Chopsticks Rules In Japan: जापान में “हाशी” के नाम से मशहूर चॉपस्टिक, क़रीब 25 सेंटीमीटर लंबे लकड़ी के दो साधारण से टुकड़े होते हैं, लेकिन उनकी वजह से लोगों में न सिर्फ़ बहुत सारी ग़लतफ़हमी, बल्कि नाराज़गी भी पैदा हो जाती है. माना जाता है कि चॉपस्टिक का पहले-पहल इस्तेमाल चीन में चिया राजवंश के काल में हुआ था. 470 साल की अवधि में, 1600 ईसा पूर्व तक. उसके बाद धीरे-धीरे पूरे पूर्वी एशिया में उनका उपयोग होने लगा.

Chopsticks Rules In Japan

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विद्वानों का मत है कि, दुनिया तीन “सांस्कृतिक वृत्तों” मे बंटी है, हाथ और उंगुलियों से खाने वाली, कांटे-छुरी की मदद से खाने वाली या चॉपस्टिक से खाने वाली.

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जापान में चॉपस्टिक (Chopsticks Rules In Japan) की लोकप्रियता बढ़ने लगी तो कारीगर, लकड़ी या बांस के उन जुड़वां टुकड़ों को एक कला का रूप देने लगे. लाख (लाह) में ढले एक से एक शानदार डिज़ाइन, धातु की बनीं या सीपियों से सजीं चॉपस्टिकें छा गईं. इन सजावटों के साथ ही साथ आए कायदे भी. उंगुलियों में उन्हें कैसे थामना चाहिए, उनका इस्तेमाल किस चीज़ में होना चाहिए और सबसे महत्त्वपूर्ण- खाने की मेज़ पर आख़िर किस चीज़ में उनका कभी भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. जापानी समाज में, आहार का समय बड़ी अहमियत रखता है.

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आहार का ऐतिहासिक सम्मान

जापान के सरकारी टेलीविजन एनएचके में “बेंटो एक्सपो” नाम के कुकिंग कार्यक्रम के होस्ट और “अल्टीमेट बेन्टो” किताब के सह-लेखक मार्क मैट्सुमोटो कहते हैं, 

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जापान ऐतिहासिक रूप से एक खेतिहर समाज रहा है, लिहाज़ा ज़्यादतर लोग, जीविका के लिए चावल और सब्ज़ियां ही उगाते रहे हैं.

वो कहते हैं,

खाद्य उत्पादक के तौर पर जापानी लोगों के पूर्वजों का खाने को लेकर एक सम्मान था. जापान के पारिवारिक ढांचों में कन्फ़युशियस के आदर्शों का बोलबाला है, इसीलिए पूर्वजों के प्रति सम्मान का एक मज़बूत भाव भी है. आज भी उन परिवारों के लिए ये असामान्य नहीं है, जिनके यहां कई पीढ़ियां एक साथ रहती हैं. ऐसे घरों मे लोग अपनी रोज़ाना की ज़िंदगियां अलग अलग बिताएंगे, लेकिन खाने के समय सारा परिवार एक साथ एक जगह आ जाएगा.
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माटसुमोटो कहते हैं कि,

ये एक पश्चिमी सोच है कि छुरी, कांटा और चम्मच, खाने के बेहतर औज़ार हैं. अगर आप उपयोगिता की दलील देते हैं, तो हाथ से खाने के सिवा आपके पास कोई और आसान तरीक़ा नहीं है, और दुनिया के कई देशों की संस्कृतियों में लोग ऐसे ही खाते हैं. बर्तन हमारे हाथ और उंगुलियों के विस्तार की तरह सामने आए थे, तो हम उन्हें गंदा नहीं कर सकते थे.
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उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया,

अपनी उंगुलियों के एक विस्तार की तरह, मैं चॉपस्टिक्स की बजाय एक और आसान औज़ार को इस्तेमाल करने के बारे में सोच सकता हूं. ज़ाहिर है, किसी बर्तन की तरह, चॉपस्टिक की अपनी ख़ामियां भी हैं जैसे कि सूप के मामले में, लेकिन जापान में जिस किस्म का खाना खाया जाता है, मैं नहीं समझता कि कांटे या चम्मच कभी चॉपस्टिक की जगह ले पाएंगे. दरअसल, मैं देखता हूं कि किचन में रसोइये, चिमटियों या संडासियों के विकल्प के रूप में चॉपस्टिकों का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं क्योंकि वे ज़्यादा सुविधाजनक होती हैं.

