Dettol History: साफ़-सफ़ाई और हाइजीन अपने आसपास के वातावरण और शरीर की शुद्धि के लिए बेहद ज़रूरी है. इसी हाइजीन को बनाए रखने में क़रीब 80 सालों से हमारा साथ डेटॉल ब्रांड (Dettol) बखूबी दे रहा है. आपको ये लगभग हर घर में साबुन, क्रीम या लिक्विड के रूप में रखा मिल जाएगा. साल 1937 से ये भारत में आम लोगों की ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बना हुआ है. इस बीच इसको टक्कर देने के लिए समय के साथ कई अन्य ब्रांड के प्रोडक्ट्स मार्केट में आए, लेकिन इसके बावजूद इस ब्रांड पर लोगों का विश्वास अटल रहा.  

आइए आज आपको हर भारतीय के फ़ेवरेट ब्रांड बन चुके डेटॉल (Dettol History) के बनने की दिलचस्प कहानी के बारे में बताते हैं. 

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Dettol History

क्या आप जानते हैं डेटॉल के पिता का नाम? 

साल 1929 में डॉक्टर विलियम कोलब्रूक रेनॉल्ड ने यूके में ‘Reckitt & Sons‘ कंपनी ज्वाइन की. वो एक वैज्ञानिक थे, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय तौर पर पसंद किया जाता था. इस वजह से उनकी मौजूदगी से कंपनी के लोगों में और एक्साइटमेंट बढ़ने लगी. उस दौरान ऐसा माना जाता है कि मानव शरीर में एक बीमारी शरीर में असंतुलन के चलते होती है. लेकिन प्रोग्रेसिव विज्ञान ने इसके बारे में सोचने का एक नया पहलू पेश किया. इसको देखते हुए डॉक्टर रेनॉल्ड उस तरह के हाई क्वालिटी और बेहतरीन प्रोडक्ट्स बनाने के लिए काम पर लग गए, जिनके अंदर हाईजीन सबसे ज़्यादा थी. इसी के दौरान उन्होंने डेटॉल का आविष्कार किया. ये डिस्कवरी बेहद उम्दा जिसके बाद डॉक्टर रेनॉल्ड को ‘द फ़ादर ऑफ़ डेटॉल‘ के नाम से जाना जाने लगा. (Dettol History)

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ऐसे हुआ डेटॉल का मेडिकल में परिचय

डेटॉल की क्षमता को तुरंत पहचाना गया. एक एंटीसेप्टिक लिक्विड के फॉर्म में, ये एक पूरा यूनिक प्रोडक्ट था, जिसमें एक कीटाणुनाशक की प्रभावशीलता भी थी और इसको स्किन पर लगाने से जलन भी नहीं होती थी. इस चीज़ ने डेटॉल बनाने वाली टीम को एक टेस्ट के लिए प्रेरित किया, ताकि ये देखा जा सके कि ये लोगों के लिए कितना बेहतर है. 1930 के शुरुआती समय में UK और दुनिया में कई महिलाओं की बच्चों को जन्म देने के बाद ब्लड इंफेक्शन से मौत हो रही थी. उस दौरान दाइयों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले एंटीसेप्टिक काफ़ी ज़हरीले हुआ करते थे. ‘Reckitt & Sons’ ने उस दौरान इस समस्या को सुलझाने में डेटॉल की क्षमता को पहचाना.. 

साल 1933 में हुआ क्लिनिकल ट्रायल

साल 1933 में डेटॉल ASL के ट्रायल लंदन के क्वीन चार्लेट मैटरनिटी अस्पताल में शुरू हो गए. इन दो सालों के ट्रायल में, कुछ बेहतरीन रिज़ल्ट्स दिखाई दिए. नतीजन ब्लड इंफेक्शन के केस 50 परसेंट तक कम हो गए. डेटॉल एक बड़ी सफ़लता साबित हुई और मेडिकल समर्थन के साथ मार्केट में लॉन्च हो सकती थी. पहले इसे फार्मेसी में लॉन्च किया गया और फिर इसकी UK में सामान्य बिक्री होने लगी

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ऐसे हुआ पूरी दुनिया में विस्तार 

इसकी UK में रिलीज़ के फॉर्मेट के जैसे ही इसका ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में भी परिचय करवाया गया. उसी साल पहले ये साउथ अफ्रीका पहुंचा और फिर कनाडा, भारत और साउथ अमेरिका में भी अपनी जगह बना ली. 1936 में डेटॉल का भारत में आना महत्वपूर्ण था और यह जल्द ही देश में सबसे भरोसेमंद ब्रांड और अपनी तरह का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला प्रोडक्ट बन गया. इसने अपनी पहली फैक्ट्री 1945 में भारत में खोली. साल 1980 तक ऐसा अनुमान लगाया गया था कि भारत में क़रीब 65 लाख लोगों ने इसे एक बार ज़रूर यूज़ कर लिया था. 

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द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान निभाया अहम क़िरदार

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान डेटॉल ने अस्पतालों में अहम रोल प्ले किया. ये ब्रिटिश प्रयासों के लिए इतना महत्वपूर्ण था कि इसे यूके सरकार द्वारा ‘आवश्यक’ माना गया और फैक्ट्री को अस्थायी रूप से इसके निर्माण की सुरक्षा के लिए ‘कम कमजोर स्थान’ पर ले जाया गया. युद्ध के बाद ये यूरोप में भी अवेलेबल हो गया और आज ये 120 देशों में उपलब्ध है. डेटॉल की महक दुनिया भर के लाखों लोगों की यादों से जुड़ी हुई है. चाहे चोट लगी हो या चाहे छोटे बच्चों को नहलाना हो, ये ब्रांड लगभग हाइजीन से जुड़े हर काम में यूज़ किया जाता है. कोरोना वायरस महामारी के दौरान भी इसने काफ़ी अहम क़िरदार निभाया है. 

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आज डेटॉल को किसी परिचय की ज़रूरत नहीं है.