मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र की शान है दाल बाफ़ला. मालवा के दाल बाफ़ला के दीवाने देश-विदेश तक में मौजूद हैं. लेकिन अक़सर लोग इसे राजस्थान की फ़ेमस डिश दाल बाटी समझने की ग़लती समझ लेते हैं. लोगों के इसी कन्फ़्यूज़न को दूर करेंगे आज हम और आपको बातएंगे कि दाल बाफ़ला और दाल बाटी में क्या फ़र्क है.

दाल बाटी चूरमा राजस्थानी पकवान है, जिसकी खोज 8वीं सदी में मेवाड़ साम्राज्य में हुई थी. जबकि दाल बाफ़ला इस राजस्थानी पकवान से निकला उसका एमपी वर्ज़न है. इसे पहली बार मुग़ल काल में रानी जोधाबाई के ज़माने में बनाया गया था.

दोनों में अंतर क्या है?

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दोनों को बनाने का तरीका ही है जो इन्हें एक दूसरे से अलग बनाता है. बाटी को कंडों यानी उपलों में सेंका जाता है और बाफ़ले को सबसे पहले उबाला जाता है फिर सेका जाता है. दोनों के लिए दाल भी अलग-अलग बनती है. बाटी के लिए पंचमेर दाल, तो वहीं बाफ़ले के लिए तुअर दाल बनाई जाती है.

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सेकने के बाद बाफ़ले को घी में तला जाता है. अगर तला नहीं जाता तो फिर इनमें इतना घी डाला जाता है कि दबाने पर घी टपकने लगता है. जबकि बाटी को सेकने के बाद ऊपर से हल्का घी डाला जाता है.

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दाल बाफ़ले की थाली में आलू की सब्ज़ी, लहसुन मिर्च की चटनी, धनिए की चटनी, लड्डू और छाछ परोसी जाती है. इसे खाने के बाद प्यास लगती है. इसलिए दाल बाफ़ला खाकर कई गिलास पानी पी जाते हैं और फिर उन्हें तगड़ी नींद भी आती है.

वहीं दाल बाटी चूरमा की थाली में पंचमेर दाल, बाटी (जिनपर घी ऊपर से डला हुआ होता है) और चूरमा परोसा जाता है. 

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इंदौर के लोग कहीं भी घूमने जाते हैं तो दाल बाफ़ाला ही बनवाते हैं. मालवा की पहचान बन चुकी दाल बाफ़ला यहां कि शादियों और पार्टियों का भी हिस्सा है. 

आपको तो दाल बाटी चूरमा और दाल बाफ़ला में अंतर पता चल गया. अब इसे अपने दोस्तों से भी शेयर कर दो.

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