Story of Dharhara in Bihar in Hindi: पर्यावरण को सुरक्षित और हेल्दी रखने के लिए पेड़-पौधों का बचा रहना बहुत ज़रूरी है. इसलिये, विश्व स्तर पर ज़ोर दिया जाता है कि जितना हो सके, उतना अपने आसपास प्लांटेशन करें. वहीं, ग्रीन हाउस गैस के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वृक्षारोपण सबसे सरल और सबसे प्रभावी तरीकों में से एक माना गया है. लेकिन, ज़रा सोचिये क्या हो अगर वृक्षारोपण को एक सामाजिक संदेश के साथ जोड़ दिया जाए यानी दो महत्वपूर्ण काम एक साथ.
ऐसा ही कुछ बिहार के एक गांव में देखने को मिला है, जहां बेटी के जन्म पर कम से कम दस पौधे लगाए जाते हैं, ताकि पर्यावरण को बढ़ावा देने के साथ-साथ भ्रूण हत्या व महिला शोषण के खिलाफ़ एक प्रभावी संदेश लोगों तक पहुंच सके.
आइये, विस्तार से जानते हैं बिहार के धरहरा गांव (Story of Dharhara in Bihar in Hindi) के बारे में.
बिहार का धरहरा गांव
Story of Dharhara in Bihar in Hindi: हम जिस गांव की बात कर रहे हैं, वो बिहार राज्य के भागलपुर ज़िले में है, जहां बेटी के जन्म पर पौधे लगाने की परंपरा बन गई है. ये गांव अपने इलाक़े का सबसे हरा-भरा गांव है. इसके अलावा, यहां बेटियों को देवी लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है और जब किसी के घर में बेटी जन्म लेती है, तो गांव में उत्सव के रूप में कम से कम 10 फलों के पौधे लगाए जाते हैं.
वहीं, जब बेटियां बड़ी होती हैं, तो ये पेड़ उन्हें विरासत के रूप में दिए जाते हैं.
20 हज़ार से भी ज़्यादा फलो के पेड़
बिहार का ये ख़ूबसूरत गांव 20 हज़ार से भी ज़्यादा फ़लों के पेड़ों के बीच बसा हुआ है. इस पर गांव के प्रधान की बेटी कहती हैं कि आज जहां दुनिया भ्रूण हत्या व ग्लोबल वॉर्मिंग की परेशानियों से जूझ रही है, ऐसे में ये हमारी एक छोटी की कोशिश है इन समस्याओं को नियंत्रित करने की.
पेड़ करते हैं आर्थिक मदद
Dharhara Village in Bihar Celebrates Birth of Girls by Planting Trees: भारत में एक बड़ी आबादी (Role Model Village of Bihar Dharhara) बेटियों को आर्थिक भार के रूप में देखती है. वहीं, दहेज के लिये घर में क्लेश और यहां तक कि हत्या के मामले देखे जाते हैं. ऐसे में इन चीज़ों से लड़ने के लिये इस गांव ने ख़ूबसूरत तरीक़ा सोच लिया यानी इन पेड़ों से जो आमदनी होती है, उसे बेटियों की शिक्षा और उनका भविष्य बनाने के काम में लगाया जाता है. इस तरह बेटी के परिवार से थोड़ा आर्थिक दबाव भी कम हो जाता है.
जैसे-जैसे बेटियां बड़ी होती हैं, पौधे पेड़ का रूप लेने लगते हैं और आगे चलकर फल देते हैं. इनसे पढ़ाई से लेकर शादी के ख़र्च में भी मदद मिल जाती है.
गांव के निवासी प्रमोद ने अपनी बेटी के जन्म पर 10 आम के पेड़ लगाए थे. वर्तमान में उनकी बेटी स्कूल जाती है, जिसका ख़र्च उन पेड़ों से बेचे गए आमों से निकल रहा है.
बेचने के साथ-साथ खाने के लिए भी रखे जाते हैं आम
Story of Dharhara in Bihar in Hindi: पौधे से पेड़ बनने में और फिर फल देने में चार से पांच साल का वक़्त लग जाता है. इसके बाद फलो का एक बड़ा हिस्सा बेच दिया जाता है और इनका कुछ हिस्सा बच्चों के खाने के लिये रख लिया जाता है.
वहीं, जब पेड़ बूढ़े हो जाते हैं, तो उन्हें काटकर फ़र्नीचर बनवा लिये जाते हैं, जो शादी में बेटियों को उपहार के रूप में दिये जाते हैं.
परंपरागत खेती छोड़ फलों के बागान लगा रहे हैं
यहां अधिकतर गांव के लोग परंपरागत खेती को छोड़ फलों के बगान लगा रहे रहे हैं, जिनमें आमदनी भी ज़्यादा है और परंपरागत खेती की तुलना में मेहनत भी कम. यहां किसान आम के पेड़ ज़्यादा लगाते हैं, लेकिन आम के अलावा अब लीची, पपीता और अमरूद के पेड़ भी लगाए जा रहे हैं.
Story of Dharhara in Bihar in Hindi: यहां बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी आ चुके हैं और उन्होंने भी यहां पेड़ लगाए हैं. ये गांव सच में किसी बड़े प्रेरणा से कम नहीं है और अन्य लोगों को भी इसी तरह के कदम उठाने चाहिए.
धरहरा गांव की ये कोशिश आपको कैसी लगी, हमें कमेंट में बताना न भूलें.