-मार्क मैट्सुमोटो

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चॉपस्टिक उपयोग से जुड़ा आचरण

माटसुमोटो कहते हैं कि पश्चिम में जैसे खाने की टेबल पर चटखारे लेकर खाना, अशिष्ट माना जाता है, तो उसी तरह चॉपस्टिक के साथ खाने के लिए सही आचरण की ज़रूरत होती है. लेकिन ऐसे आचरण बहुत सारे, बहुत व्यापक और किसी नौसिखिए के लिए बहुत भारी हैं. “आगेबाशी” यानी अपनी चॉपस्टिक को मुंह की ऊंचाई से ऊपर ले जाना, ख़राब तरीक़ा माना जाता है. “उकेबाशी” यानी चॉपस्टिक को थामे हुए, दूसरी बार खाना लेने के लिए कटोरे को आगे बढ़ाने को भी अशिष्ट माना जाता है, “ओतोशीबाशी” का मतलब है चॉपस्टिक गिरा देना और “ओशिकोमिबाशी” का आशय सीधे बर्तन से खाना गटक लेने से है.

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इस व्यापक सूची में बहुत सी और ग़लतियां भी शामिल हैं. जैसे “काकीबाशी” यानी व्यंजन को कोने से मुंह से लगाना और चॉपस्टिक से अंदर ठेलना. या फिर “कामीबाशी” यानी चॉपस्टिक को चबा डालना. एक ख़राब आदत में शुमार है “कोसुरीबाशी” यानी किरचियों को हटाने के लिए डिस्पोज़ेबल चॉपस्टिक को रगड़ना. इसे तुच्छता का प्रतीक माना जाता है क्योंकि इससे पता चलता है कि मेज़बान ने घटिया क्वालिटी के बर्तनों में खाना परोसा है.

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चॉपस्टिक के इस्तेमाल से जुड़े कम से कम 40 ऐसे व्यवहार हैं जिनसे परहेज़ किया जाना चाहिए, लेकिन दो तो ऐसे हैं जो ख़ासतौर पर नाराज़गी मोल लेने वाले हैं. “तातेबाशी” चावल के कटोरो में चॉपस्टिक को सीधे खड़ा कर देने की ग़लती है. ये तरीक़ा वो है, जिसमें व्यंजन को एक बौद्ध जनाज़े में चढ़ावे की तरह पेश किया जाता है. उतना ही वर्जित है “आवसेबाशी” यानी खाने को चॉपस्टिक के एक जोड़े से अन्य व्यक्ति की इस्तेमाल की जा रही चॉपस्टिक के हवाले करना. ये रिवायत, अंतिम संस्कार का हिस्सा है, जिसमें परिवार के सदस्य हड्डी उठाते हैं और मृतक के प्रति बतौर सम्मान एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को बढ़ाते जाते हैं.

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टीवी कुकिंग प्रोग्राम और अल्टीमेंट बेन्टो किताब में माटसुमोटो के साथ सहयोग करने वाली शेफ़ और क्युटियोबेंटो ब्लॉग की लेखिका माकी ओगावा कहती हैं, “खाना इस तरह खाएं या उठाएं कि दूसरे को बुरा न लगे, ये बहुत ज़रूरी है.”

