पेट्रोल जितना ज्वलनशील पदार्थ है, उतना ही आजकल हमारे देश में ये ज्वलनशील मुद्दा भी है. दाम तो इसके आजकल ऐसे बढ़ रहे, जैसे सरकारी नौकरी लगने के बाद किसी निकम्मे लौंडे का दहेज बढ़ जाता हो. मगर क्या कीजिएगा, मांग दोनों की ही ज़्यादा है. उस पर भी अगर पेट्रोल पंप पर जाकर आपको मालूम पड़े कि ससुरा पेट्रोल में भी नॉर्मल और प्रीमियम की कलाकारी चल रही है, तो फिर मुंह कुकुर टाइप बनना लाज़मी है. 

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मगर सवाल ये है कि आख़िर ये नॉर्मल और प्रीमियम पेट्रोल का चक्कर क्या है और इन दोनों में अंतर क्या होता है? आज हम आपको यही समझाने की कोशिश करेंगे. 

दोनों में अंतर क्या है?

देखिये दोनों ही पेट्रोल से गाड़ी तो चलनी ही है. मगर थोड़ा क्वालिटी में फ़र्क होता है. पेट्रोल के मामले में ये फ़र्क ऑक्टेन की मात्रा से डिसाइड होता है. प्रीमियम पेट्रोल को ही हाई-ऑक्टेन पेट्रोल कहते हैं, क्योंकि इसमें ऑक्टेन वैल्यू 90 से ऊपर होती है. जबकि भारत में नॉर्मल पेट्रोल में ये 87 तक होती है.

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ये ऑक्टेन क्या होता है?

ऑक्टेन दरअसल, पेट्रोल में मौजूद एक केमिकल होता है. ऑक्टेन की मात्रा जिस पेट्रोल में ज़्यादा होती है, उसका इंजन पर उतना ही कम नकारात्मक प्रभाव कम पड़ता है. ये इंजन-नौकिंग और डेटोनेटिंग को कम कर देता है, जिससे इंजन से आने वाली आवाज़ नियंत्रित होती है. क्योंकि गाड़ी का इंजन अगर तगड़ा रहेगा तो उसकी माइलेज और ओवरऑल परफॉर्मेंस पर भी बेहतर रहेगी. साथ ही, नॉर्मल पेट्रोल के मुकाबले प्रीमियम पेट्रोल वायु प्रदूषण भी कम करता है. यही वजह है कि प्रीमियम पेट्रोल का दाम भी ज़्यादा होता है. 

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आपके लिये प्रीमियम बेस्ट रहेगा या नॉर्मल?

भारत में ज़्यादातर लोग नॉर्मल पेट्रोल ही डलवाते हैं. हमारे यहां जो गाड़ियां सड़कों पर आप देखते हैं, उनका इंजन नॉर्मल पेट्रोल में भी सही परफ़ॉर्म करता है. बहुत विदेशी टाइप हाईफ़ाई गाड़ी ले लिये हों, तो फिर प्रीमियम पेट्रोल डलवाने की ज़रूरत पड़ती है. बाकी आपकी गाड़ी के मैनुअल में अगर लिखा हो कि प्रीमियम पेट्रोल डलवाएं, तो ज़रूर डलवा लें. अगर इसकी ज़रूरत नहीं है और आप फिर भी उसमें प्रीमियम पेट्रोल डलवाते हैं, तो उसका कोई ख़ास फ़ायदा होगा नहीं.