ये जो शर्ट और पैंट की क्रीज़ है, इसे बनाने और संभालने के लिए कितनी मेहनत करते हैं आप? पहले तरीके से प्रेस करना, फिर मेट्रो, बस, बाइक या अपनी कार में भी इसे सहेजना, ताकि आपकी इज़्ज़त और फ़ैशन में कोई कमी न आ जाए. Corporate कंपनी में तो इस क्रीज़ के तार कर्मचारी की सैलरी से भी कहीं न कहीं जुड़ते हैं.
क्या हो, अगर हम कहें कि ये क्रीज़ जो कुछ के लिए स्टाइल और बाकियों के लिए टेंशन है, वो सच में गलती से फ़ेशन में आई. जनाब कुछ हुआ ऐसे कि 19वीं शताब्दी में यूरोप की एक कपड़ों की कंपनी बाहरी देशों में अपने कपड़े एक्सपोर्ट करती थी. जहाज़ में ज़्यादा कपड़े रखने के लिए कपड़ों को दबा कर रखा जाता था. चूंकी ये जहाज़ काफ़ी लम्बी दूरी का रास्ता काफ़ी समय में तय करता था, उतने दिनों में ये क्रीज़ कपड़ों में अपने आप आ जाती थी. लोगों की लाख कोशिशों के बाद भी ये क्रीज़ नहीं हटती थी और देखते ही देखते, ये फ़ैशन बन गई.