चिकन से बनने वाली डिश में तंदूरी चिकन नॉन-वेज लवर्स की पहली पसंद होता है. इसे पारंपरिक तौर पर तंदूर में पकाया जाता है, जो इसको और भी स्वादिष्ट बना देता है. इसका मसालेदार और क्रिस्पी टेस्ट हर चिकन लवर को पसंद आता है. हम भारतीय ही नहीं, बल्कि विदेशी भी तंदूरी चिकन बड़े ही चाव से खाते हैं.

तंदूरी चिकन लवर्स के लिए आज हम लेकर आए हैं इसका इतिहास. इसे जानने के बाद उन्हें इस डिश को खाने का एक और बहाना मिल जाएगा.  

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पहले आपको तंदूर कैसे हमारे यहां आया उसका इतिहास बता देते हैं. तंदूर का इस्तेमाल हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो दोनों सभ्यताओं में किया जाता था. लेकिन तंदूरी चिकन की खोज 19वीं सदी में जाकर हुई थी. इसका इतिहास अविभाजित भारत से जुड़ा है, आज़ादी से पहले के भारत से तंदूरी चिकन का गहरा नता है. 

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पाकिस्तान के पेशावर में एक ढाबा हुआ करता था, जिसका नाम था मोती महल. इसके ओनर कुंदन लाल गुजराल थे. वो अपने फ़ूड के साथ कुछ न कुछ एक्सपेरिमेंट करते रहते थे. ऐसे ही एक दिन उन्होंने चिकन पर कुछ मसाले लगाकर उसे तंदूर में छोड़ दिया. इस तरह उन्होंने चिकन तंदूरी की खोज कर डाली.

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इसका स्वाद इतना मज़ेदार था कि आज़ादी के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जब इसे चखा, तो वो भी इसके दीवाने हो गए. नेहरू जी ने इसका स्वाद कुंदल लाल के दिल्ली के रेस्टोरेंट मोती महल में चखा था. पार्टिशियन के बाद कुंदन लाल दिल्ली चले आए थे.

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नेहरू जी को इसका स्वाद इतना पसंद आया कि, भारत आने वाले हर अंतराष्ट्रीय मेहमान को इसे बनवा कर खिलाते थे. भारत आने के बाद जिन मशहूर हस्तियों ने इसका स्वाद चखा था उनमें Richard Nixon, John F. Kennedy, Nikolai Bulganin, Nikita Khrushchev, तत्कालीन नेपाल के राजा का नाम भी शामिल है. इसके बाद इसका स्वाद धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल गया. अब तो विदेशों में भी चिकन तंदूरी खाया जाने लगा है.

भारत में तंदूरी पाक कला पंजाब प्रांत से जुड़ी हुई है. आज़ादी के बाद देश के अधिकतर हिस्सों में पंजाबी बस गए और उनके साथ ये कला भी पूरे भारत में फैल गई. कुछ लोगों का मानना है कि तंदूरी चिकन का इतिहास मुग़लों से भी जुड़ा है.

लज़ीज़ मसालेदार चिकन तंदूरी का इतिहास आपको तो पता चल गया, अब इसे अपने दोस्तों से भी शेयर कर दो.

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