जिन लोगों को चिकन खाना पसंद हैं, उनसे अगर उनकी फ़ेवरेट डिश का नाम पूछा जाए तो झट से बटर चिकन का नाम लेंगे. बटर चिकन लवर्स के सामने इसका नाम लेते ही उनके मुंह में पानी आ जाता है. इस लज़ीज डिश को लेकर बेतहाशा प्यार का आप उनकी आंखों में आई चमक से साफ़ अंदाज़ा लगा सकते हैं. लेकिन जब उनसे पूछा जाए कि क्या वो इसका इतिहास जानते हैं, तो शायद ही वो इसका जवाब दे पाएं.
ऐसे ही बटर चिकन लवर्स के लिए आज हम इसका इतिहास लेकर आएं हैं. इसके बारे में जानकर वो शर्तिया इससे दोगुना प्यार करने लगेंगे.
बटर चिकन का इतिहास जानने के लिए आपको आज़ादी से पहले के वक़्त में जाना होगा. बात उन दिनों की है जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा नहीं हुआ था. तब पाकिस्तान के पेशावर में एक ढाबा हुआ करता था, जिसका नाम था मुखिये का ढाबा. इसके मालिक थे मोखा सिंह जहां का तंदूरी चिकन बहुत ही फ़ेमस था.
तबियत ख़राब हो जाने के चलते उन्होंने अपना ढाबा अपने ही एक कर्मचारी कुंदल लाल गुजराल को बेच दिया था. गुजराल ने उसका नाम बदलकर मोती महल रख दिया. शुरुआत में मोती महल तंदूरी चिकन के लिए ही फ़ेमस था. लेकिन वो तंदूर पर सारा दिन चिकन के रखे रहने और उसके सूख जाने से परेशान थे. क्योंकि इस तरह चिकन को कोई ख़रीदता नहीं था.
चिकन के इन बचे हुए पीस को फिर बेचने के लिए उन्होंने एक तरकीब लगाई. गुजराल ने मक्खन, टमाटर और कई मसाले मिलाकर एक ग्रेवी तैयार की. इसमें चिकन के पीस डाले और उन्हें लोगों को बेचने लगे. लोगों को इसका स्वाद बहुत पसंद आया और इस तरह बटर चिकन नाम की एक नई डिश की खोज हो गई.
बंटवारे के बाद कुंदन लाल गुजराल दिल्ली आ गए. यहां पर उन्होंने दरियागंज में मोती महल का पहला रेस्टोरेंट खोला. आज मोती महल पूरी दुनिया में अपने टेस्टी बटर चिकन के लिए जाना जाता है. इसकी विदेशों में भी कई शाखाएं हैं.
अब तो बटर चिकन हर नॉन वेज लवर्स की पहली पसंद बन गया है. घर से लेकर रेस्टोरेंट में लोग इसे बड़े ही चाव से खाते हैं.
बटर चिकन का ये इतिहास हैं बड़ा मज़ेदार. इसी बात पर आप इसे अपने दोस्तों से भी शेयर कर दो.
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