा इन्हीं बर्तनों को खाना खाने के लिए इस्तेमाल करते थे. लेकिन तुर्की-फ़ारसी मूल की ये पारंपरिक शिल्प कला अब विलुप्त होने की कगार पर है. जयपुर के शिल्पकार गुर्बत में ज़िदगी काट रहे हैं.

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तकनीक के विस्तार और चीन से आए सस्ते बर्तनों ने इन लोगों के रोज़गार को लगभग ख़त्म कर दिया है. ये लोग अब अपने बर्तन सस्ते में बेचने लगे हैं. जयपुर की इस कला को देखने और अपने घर ले जाने के लिए एक समय में दूर-दूर से लोग आते थे. इनमें राजस्थानी संस्कृति और इतिहास की झलक होती थी. मगर आज इनकी मार्केट विदेशों से आए सस्ते बर्तनों ने तोड़ कर रख दी है.

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इसके कारीगरों ने कई बार राज्य सरकार से इसे बचाने की गुहार भी लगाई, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हो सका है. इसके कारीगर धीरे-धीरे अपने इस पारंपरिक काम को छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं. 

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जयपुर के नीले बर्तनों की इस कला को हमें बचाने के हर संभव प्रयास करने चाहिए. क्योंकि ये कला इस बात की ग़वाह है कि कैसे दो-देशों के बीच पुराने ज़माने में कला और संस्कृतियों का आदान-प्रदान होता था.