कुदरत की नेमत है खाना

वो कहती हैं,

मेरे माता-पिता ने मुझे बचपन में चॉपस्टिक व्यवहार सिखाए थे और मैंने वे कायदे अपने बच्चों को सिखा दिए

-ओगावा

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वो कहती हैं कि “जापानी लोग कुदरत की इज़्ज़त करते हैं और उसकी नेमतों के एहसानमंद हैं.” वो बताती हैं कि खाना शुरू करने से पहले “इताडाकीमासु” यानी “मैंने विनम्रता से ये ग्रहण किया” कहना और भोजन के अंत में “गोचिसाउसामा” यानी “खाना खिलाने का शुक्रिया ये तो पूरी दावत थी” कहना, भोजन, प्रकृति और खाना पकाने वाले व्यक्ति के प्रति आभार व्यक्त करना माना जाता है.

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ओगावा का कहना है,

साथ खाना खाने से पारिवारिक संबंध मज़बूत बनता है. दिन भर की घटनाओं के बारे मे बात करने से बच्चों को आहार संबंधी व्यवहार सीखने का अच्छा अवसर मिलता है, जैसे कि चॉपस्टिक कैसे पकड़नी है और खाना कैसे लेना है.
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चॉपस्टिक को इस्तेमाल करने के शऊर में किसी को महारथ हासिल हो जाए तो मेज़बानों को वो बात पसंद आती है. ओगावा के मुताबिक़ इसके साथ ही समाधान भी उपलब्ध हैं. वो कहती हैं,

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मैं नहीं समझती कि जापानी लोग वाकई इस बात की परवाह करते हैं कि विदेशियों को चॉपस्टिक ठीक से पकड़ना या चलाना नहीं आता. हम जापानी भी तो छुरी-कांटा इस्तेमाल करने में कच्चे हो सकते हैं. और अगर कोई बहुत करीने से चॉपस्टिक इस्तेमाल (Chopsticks Rules In Japan) नहीं कर पाते तो खाने के लिए वे बेशक कांटा मांग सकते हैं.

-ओगावा

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चॉपस्टिक के विश्वास

खाने के इस उपकरण के साथ बहुत से मिथक भी जुड़े हैं. जैसे कुछ लोग चांदी की चॉपस्टिक प्रयोग करते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि अगर खाना ज़हरीला होगा तो ये चॉपस्टिक काली हो जाएंगी और उन्हें पता चल जाएगा. कुछ एशियाई देशों में कहा जाता है कि यदि आप ग़ैर बराबर चॉपस्टिक प्रयोग करते हैं तो आपकी नाव या विमान छूट जाएंगे.

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स्वास्थ्य के लिए

वैज्ञानिकों का कहना है कि, ये चॉपस्टिक उन लोगों के लिए ख़ासतौर पर फ़ायदेमंद होंगी जिन्हें स्वास्थ्य कारणों से सोडियम कम खाना है, उन्हें स्वाद भी आएगा और नमक भी नहीं खाना होगा.

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कलाई पर कंप्यूटर

ये चॉपस्टिक प्रयोग करते वक़्त कलाई पर बैंड बांधना होता है, जो एक छोटा कंप्यूटर है. चॉपस्टिक खाने में सोडियम आयन चुनकर उनका स्वाद सीधे मुंह तक पहुंच देती हैं. इससे नमक का स्वाद डेढ़ गुना तक बढ़ जाता है.

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चॉपस्टिक का इतिहास

पारंपरिक तौर पर बांस या लकड़ी की बनी मोटी तीलियों को चॉपस्टिक के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है. ये शांग वंश के साम्राज्य के दौरान 1766 से 1122 ईस्वी के बीच में चीन में विकसित हुईं और फिर पूरे पूर्व एशिया में फैल गईं.

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जापान में चॉपस्टिक

कोरिया, वियतनाम और जापान में चॉपस्टिक 500 ईस्वी में (Chopsticks Rules In Japan) पहुंचीं. पहले जापान में इनका इस्तेमाल सिर्फ़ धार्मिक क्रियाकलापों में होता था. 

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चॉपस्टिक से जुड़े सारे नियम और इतिहास जापान (Chopsticks Rules In Japan) में सदियों पुराने हैं, जिन्हें वहां के लोगों को मानना अनिवार्य है.