सुरक्षा कह लें या शौक़, बहुत से लोग हथियार रखते हैं. ख़ासतौर से बंदूक. एक वक़्त था, जब लोग राइफ़ल लेकर चलते थे, मगर अब लोग छोटी बंदूक रखना पसंद करते हैं. मसलन, रिवॉल्वर और पिस्टल वगैरह. मगर कई बार ऐसा देखा जाता है कि लोग रिवॉल्वर और पिस्टल के बीच कंफ़्यूज़ हो जाते हैं. उन्हें इन दोनों के बीच का अंतर मालूम नहीं होता. तो आज हम आपको इन दोनों के ही बारे में बताने जा रहे हैं.
ये भी पढ़ें: आख़िर बंदूक़ की गोली में ऐसा क्या होता है कि जिस्म में घुसते ही इंसान की मौत हो जाती है?
क्या होती है पिस्टल?
एक पिस्तौल एक छोटी दूरी की हैंडगन होती है, जिसका काफ़ी छोटा बैरल होता है. मतलब ये 10 इंज से ज़्यादा नहीं होता. छोटी होती है, तो पकड़ने में भी आसानी रहती है. पिस्टल तीन तरह की होती है. ऑटोमैटिक, सिंगल शॉट और मल्टी चेंबर. वहीं, ऑटो में सेमी ऑटोमैटिक और फुल ऑटोमैटिक शामिल है.
पिस्टल में गोलियां मैगज़ीन में लगी होती हैं. जो ग्रिप के पास ही होती है. इसमें 8 से ज़्यादा गोलियां भरी जा सकती हैं. इससें एक के बाद एक फ़ायर किये जा सकते हैं. दरअसल, स्प्रिंग के ज़रिए गोलियां फायर पॉइंट पर सेट होती जाती है. ऐसे में लोडिंग टाइम में समय ज़ाया नहीं होता और फ़ायरिंग की स्पीड तेज़ रहती है. आमतौर पर इसकी प्रभावी रेंज लगभग 100 गज होती है.
अब जानिए रिवॉल्वर के बारे में
माना जाता है कि रिवॉल्वर को 1835 में सैमुअल कॉल्ट ने विकसित किया था. इसका नाम एक रिवाल्विंग सिलेंडर की वजह से पड़ा है. दरअसल, इसमें बंदूक के बीच में एक सिलेंडर लगा होता है, इसमें गोलियां भरनी होती है. आपने गौर किया होगा कि बंदूक के बीच में एक गोल सिलेंडर होता है, जो घूमता है. ये ठीक बैलर के पीछे होता है. इसी सिलेंडर में गोलिया भरी जाती हैं.
आमतौर में इस सिलेंडर में 6 गोलियां होती हैं. जब ट्रिगर दबाते हैं तो पीछे लगा एक हैमर गोली पर हिट करता है, जिससे गोली आगे निकलकर जाती है. एक गोली चलाने पर सिलेंडर अपने-आप घूम जाता है और दूसरी गोली बैरल के सामने आ जाती है. ये प्रोसेस इसी तरह काम करता है.
बता दें, एक रिवॉल्वर, पिस्टल की तुलना में भारी होती है. दरअसल, सिलेंडर के कारण रिवॉल्वर का वज़न बढ़ जाता है. वहीं, मिसफ़ायर होने पर कारतूस को रिवॉल्वर से आसानी से निकाला जा सकता है. जबकि पिस्टल में ये थोड़ा मुश्किल होता है.